वो लोग जो आपके मार्गदर्शक,प्रेरणास्रोत होते हैं, तथा सदैव उत्साहवर्धन कर आपको आगे बढ़ाने में योगदान देते हैं तथा आपको आगे बढ़ता देख हृदय से प्रसन्न होते हैं। उन्हीं लोगों के द्वारा अप्रत्याशित खुशी प्रदान कर जीवन का एक और अनमोल क्षण प्रदान किया गया । मैं बात कर रही हूँ वैशाली नगर स्थित डिफेंस पब्लिक स्कूल के प्रबंधक मंडल की।
मेरे लेखन से सदैव प्रसन्न होकर लेखन हेतु प्रेरित करने वाले विद्यालय प्रबंधक रिटायर्ड मेजर एस. के शर्मा, निदेशिका आदरणीया जयश्री शर्मा, प्रधानाचार्या आदरणीया मीतू शर्मा, उप प्रधानाचार्या आदरणीया सीमा सक्सैना द्वारा दिया गया सुखद सरप्राइज जीवन की मुख्य घटनाओं में जुड़ गया।
एेसा नहीं कि विद्यालय प्रबंधक मंडल द्वारा सिर्फ मेरी ही सराहना की गई या की जाती है तथा आज पहली बार मुझे सम्मान मुझे मिला हो। वरन विद्यालय प्रबंधक मंडल द्वारा सभी शिक्षकों को समान समझा जाता है तथा सभी का उत्साहवर्धन कर आगे बढ़ने हेतु प्रेरित किया जाता है।
Meetu Sharma.
#Principal - Defence Public School
अचानक आयोजित इस संक्षिप्त कार्यक्रम की मुझे बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। विद्यालय प्रबंधक, निदेशिका महोदया, प्रधानाचार्या महोदया और उप प्रधानाचार्या द्वारा कलमकार मंच द्वारा हाल ही में प्रकाशित मेरे काव्य संग्रह 'वर्तिका' को मेरे साथी अध्यापकों के समक्ष रखकर मुझे चौंका ही नहीं दिया वरन बधाईयों रूपी आशीष से मालामाल कर सभी का मुँह मीठा करवाया गया।
अचानक आयोजित इस संक्षिप्त कार्यक्रम की मुझे बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। विद्यालय प्रबंधक, निदेशिका महोदया, प्रधानाचार्या महोदया और उप प्रधानाचार्या द्वारा कलमकार मंच द्वारा हाल ही में प्रकाशित मेरे काव्य संग्रह 'वर्तिका' को मेरे साथी अध्यापकों के समक्ष रखकर मुझे चौंका ही नहीं दिया वरन बधाईयों रूपी आशीष से मालामाल कर सभी का मुँह मीठा करवाया गया।
Seema Saxena - Vice Principal #Defence Public School
सच कहूँ तो आज एेसा लगा मैं अपने घर अपने भाई बहनों के सामने माता-पिता द्वारा आशीष प्राप्त कर रही हूँ। आज मेरे माता-पिता होते तो सरस्वती के मंदिर में अपनी सरस्वती को सम्मानित होते देखकर बहुत खुश होते क्योंकि पिताजी के अनुसार विद्यालय से बड़ा कोई मंदिर नहीं।
सच कहूँ तो जब मैं अपने विद्यालय परिवार के साथ होती हूँ तो सारी आधि - व्याधियाँ भूल जाती हूँ। हाँ सच भूल ही तो जाती हूँ.... लिखना भी तो लगभग भूल ही गई या यों कहूँ कि छूट ही गया था या जो लिखती उसे डायरियों में छिपाकर रख देती थी। मेरी बंद डायरियों को खुलाकर पुनः मेरा रुख मेरे सृजन कर्म की ओर मोड़ने का कार्य किया विद्यालय प्रबंधक मंडल ने कैसे ? आप पढ़ कर खुद ही जान लीजिए....
चंडीगढ़ के सेक्टर 21 मॉडल स्कूल में सर्वशिक्षा के अंतर्गत अध्यापन कार्य करते हुए हर शनिवार सर्वे के लिए निकलना और बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ गरीब परिवारों से मिलकर बच्चों को पढ़ाने हेतु तैयार करते हुए कुछ एेसे अनुभव हुए जिन्होनें मन को विचलित कर दिया।
मजबूरी में माता-पिता के साथ काम पर जाने को विवश बच्चों के नसीब में बनी शिक्षा की धुंधली रेखा को उज्ज्वल बनाने का कार्य किया तत्कालीन D EO आदरणीय सेतिया सर ने जो रेड लाइट, मंदिरों और अन्य स्थानों पर घूमते बच्चों को ढूंढकर कर शिक्षा प्रदान करने का पावन कार्य प्रारंभ किया।
मैं खुशनसीब हूँ कि ईश्वर ने मुझे उन बच्चों की शिक्षा हेतु माध्यम बनाया और मेरी समझाइश से कई बच्चों ने सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत पढ़ते हुए मुख्यधारा में प्रवेश लेकर पढ़ाई की।
बचपन से ही लेखन में रुचि होने कारण इन बच्चों से जुड़ी बातें मैं डायरी में लिखने लगी। इन बच्चों की संगति ने जीवन के प्रति मेरे नजरिए को पूरी तरह बदल दिया और विचारों की सुनामी को रोक पाना अंसभव हो गया। मन में उठते तूफान और भावों को कविता,कहानियों और लेख के रूप में लिखकर संभालकर रख दिया करती । थोड़े दिन बाद फिर पढ़ती ,खुश होती और फिर डायरी को संभाल कर रख दिया करती ।
इसी दौरान पतिदेव के तबादले के कारण जयपुर आ गई। लगभग दो महीने घर बैठने के बाद जयपुर में ब्लू स्टार पब्लिक स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू किया। विद्यालय प्रबंधक और सभी अध्यापक बहुत ही अच्छे थे बिल्कुल घर का सा माहौल मिला मुझे वहाँ। कमी थी तो बस इतनी कि मुझ हिंदी अध्यापिका द्वारा प्राथमिक कक्षाओं को गणित पढ़वाना। चार साल के इंतजार के बाद भी मुझे मेरा विषय पढ़ाने को नहीं दिया गया तो मैंने वैशालीनगर स्थित डिफेंस पब्लिक स्कूल ज्वाइन कर ली।
मेरी एक मित्र ने मुझे अनुशासन और कार्य की अधिकता बताते हुए ये विद्यालय नहीं जॉइन करने की सलाह दी। जिसे पतिदेव ने हँसी में उड़ा दिया कि 'अच्छा है सुनीता का बचपना दूर होगा अनुशासन में रहेगी... और काम की चिंता नहीं घर के काम में मैं मैडम का साथ दूँगा।' मैं अक्सर अपनी उस सहेली को अपनी चुस्ती- फुर्ती का राज बताकर तथा स्वयं को भाग्यशाली मानती हूँ कि मैं डिफेंस परिवार की सदस्या हूँ।
सेना के अनुशासन में रहते हुए चुस्त-दुरुस्त प्रबंधक महोदय रिटायर्ड मेजर एस. के शर्मा, उड़ती चिड़िया के पंख गिनने में सक्षम,विविध भाषाओं की ज्ञाता, अनुभवी और पेनी दृष्टि का वरदान प्राप्त निदेशिका श्रीमती जयश्री शर्मा, तीक्ष्ण बुद्धि कार्य के प्रति निष्ठा और समर्पण, ऊर्जावान प्रधानाचार्या आदरणीय मीतू शर्मा, हर अध्यापक-अध्यापिका को कार्य सिखाते हुए हौंसला प्रदान करती ममता और प्यार से भरी वात्सल्य की प्रतिमूर्ति वाइस प्रिंसिपल सीमा सक्सैना और काॅर्डीनेटर संध्या सक्सैना के साथ ही मेरी बड़ी बहन, मेरी सखी या मेरी गुरु मंजू जोशी जिन्होंने हर कदम पर मेरा साथ दिया तथा आज भी मेरी हर छोटी-बड़ी समस्या को वही सुलझाती हैं।
#डिफेंस स्कूल के कड़े अनुशासन को देखकर घबराहट जरूर हुई किंतु धीरे-धीरे स्वअनुशासन सीख लिया। यहाँ आकर पता चला कि पढ़ाने के अतिरिक्त हर कार्य कंप्यूटर पर ही करना होता है। पतिदेव के आई टी एक्सपर्ट होने के कारण मुझे कभी कंप्यूटर सीखने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। लेकिन ये जानकर पूरी रात नींद नहीं आई कि कल से हमें भी कार्य करने के लिए आईडी पासवर्ड मिल जाएंगे।
लेकिन स्कूल पहुँचकर देखा कि हम लोगों को सिखाने (ट्रेनिंग) हेतु स्कूल के आई टी विभाग के अतिरिक्त बाहर से भी आई टी एक्सपर्ट बुलाए गए। शनिवार को हमारी ट्रेनिंग होती जो आज तक बदस्तूर जारी है। आज मुझे कंप्यूटर की अच्छी जानकारी है जो डिफेंस स्कूल की ही देन है. कोरोना के इस बुरे दौर में हमारा पूर्व प्रशिक्षण बहुत काम आया।
अपने अध्ययन के दौरान मैं काफ़ी प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी। किसी अन्य विद्यालय में कार्य करते हुए मैं अपनी इस रुचि को भूल सी गई थी लेकिन डिफेंस पब्लिक स्कूल में होने वाली गतिविधियों को देखकर मैं रोमांचित हो उठी, फिर से मेरे मन में बचपन में किया अभिनय, वादे-विवाद, आशु-भाषण, कविता पाठ आदि की यादें हिलोरें लेने लगी। मैंने नहीं सोचा था कि अंतर्विद्यालय जैसी महत्वपूर्ण गतिविधि में छात्रों को तैयार करने का कार्य मुझे सौंपा जाएगा। किंतु जब प्रधानाचार्या आदरणीया मीतू शर्मा ने विश्वास के साथ मुझे कार्य सौंपा तो मैंने भी उन्हें i
# समर्पण
निराश नहीं किया। जैसा कि हर प्रतियोगिता में एक ही व्यक्ति अथवा टीम प्रथम रहती है उसी प्रकार मेरे छात्र भी कभी जीतते - कभी हारते लेकिन मैंने एम. डी सर और डायरेक्टर मैम, प्रिंसिपल मैम के चेहरे पर निराशा या गुस्सा नहीं देखा उन्होंने सदा ही अपने अनमोल वचनों से प्रतिभागियों का मनोबल बढ़ाया।
अब अक्सर ही मुझे विद्यालय में होने वाली गतिविधियों से संलग्न किया जाता... यही वो समय था जब मैं अपने लेखन का शौक पूरा करती तथा पहले से लिखकर भरी गई डायरियों के लेख, कहानी, कविता को उपयोग में लेती। मंचों पर बोलना छोड़ चुकी थी किंतु विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करने के कारण अभिव्यक्ति का अवसर प्राप्त हुआ।
सर और मैम द्वारा अपने लेखन की प्रशंसा पाकर हौसलों को उड़ान मिली, विद्यालय पत्रिका के संपादन से प्रेरणा पाकर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगी।
मैंने जिक्र किया था कि चंडीगढ़ प्रवास के दौरान भी मैंने लेखन किया था किंतु वो डायरियों तक सीमित था। अब डिफेंस पब्लिक स्कूल में मेरे उन्हीं अनुभव और लेखों को मैंने लघु नाटिकाओं के रूप में लिखा और विभिन्न अवसरों पर छात्रों से अभिनीत करवाया। अर्थात् अब मेरी सुप्त सी- अलसाई लेखनी ने फिर अंगड़ाई ली और चल पड़ी समाज के ऊबड़ - खाबड़, टेढ़े-मेढ़े रास्तों को समतल बनाने।
विद्यालय में मेरे साथ कार्य करने वाले सभी शिक्षकों से मैंने कुछ ना कुछ सीखा ही है - श्वेता भाटिया मैम से हर परिस्थिति में मुस्कुराना, धैर्य और संगीता जोशी मैम के साथ लंबी साहित्यिक चर्चाएँ,प्रीति कपूर मैम के साथ राजनैतिक चर्चाएँ, आईटी डिपार्टमेंट - मीनाक्षी मैम, गौरव, शचि के महत्वपूर्ण योगदान के साथ ही सरोज मैम, मीनाक्षी शर्मा, सुनीता दत्ता रूबी, स्नेहा, जूही, रेखा गुप्ता शचि, राशि, टीना, जया,पूजा ज्योतिका,गुंजन,सरला, सुप्रिया सुनील, शिल्पी, शिल्पा, संगीता खण्डेलवाल, शालिनी, मंगला, नेहा नीरज, गरिमा निर्मला, रश्मि जैसी सह अध्यापिकाओं के साथ ख़ुशनुमा माहौल में काम करते हुए बहुत सकारात्मक अनुभव हुए परिणामस्वरुप 'वर्तिका' का सृजन हो पाया।
सुनीता बिश्नोलिया © ®
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नमस्कार मैम,
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग्स को पढ़कर हिंदी विषय की कमी महसूस नही हो रही, सच में हिंदी भाषा ना केवल हमारी सांस्कृतिक बल्कि मानवीय व्यवहार को उत्तम बनाने के लिए सर्वोच्च ज्ञान है। आपको आपके पुस्तक विमोचन की बधाई। मैं जरूर ही इसे पढ़ना चाहूंगा।
बहुत बहुत धन्यवाद बेटा 🌹🌹🌹
हटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंजरूर पढ़िए दिव्यांश बेटा आप पुस्तक और पढ़कर टिप्पणी भी कीजिए
जवाब देंहटाएंBeautiful mam I am Harshil
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