,सुप्रभात
वो तेरा हँसना पल-पल और रूठना क्षण भर में,
पास नहीं होने से केवल अहसासों में याद आया।
बातों के झरने से शीतल झरता था अविरल पानी,
पानी सी शीतल बातों में मेरा होना याद आया।
हिरनी के चंचल-चक्षु में शायद कोई रहता था,
तेरे नयनों की नगरी में,मेरा होना याद आया।
घनी उदासी में सर रख कर जिस कांधे पर रोते थे,
तेरे केशों की छाया को हाँ हम दुनिया कहते थे,
निष्ठुर मेरी अरी प्रियतमा बोलो भी तुम कहाँ गई,
बाती से इस जलते दिल को हर तेरा छलावा याद आया।
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