कटा दिन पूछ मत तुझ बिन,शाम तक आँख भर आई।
तुम्हारी याद में साजन,नहीं मैं रात भर सोई।
बड़ी उलझन में थी प्रियवर ,कौन सी बात भूलूँ मैं -
खुली आँखों में भर तुझको,सपन में मैं रही खोई।
तेरी बातों ने जादूगर,मुझे कुछ एेसा भरमाया
ये शीतल चाँद भी मुझको,अब सूरज नजर आया।
गया किस ओर बेदर्दी,खबर भी ली नहीं अब तक-
मेरी मन-वेदना निष्ठुर, समझ तू क्यों नहीं पाया।।
तेरे खातिर सजन मैंने,कभी दुनिया थी ठुकराई,
रेशमी बाल मेरे अब,चमकते चांदी की तरहा,
कहाँ तू खो गया जाने,छोड़ मुझको यहाँ तन्हा,
प्रीत की उम्र अब बीती,प्रेम की रीत है बाकी-
दीप जीवन का बुझने से,पहले एक बार तो घर आ।।
नहीं शिकवा-शिकायत है, तेरी बस याद है आई,
साथ तेरे गुजरती थी,सुहानी-साँझ हर प्रियतम
जहाँ पर बैठकर सपने,सुहाने देखते थे हम ।
उसी पीपल की छाया में,आज भी भूलकर सुध-बु़ध-
राह तेरी निहारूँ मैं, अब तो आजा मेरे हमदम।
आखिरी वक्त है शायद, अब तो आँखे भी पथराई़,
खुली आँखों में भर....
सुनीता बिश्नोलिया ©®
जयपुर
बहुत खूबसूरती से आपने बिरह मन की दशा को काव्य छंदों में व्यक्त किया ।
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति ।
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
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