निर्द्वंद्व जगत में हिंदी को,दुरंत वेग से बढ़ने देना।
यशगान करे दुनिया सारी,वो स्वर्णिम शब्द भुला ना देना
अंग्रेजी मद में डूबों के लिए ,ना मन में मत्सर आने देना,
संस्कृति से सदा सुशोभित,'सरस' शब्द भुला ना देना।
कटिबद्ध रहो साहित्य-साधक,'खोह' में इसे ना खोने देना,
अभिव्यक्ति के स्त्रोत सदा,विलक्षण शब्द भुला ना देना।
अनमने हुए जगत के बीच, इसे न निर्वासित होने देना,
तल्लीन भाव से हिंदी का,यश-निनाद तुम भूल ना जाना।
निज भाषा के तिरस्कार के,मूक-दर्शक तुम बन न जाना,
विद्रोह -स्वर कलम से लिख,ध्वनित करना भूल न जाना।
तुम बद्धमूल हिंदी भाषा से,समुचित विश्व-विभूषित करना,
करो उद्घाटित शब्दाकर्षण ,शीघ्र अनुमोदन भुला ना देना।
बेहिचक उन्नति की राहों मे,बन पथ-प्रदर्शक इसे बढ़ाना,
नतमस्तक हो दुनिया सारी,कर्म को करना भूल ना जाना।
साहित्य के विस्तृत सागर से,श्रेष्ठ साहित्य की गंग बहाना ,
भूल चले लोगों के ह्रदय में,प्रेम जगाना भूल ना जाना।
#सुनीता बिश्नोलिया ©®
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
शब्दों की सरिता बहे, बोले मीठे बोल।
हिंदी भाषा है रही कानों में रस घोल।।
पश्चिम के तूफान में, नहीं पड़ी कमजोर।
हिंदी शब्दों की लहर,करती रही हिलोर।
सोने सी महँगी बड़ी, हीरे सी अनमोल
इसे चुरा पाए नहीं, भारत आए चोर।।
सरस शब्द ही जान है, इनसे है पहचान।
हिंदी की गाथा सकल, गाता सदा जहान।
नव सृजन, नव गीत और, दोहा, रोला,छंद
रस की गागर अंक भर,गाती मीठे गान।।
शब्द- शब्द सम्मान है, होते गहरे अर्थ।
थोड़े में ज्यादा कहें, नहीं बहाओ व्यर्थ ।
आँचल में इसके कई, भाषा करें किलोल
हिंदी भाषा हिन्द की, सच में बहुत समर्थ।।
सुनीता बिश्नोलिया © ®
Bohot badiya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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