शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर से
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।'
#मधुरिमा
'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।'
चैत्र और आश्विन माह अर्थात् नवरात्र के पावन महीने क्योंकि इन्हीं दोनों महीनों में आते हैं माता दुर्गा की आराधना और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व नवरात्र अर्थात् वर्ष में दो बार मनाए जाते हैं नवरात्र। चैत्र मास में मनाए जाने वाले नवरात्र चैत्र नवरात्र कहलाते हैं तथा आश्विन माह में मनाए जाने वाले नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाते हैं।
नवरात्र अर्थात् नौ रातें।
पुराणों के अनुसार, नवरात्रि माँ दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र के पावन नौ दिनों तक माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। माँ दुर्गा भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं।
माँ दुर्गा के कुछ रूप स्नेहशील भी हैं तो कुछ ममतामय और कुछ हिंसक और डरावने भी। माँ दुर्गा का सबसे सुंदर और शांत रूप है गौरी का तथा सबसे उग्र और हिंसक और क्रूर रूप है देवी काली का अर्थात् नवरात्र का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है।
अर्थात् देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से नवरात्रि के त्योहार को मनाया जाता है। कहीं गरबा-आरती और व्रत तो व्रत और उपवास द्वारा माँ दुर्गा और उसके नौ रूपों की आराधना की जाती है लेकिन नवरात्र के पीछे कहानी क्या है? क्या आप जानते हैं कि क्यों मनाते हैं हम नवरात्रि, कैसे कैसे शुरुआत हुई शारदीय नवरात्र की..
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम ने रामेश्वरम में समुद्र के किनारे नौ दिनों तक लगातार शक्ति पूजा की थी। तभी से माँ दुर्गा का शक्ति पर्व नवरात्रि मनाया जाने लगा । माना जाता है कि शक्ति पूजा के कारण ही राम ने लंका पर विजय प्राप्त की। इसीलिए नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा अर्थात् विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है।
नवरात्रि जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा है कि.
महिषासुर नाम का शक्तिशाली ने राक्षस अमर इच्छा की पूर्ति हेतु ब्रह्मा की कठोर तपस्या की।भगवान ब्रह्मा उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उसे दर्शन देकर उसे मनचाहा वरदान माँगने हेतु कहा । इच्छानुसार महिषासुर ने ब्रह्माजी से स्वयं के अमर होने का वरदान मांग लिया ।
महिषासुर द्वारा अमर होने का वरदान माँगने पर ब्रह्मा जी ने उसे जीवन की नश्वरता का ज्ञान देते हुए बताया कि संसार पैदा हुए हर प्राणी की मृत्यु निश्चित है। अतः वो जीवन-मृत्यु से अलग अन्य कुछ माँगे।' ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे ऐसा वरदान माँगा जिसमें कहा कि मेरी मृत्यु देवता-असुर या किसी मानव के हाथों हो । अगर मृत्यु हो तो किसी स्त्री के हाथों हो।
इस बार ब्रह्माजी ने महिषासुर को उसका इच्छित वरदान दे दिया।
वरदान के प्रभाव से महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और शक्ति के मद में चूर महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवताओं और महिषासुर का युद्ध हुआ जिसमें भगवान शिव और विष्णु भी साथ थे ,किन्तु ब्रह्मा के वरदान के फलस्वरुप महिषासुर अपराजेय रहा और देवताओं को महिषासुर के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा और देवलोक पर महिषासुर का राज हो गया।
महिषासुर से देवलोक पुनः लेने और उससे रक्षा हेतु देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की।कहते हैं उन सभी के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने एक बेहद खूबसूरत अप्सरा के रूप में देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया। देवी दुर्गा को देख महिषासुर उन पर मोहित हो गया और उनसे शादी करने का प्रस्ताव सामने रखा।
किंतु दुर्गा ने महिषासुर से युद्घ की शर्त रखी और कहा कि महिषासुर को उनसे युद्ध में जीतना होगा।और इसप्रकार महिषासुर और दुर्गा के मध्य 9 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। दसवें दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
माना जाता है तभी से नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र
नवरात्र के नौ दिनों में देवी भगवती के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। पहले दिन माँ शैलपुत्री अर्थात्पहाड़ों की पुत्री ,
दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी अर्थात् ब्रह्मचारीणी ,
तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा अर्थात् चाँद की तरह चमकने वाली।
चौथे दिन माँ कुष्मांडा अर्थात् - पूरा जगत उनके पैर में है।
पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता अर्थात् कार्तिक स्वामी की माता।
छठे दिन माँ कात्यायनी अर्थात् कात्यायन आश्रम में जन्मी ।
सातवें दिन माँ कालरात्रि अर्थात् काल का नाश करने वाली।
आठवें दिन माँ महागौरी सफेद रंग वाली माँ ।
नौवें और अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री अर्थात सर्व सिद्धि देने वाली माँ की पूजा की जाती है।
वैसे तो पितृपक्ष के समाप्त होने के अगले दिन से शारदीय नवरात्र शुरू हो जाते हैं। लेकिन इस बार पितृपक्ष के बाद पुरुषोत्तम मास होने के कारण इनके मध्य एक महीने का अंतराल पड़ गया । इस बार शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर अर्थात् कल से शुरू हो रहे हैं।
सुनीता बिश्नोलिया
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें