अंजना का लाल-लाली,
सूर्य की से खेलता,
चंचल-चपल-नादान बालक,
' राम' धुन में डोलता।
दिव्य लेकर जन्म 'भक्त'
हनुमान ने हुँकार की,
संसार को भय-मुक्त कीन्हा,
जगत ने जयकार की।
वीर वो महावीर तब,
मोह राम के में पड़ गया,
चरणों में पाने को जगह,
विपदा से हनुमत भिड़ गया।
सागर को समझा तुच्छ ,
उसके पार 'बजरंगी' चला,
पवन का वो पुत्र बाला,
पवन से भी द्रुत उड़ा।
स्वर्ण-नगरी में पहुँच
हनुमत न खोया चमक में,
माँ से मिला देने वो भगवन
के संदेश के संकल्प में।
वाटिका में देख माता को,
को ह्रदय पुलकित हुआ,
पर देख माता की दशा,
संताप में वो भर उठा।
देख कर चूड़ामणि ,
माँ को हुआ विश्वास अब,
है श्री राम का ही दूत वानर,
संशय मिटे माता के सब।
रोक पाया न उन्हें,
निशिचर कोई भी लंक का,
क्षुब्धा की तृप्ति की फलों से,
आशीष ले माँ अंक का।
निशिचर समूह के बाँधने से,
ना बँधा महावीर वो,
उपवन उजाड़ा और जलाकर ,
के गया लंका को वो।
राम-रावण युद्ध में,
घायल हुए भ्राता लखन,
जब एक बूटी न मिली,
ले आए धर-पर्वत सकल।
हनुमान के मन में बसे हैं,
राम और माँ जानकी,
संसार के संकट जो हरते,
जय बोलो सब हनुमान की।
#सुनीता बिश्नोलिया
राम-नाम हनुमान से,जग में फैला जाय,
बिना भक्त हनुमान के,राम कहाँ सुख पाय।
देख जगत की ये दशा,सोच रहे हनुमान,
संकट खुद पैदा करे, है ये जग नादान।।
संकट हरता जगत का,संकटमोचन वीर,
दीनों की विपदा हरे,पवन-सुत महावीर।
राम-नाम जपते सदा,पवन-तनय हनुमान,
मन मंदिर में राम है,मन ही पावन धाम।
आज जगत को चाहिए,एक और हनुमान,
दैत्य धरा पर हैं बहुत,धरा बनी शमशान।
हनुमत जी की आरती,गाता है हर कोय,
भूतों से धरती भरी,सभी भक्ति में खोय।
#सुनीता बिश्नोलिया
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