महादेवी वर्मा
सपनों के वो जाल बना,
अठखेलियाँ करते गिल्लू को निहारती,
सोना के सौंदर्य पर रीझती और उसकी अकाल मृत्यु पर अश्रु बहाती,
दुर्मुख ख़रगोश की बातों में खोई ।
मोर नीलकंठ और उसकी प्रेयसी राधा से ईर्ष्या रखने वाली मोरनी कुब्जा के माध्यम से प्रेम की प्राप्ति हेतु छल-बल का प्रयोग और प्रेम पर प्राणों को समर्पित करते पक्षियों की दुनिया के रहस्यों को उद्घाटित करती महादेवी।
घर में आदर-सत्कार सहित लाई गौरा गाय से स्नेह और गौरा के दुग्ध प्राप्ति हेतु कुत्ते-बिल्ली जैसे जानवरों का अनुशासन तथा स्वार्थ के वशीभूत होकर गाय की हत्या के षड्यंत्रकारी का भेद खोलकर गौरा गाय के अंतिम समय में उसके साथ रह कर उच्च मानवीय मूल्यों का निर्वहन करती रहस्यवाद और छायावाद की मुख्य कवयित्री महादेवी वर्मा की संस्मरणात्मक कहानियों से ज्ञात होता है कि वो करुणा और मानवीय भावों के साथ ही चित्रात्मक शैली के माध्यम से पात्र को पाठक के सम्मुख खड़ा कर दिया करती थीं।
अपनी कहानियों में निरीह पशु-पक्षियों के चित्रण के साथ ही महादेवी ने दीन-हीन मानवता का भी मार्मिक और हृदयस्पशी वर्णन किया। समाज में गहराई तक पैठ रखने वाली महादेवी ने स्वाधीनता के पूर्व का तथा स्वाधीनता के बाद का भारत भी देखा। उनके साहित्य में इसका स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है
उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व के समाज तथा पश्चात के समाज में व्याप्त करूण क्रंदन और वैषम्य को देखा परखा और इसे साहित्य के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया। साहित्य में स्त्री विमर्श की बात करने वाली महादेवी को आधुनिक भारत में स्त्री विमर्श
की जननी माना जाता है।उन्होंने नारी का दुख, वेदना, उसकी अकुलाहट,तथा उसकी पराश्रयता को शब्दबद्ध कर
उसे गरिमा प्रदान की है।
महादेवी ने अपनी कविताओं में स्त्री-मुक्ति के संघर्ष को बिंबो में बांधा है वे कहती हैं -
‘‘बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुन-गुन?
क्या डूबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना ं
जाग तुझ को दूर जाना।’’
अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय स्त्री के जीवन की पीड़ा को उजागर करती है । महादेवी अपने साहित्य के माध्यम से समस्त स्त्री जाति का आह्वान करती हैं कि उन्हें को निर्भय होकर आगे बढ़ना चाहिए । संकट और बाधाओं का डटकट मुकाबला करना चाहिए उनके अनुसार स्त्री को अपनी मुक्ति की लड़ाई स्वयं ही लड़नी चाहिए। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से स्त्रियों के ह्रदय में आत्मविश्वास और स्वाभिमान की चेतना जागृत की हैं।
जिस प्रकार से स्वतंत्रता प्राप्ति मेंपत्र-पत्रिकाओं ने महती भूमिका निभाई थी उसी भांति साहित्य ने नारी जागरण और महिला स्वातंत्र्य की अलख जगाई और उनमें प्रमुख हस्ताक्षर हैं महादेवी ।
उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत से एम्.ए किया तथा प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या नियुक्त हो गई तथा बाद में वो वहीं पर कुलपति बनीं। विक्रम,कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट् .की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया 'यामा' पर उन्हें. भारतीय 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार मिला सन1987 में उनका देहांत हो गया।
महादेवी की गद्यभाषा सबसे अलग है..वे तत्समयुक्त लम्बे वाक्य और घुमावदार है।महादेवी ने यथास्थान वर्णनात्मक,
भावात्मक,आलंकारिक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया।
काव्य में वेदना और विद्रोह का स्वर बिखेरती आधुनिक मीरा और छायावाद की प्रमुख स्तंभ महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद में हुआ था तथा उनका निधन 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में हुआ।
(महादेवी की कुछ कविताओं के शीर्षक के आधार पर....)
प्रतिक्षण प्रतिपल,दीपशिखा सी,
जल कर की थी आरती,
नव-नेह को रचकर हृदय में,
थी अनंत को पुकारती।
सपनों के वो जाल बना,
चाहती थी मधु-मदिरा का मोल,
मधुर-मधुर दीपक सी जली,
वो नीर भरी दुःख की बदली।
बिन गरजे वो मधु बूंदों सी,
बरसाती थी आखर,
गूढ़ रहस्य से जीवन में,
आशा थी पाने को निर्झर।
अनंत पथ में लिखा करती,
वो सस्मित सपनो की बातें,
मुस्कान भरा ना फूल खिला,
थी पीड़ा से भरी सारी रातें।
जीवन में उसके मुस्काया कभी,
लाली में चुपचाप प्रभात,
व्यथा-विरह की मीठी पा,
थामा फिर साकी का हाथ।
चाहत थी उसकी भी अनोखा,
पाने सपनों का नया संसार,
ना मिला कोई था दूर क्षितिज तक,
बही आँसू की अविरल धार।
राह देख ना कभी थकी,
सहती थी मन के हर छाले,
उम्मीद से आलि से कहती,
क्या प्रिय हैं आने वाले।
हृदय को द्रवित करती शब्दों से,
ज्यों तरल लोह की धार,
करुण-वेदना,विरह-मिलन से,
था भरा पड़ा संसार।
'महादेवी' ने देशप्रेम के,
फूलों की गुंथी माला,
मस्तक देने की कहकर
हृदयों में भरती थी ज्वाला।
सुनीता बिश्नोलिया
Very nice 🙏🙏🔥
जवाब देंहटाएंThanks
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