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भगत सिंह की 113वीं जयंती

भगत सिह



आज़ादी के दिवाने क्रांतिकारी #शहीद भगत सिंह  की 113 वीं जयंती पर उन्हें शत शत नमन 🙏🙏
देश को स्वाधीनता दिलाने हेतु छोटी उम्र में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर जीवन समर्पित कर दिया। 
12  वर्ष की कच्ची उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड देखा और उसी ने बदल दी इनके जीवन की दिशा। 
और सन् 1920 में शामिल हो गए महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन में। किंतु  विचारधाराएँ अलग होने के कारण उन्होंने देश के लिए लड़ाई अपनी तरह से लड़ी। 

वो कहते थे 
*इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं. महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं.
  *अगर बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने बम गिराया तो हमारा उद्देश्य किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था . अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चाहिए। 
   *जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं। 
*बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती,क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। 
* इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूं, तो इंक़लाब लिख जाता हूं.

भगत सिह
पहन बसंती चोला वो तो 
चला शान से बाँका,
देश से यारी-प्यार देश से, 
'भक्त' था भारत माँ का।

जोश-जुनूं की हद करता,  
दे 'इंकलाब का नारा ' 
साथ युवाओं को लाया 
वो 'मातृभूमि' का प्यारा।


वतन के खातिर खेली उसने 
बिन अबीर ही होली,
छाती ठोक खड़ा होता वो ,
जिस और थी चलती गोली।

अंग्रेजों का दमन-चक्र ,
उस वीर 'भगत ' तोड़ा।
आँख मिला अंग्रेज-ह्रदय में, 
क्रांति का बम फोड़ा।

उगा सूर्य ऐसा भारत में,
अंधकार हरने को,
हर युवा देशवासी के ह्रदय में,
देशभक्ति भरने को।




विद्रोह का बिगुल बजा कर ,
वो बाघ सा था गुर्राया,
सुनकर उसकी सिंह-नाद,
अंग्रेजी-शासन था थर्राया।

देश-भक्ति के बीज असंख्य,
बोए उसने अवनि पर।
दौड़ के सारे जन आए,
उसकी एक बोली पर।


छोटी सी ही उम्र में ,उसका
 देशभक्ति का जज्बा,
धन्य हुई वो कोख थी जिससे 
वीर भगत वो जन्मा।

#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर


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