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ग़मगीन हो जाना तो बुज़दिलों का काम है


आज अपनी प्यारी दोस्त प्रीति कपूर की कविता पढ़कर ऐसा लगा कि उन्होंने इस कविता में हर वो बात  कह दी है जो मेरे मन में थी। मेरे मन में निराशा के लिए कोई स्थान नहीं इसीलिए यह कविता मेरे मुझे विशेष रूप से पसंद है। जयपुर के वैशाली नगर स्थित डिफेंस पब्लिक स्कूल में प्राथमिक कक्षाओं की इंचार्ज होने के साथ ही सामाजिक विज्ञान ( Social science)  की अध्यापिका प्रीति कपूर छात्रों की प्यारी अध्यापिका होने के साथ ही स्पष्ट विचारों की धनी भावुक हृदयी लेखिका हैं आइए पढ़ते हैं ह्रदय में आशा का संचार करती यह कविता। 
कविता पढ़कर अपनी राय अवश्य दीजिए 


आज कल दिल कुछ बिखरा बिखरा सा रहता है
कई बार सोचती हूँ की समेट लू वह पल , 
वह यादें जो दिल को सुकून देती थी
पर फिर अचानक जाने क्या होता है , 
कुछ छूटता सा,टूटता सा महसूस होता है,
दिल को समझती हूँ , कि यह बस कुछ समय की बात है।
उमंगो को सोने मत दे, जज़्बातो को जगाये रख, 
यह भी एक लम्हा है, गुजर जायेगा,
यह पल यहीं नहीं ठहर पायेगा,
पर फिर भी न जाने क्यों यह दिल ,
आजकल कुछ बिखरा बिखरा सा रहता है
हँसना चाहती हूँ ,और हँसती भी हूँ
पर फिर भी कही कुछ तो खटकता है,
ऐसा लगता है मानो कही कुछ तो चटकता है
थोड़ा रुक जाती हूँ ,खुद को फिर समझाती हूँ ,
ज़िंदगी खुशगवारी का नाम है, 

रोना ,ग़मगीन हो जाना तो बुज़दिलों का काम है 
खुद से पूछती हूँ, क्या तू बुज़दिल ,बेज़ार है ?
क्या तू अभी भी कश्मकश की शिकार है ?
क्यों नहीं तू हिंमत जुटाती,   
क्यों नहीं तू अपने दिल पर काबू पाती?
क्यों उसको बिखरने देती है ? 
क्यों हालातो के आगे झुकती है?
चल छोड़ इन रिवायतों को ,
दिल को तंग करने वाली इन कवायदों को,
फिर से एक बार बेपरवाह हो जा,
जैसे जीती थी और जीना चाहती है जी,
कोई नहीं आता किसी को समझाने,मनाने या बहलाने,
मेरी पगली यह तो खुद ही करना पड़ता है! 
देख अब फिर कभी न कहना.. 
दिल आजकल कुछ बिखरा -बिखरा सा रहता है। 
प्रीती कपूर ©®
जयपुर 




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