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गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

"भूलोक का गौरव प्रकृति का लीलास्थल कहाँ, 
फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है, 
उसका कि जो ऋषि भूमि है,वह कौन ? भारत वर्ष है।।" 
        हिमालय जिसका मुकुट और गंगा यमुना  जिसके हृदय का हार है, विंध्याचल जिसकी कमर है तो कन्याकुमारी इसके चरण। कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्राकृतिक लावण्य तथा अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी मेरे भारत की जय।
   जिसका यशगान गाते नहीं थकते कवि,  
सियाचिन की गला देने वाली ठंड हो या जैसलमेर का जला देने वाला ताप इसके पहरे में नहीं रखते कमी इसके वीर।
    कोटि-कोटि नमन मेरे देश को, तथा समस्त देशवासियों 72 वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। 
भारत के तीन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वों में एक है गणतंत्र दिवस जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है।   
 
       आज़ादी के पश्चात ड्राफ्टिंग कमेटी को 28 अगस्त 1947 को भारत के स्थायी संविधान का प्रारूप बनाने जिम्मेदारी सौंपी गई। 4 नवंबर 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में भारतीय संविधान का प्रारूप सदन में रखा गया। भारतीय संविधान को तैयार होने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का  समय लगा तथा 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया । 
          आत्मगौरव के इस पर्व  पर हृदय में उल्लास और उमंग लिए भारतीय सेना द्वारा विजय चौक से शुरू होकर इंडिया गेट तक भव्य परेड की जाती है। इस अवसर पर जल, थल, नभ तीनों सेनाओं द्वारा राष्ट्रपति को सलामी देकर अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन कर राष्ट्रीय शक्ति और गौरव का प्रदर्शन किया जाता है।
 राष्ट्र के इस पर्व पर विभिन्न राज्यों की परंपरा और संस्कृति के गीत संगीत से राज्य का गौरव गान के प्रस्तुतिकरण के साथ ही सांस्कृतिक और पारंपरिक झांकी प्रदर्शित की जाती है। 
    क्रांति का गीत, 
हिंदुस्तान की जीत,
जोश तिरंगा 
     "तिरंगा शान है मेरी तिरंगा जान है मेरी.... 
  तिरंगे की इसी आन बान और शान को सलामी देते हैं देश के वीर हमारी वायुसेना आसमान से केसरिया, सफेद और हरे रंग के फूल बरसाकर। 

देख तिरंगा मन में उमड़ता,संकल्पों का सागर,
देश भक्ति के भाव भरी है,हर जन-मन की गागर।

ये रंग उठाते हर दिल में,भावों के हैं तूफ़ान,
तीन रंग का यही तिरंगा,देश की है पहचान।

शौर्य गीत वीरों के केतु,लहराकर के गाए।
शान-मान अभिमान देश के,वैभव गान सुनाए।

केसरिया बाना धर कर ,हर वीर समर में है जाता,
अंबर तक ये शौर्य पताका,जवां देश का फहराता।

काली करतूत शत्रु की ,ना देख हृदय घबरा जाए
देख रिपु की कुटिल चाल,आँखों में रक्त उतर आए।

श्वेत शांत ये विजय पताका,उत्साह ह्रदयों में भरकर,
परचम देश का फहराती,लहर-लहर लहराकर।

सत्य-न्याय के हेतु ही ,ये पताका-पवन संग इठलाती।
सौम्य शांत पहचान देश की,हिमगिरी शृंग भी बतलाए।

वैभव और सौरभ बिखराते,बहु ग्राम तिरंगे के नीचे,
हैं विपुल अन्न भण्डार देश में,गंगा धरती को सींचे।
यह भी देखें 
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर

        




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