आँखों में ही कट रहे,माता के दिन रैन।
भ्राता की माँ कैद में, जरा न पावै चैन।।
कान्ह जन्म की आस में,पुलकित माँ के नैन।
कानों में है पड़ रहे,दुष्ट कंस के बैन।
दुष्ट कंस के कारणे,बढ़ा संत-संताप।
विपद हरेंगे आय के,कृष्ण मुरारी आप।।
दिन-दिन बढ़ते जा रहे,जन पे अत्याचार।
दुष्टों का होगा दलन, मन में यही विचार।।
अन्न-नीर को त्याग कर,मन में लेकर आस।
हरने जग की पीड़ को,होगा शीघ्र उजास।।
आज दिवस ये खास है,हलचल कारागार।
मात देवकी तात वसु,बैठे असि की धार।।
चतुरंगिणी सेना खड़ी,कालकोठरी-द्वार।
आज आखरी पहर ही,लेंगे हरि अवतार।।
कृष्ण जन्म उल्लास में,डूबा गोकुल ग्राम।
आँसू बहते आँख से,माता के अविराम।।
कान्हा झूले पालने,मन हर्षावे मात।
नजर न मोहन को लगे,कृष्ण-साँवरे गात ।।
देख शरारत कान्ह की,मात-पिता मुसकाय।
नन्द-यशोदा की ख़ुशी,नयनों में दिख जाय।।
तुतली बोली कृष्ण की,माँ को रही रिझाय।
उमड़ रहा उल्लास जो,आँचल नहीं समाय।।
मोहन माखन-मोद में,भर लीन्हों मुख माय।
मात यशोदा जो कहे,कान्हा मुख न दिखाय।।
कान्हा ने उल्लास में,सखियन चीर छुपाय ।
सखियाँ रूठी कृष्ण से,नटखट वो मुसकाय।।
कृष्ण सामने जान के,खिले खुशी के फूल।
मगन मोहिनी तान पर, नाचें सुध-बुध भूल ।।
कान्हा लेकर साथ में,ग्वाल-बाल की फ़ौज।
मन में भर उल्लास वो,करते कानन मौज।।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
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