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बुआ कहती थी - 4. जंगली सूअर से सामना #राव राजा कल्याण सिंह का सुशासन

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बुआ कहती थी - - -4

#राव राजा  कल्याण सिंह.... 

                बुआ के किस्सों की टोकरी से फ़ूलों से बिखरते अजब-गजब किस्से..... आज एक किस्सा स्वाधीनता से पूर्व का 
        आठ कमरों वाली हवेली में मैं और छोटी बहन अनु (अमृता) एक ही कमरे में सोती थी और हमारे पास सोती थी हमारी प्यारी बुआ। 
 आज बुआ किसके साथ सोयेगी इस बात पर हमेशा हम दोनों लड़ती थी वो कहती - 'आज बुआ मेरे पास सोएगी, मैं कहती कल तेरे पास सोयी थी आज मेरे पास सोएगी। 'लेकिन ना जाने बुआ कैसी जादूगरनी थी चुटकियों में झगड़ा खत्म कर देती थी। '  मैं खुश होती कि बुआ मेरे पास सोई है वो सोचती मेरे पास। कई बार बुआ माँ या ताईजी से बात करने लगती तो हम नींद का बहाना कर जबरदस्ती उन्हें कमरे में ले आते थे।
फिर शुरू हो जाती हमारी हा-हा, ही-ही... पर हम ऐसे हँसते कि हँसी की आवाज कमरे के बाहर नहीं जाती। अगर कभी गलती से हँसी की आवाज़ बाहर चली भी जाती तो बड़े भईया कमरे में आकर किताब पढ़ने की हिदायत दे जाते और अगर वो नहीं आते तो बड़े प्यार से बुआ डाँटा करती - 
 'छोरियो क्यांका दांत काढो हो नींद कोनी आवै के?'
'बुआ थारी कहाणी सुण्यों बिनां तो नींद सांच्यां ई कोणी आवै। 'तो जवाब में बुआ कहती - भौत  उंवार होगी सो ज्याओ। पर हमें भी ट्रिक थी बुआ से पुरानी बातें निकलवाने की। न जाने कितने किस्से कितनी कहानियाँ छिपी थी बुआ के ह्रदय में। छोटी बहन अनु भी कम नहीं थी बातों-बातों में निकलवा लेती थी बुआ से  पुराने किस्से, उसके बात बातें निकलवाने का उसका अंदाज़ ही अनोखा था जैसे एक दिन पूछा -      
        'बुआ आपने सच में जंगली सूअर देखा है क्या आप एक दिन कह रही थी ना कि आपने जंगली सूअर से लड़ाई होते-होते बची ।' 
       अब बात निकल ही गई तो बुआ खो जाती है अपने जवानी के दिनों में और बताती है कि - सीकर के  राजा  #राव राजा कल्याण सिंह अपनी प्रजा को अपने बच्चों की तरह समझते थे। उनकी सभी सुख सुविधाओं का ध्यान रखते। हर प्रकार के संकट से प्रजा की रक्षा किया करते थे। हमारे घर से हमारे खेत लगभग पाँच-छह कोस की दूरी पर है अपनी काकी - ताई के साथ बुआ भी खेत पर पैदल ही जाया करती थी। एक बार जब वो खेत जा रही थीं तो रास्ते में राजकर्मियों द्वारा ढिंढोरा पीटा जा रहा था कि 'जोहड़ (कच्चा तालाब) के आसपास जंगली सूअर देखा गया है कोई बाहर ना निकले।' कई जगह सैनिकों की टोली यही ढिंढोरा पीटती और सूअर को पकड़ने के लिए घूम रही थी। डर के मारे बुआ की  काकी-ताई घबरा गईं पर अपना खेत सामने ही था इसलिए बुआ के अपने खेत में जाने की जिद पर सोचा जल्दी सी अपने खेत में बनी झोंपडी में जाकर उसे बंद करके बैठ जाएंगे। 






चार-पाँच हथियार बंद लोगों को देखकर उनकी हिम्मत बढ़ गई और वो जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती अपने खेत में पहुँच गई। झोपड़ी के चारों तरफ कंटीली बाड़ और कंटीली झाड़ियों से बनाया दरवाजा या बाड़ थी । 
झोपड़ी भी पक्की थी और जानवरों से बचाव के लिए लकड़ी का मजबूत दरवाज़ा लगा था।  उन्होंने जल्दी-जल्दी कंटीली  बाड़ को हटाकर झोंपड़ी का ताला खोला और  उसके अंदर बैठ गई। दिन चढ़ गया था फिर भी चारों तरफ सन्नाटा था ज़रा सी आहट पर लगता कि जंगली सूअर आ गया। तभी किसी के भागने की आवाज़ आई तो बुआ ने झोंपड़ी के मोखे (बाहर झाँकने के छोटे से छेद) से देखा कि  हथियार बंद लोग चिल्लाते हुए भाग रहे हैं - 'पिपराळी (पड़ोस का गाँव )कानी गयो...और चिल्लाते हुए आगे भाग गए। 
 बुआ के साथ ही बुआ की काकी और ताई भी ये सुन रही थी इसलिए अब ये सुनकर उनका डर कुछ कम हुआ। अब बुआ की काकी जो कि लगभग बुआ की हमउम्र ही थी ने कहा कि उसे तो तरबूज खाना है। काकी की बात सुनकर हमारी बुआ और उनकी ताई आश्चर्यचकित हो गई कि ऐसे में इसे बाहर से कौन तरबूज लाकर देगा। लेकिन काकी ने तो झटपट झोंपड़ी का दरवाजा खोला और बाहर जाने लगी तो ताई बोली मैं बी आती हूँ। बुआ ने भी सोचा झोंपड़ी के सामने वाली बेल से ही तो लाना है ले आएंगी जल्दी। लेकिन जैसे ही दोनों कंटीली बाड़ के बाहर आई बुआ को काकी की चीख सुनी। बुआ ने खतरे को भांपकर झोंपड़ी में रखी दो जेळियां उठा लीं और दौड़ी बाहर। लेकिन बुआ को कुछ नहीं दिखा जबकि वो ये देखकर हैरान थी कि जहाँ काकी, ताई को झोंपडी की तरफ खींच रही है वहीं ताई-काकी को पीछे  की तरफ खींच रही थी।  जब तक बुआ उनके पास पहुँचती तब तक खींचतान में दोनों के कपड़े भी फट गए थे। 
        बुआ जेळी को लहराती हुई दौड़ कर बाहर आई बाहर तो काकी-ताई को एक दूसरे को खींचते देखकर आश्चर्यचकित हो गई। 
   उनकी आँखें उस जंगली सूअर को ढूंढ रही थी। 
वो कुछ पूछे उससे पहले काकी उन्हें पीछे रहने का इशारा कर रही थी पर उनकी और ताई की खींचतान बंद नहीं हुई। 
    बुआ ने बताया कि वो कदम आगे  बढ़ाने ही वाली थी कि काकी के मुंह से निकला.... स..स साँप .. साँप 
 छोरी आगे मत आ... काकी के मुँह से इतना सुनते ही ताई और बुआ ने नीचे देखा तो क्या देखती हैं कि बुआ के बिल्कुल सामने काला सांप बैठा है। 
    उसे  देखते ही बुआ  थोड़ी  पीछे हुई 
और ताई भी झटके से पीछे हट गईं। 
   बुआ ने बताया अगर इधर से मैं और  उधर काकी-ताई जरा भी आगे बढ़ते तो साँप उन्हें काट सकता था। 
पर अभी तक साँप आगे नहीं बढ़ा...जाने साँप भी उन दोनों औरतों की खींचतान का आनंद ले रहा था। 
बुआ बताती है कि - "साँप को देखकर  हम तीनों जंगली सूअर को बिल्कुल भूल गईं और साँप था कि हमारी चंचल काकी के बालपणै के सौंदर्य को निहारता हुआ अपना साँप होना ही भूल गया और चुपचाप उसी जगह टिका रहा।" 
      बुआ बोली - "अब उन दोनों डरपोक औरतों से तो उम्मीद कर नहीं सकती थी इसलिए मैंने ही हिम्मत करके साँप को जेळी में डालने की कोशिश की। एक दो बार तो  साँप ने नखरे दिखाए और थोड़ा प्रतिकार भी किया लेकिन मेरे आगे बड़े- बड़े हार मान लेते थे वो तो बिचारा साँप था 
इसलिए तीसरे चौथे प्रयास में मैंने साँप को जेळी में डाल ही लिया और छोड़ आई कांकड़ पार। "
  बुआ की बात खत्म होते ही हम बहने एक साथ बोल उठी क्योंकि कहानी में सस्पेंस शेष था।
  'बुआ आपकी काकी तो साँप को देखकर डर रही थी पर आपकी ताई क्यों डर रही थी। ' 
     हमारी बात सुनकर बुआ हँसते हुए कहती...
    'बेटा ताई को लगा कि काकी ने जंगली सूअर देख लिया और वो बिल्कुल झोपड़ी के पास आ गया। इसलिए ताई हमारी काकी को खींचकर झोंपड़ी में लाना चाह रही थी जबकि उधर ही साँप था इसीलिए काकी उन्हें दूसरी तरफ से खींच रही थी और इसी खींचतान में उनके कपड़े भी फ़ट गए। 
......और बुआ जंगली सूअर का क्या हुआ आपने उसे नहीं मारा जब तक अमृता के मन में किसी भी बात का संशय रहता था उसे मिटाए बिना अमृता को नींद भी नहीं आती थी, इसीलिए अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उसने बुआ से दूसरा प्रश्न किया।       
       "कठै  हिम्मत ही बी सूअर की मेरो सामनो करण की उनै थारी बुआ कै खेत मैंआणै को पतो चाल ग्यो औेर यो जाणतां हई बो भाग ग्यो  
बीड़ (जंगल ) कानी।". कहकर बुआ मुस्कुरा देती और हम अपनी बुआ को देखकर गर्व से भर उठते। 
सुनीता बिश्नोलिया 


 




 


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