मिल्खा सिंह का जन्म: 20 नवंबर 1929 में पाकिस्तान के गोविन्दपुर में हुआ।
स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक मिल्खा को जिंदगी ने काफी जख्म दिए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी । भारत विभाजन के समय हुए खून खराबे में मिल्खा सिंह ने अपने माँ बाप को खो दिया।
वो बहुत मुश्किल से वे शरणार्थी बन कर ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से भारत आए और दिल्ली के शरणार्थी कैंपों में छोटे-मोटे जुर्म करके गुजारा करते हुए जेल भी गये। इसके अलावा सेना में भर्ती होने की तीन बार कोशिश की पर वो असफल रहे।
महान एथलीट 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह देश के लाडले धावक थे।वो भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट्स में से एक थे।
दैनिक भास्कर अखबार की रपट के अनुसार मिल्खा सिंह एक ऎसा हिंदुस्तानी एथलीट जिसकी जीत पर पाकिस्तान भी खुशी मनाता था।
मिल्खा जब किसी देश में तिरंगा लेकर उतरते थे वो जीतते थे तिरंगा ओढ़कर घूमते थे, तो पाकिस्तान में भी जश्न मनता था। वे संभवतः एथलीट जिनकी जीत पर पाकिस्तान भी खुश होता था।
मिल्खा सिंह ने 1960 में रोम ग्रीष्म ओलंपिक और 1964 के टोक्यो ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
वो देश के पहले धावक थे जिन्होंने
कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलवाया। उन्होंने एशियाई खेलों में चार स्वर्ण पदक जीते।
कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक प्राप्त करने पर पूरा विश्व उन्हें जानने लगा।
इसी समय पर उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला किंतु बचपन की रक्त रंजित स्मृतियों के कारण वो वहाँ नहीं जाना चाहते थे । लेकिन न जाने पर राजनैतिक उथल-पुथल के भय से उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा गया और उन्होंने पाकिस्तान जाकर दौड़ने का निश्चय किया ।
मिल्खा सिंह ने यहाँ सरलता से दौड़ जीत ली ।वहाँ अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक थे पर उन्हें दौड़ता देखकर वो इतने प्रभावित हुए कि बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।
एशियाई खेलों में चार गोल्ड मेडल और 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता। उनके कैरियर की सबसे बड़ी और रोमांचक वह दौड़ थी जिसे वो हार गए। 1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर फाइनल दौड़ में 0.1 सेकंड से वो चौथे स्थान पर रहे।उनकी टाइमिंग 38 साल तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड रही।
भारत सरकार की तरफ से 1959 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था।
राष्ट्रमंडल खेलों में पहले भारतीय के रूप में व्यक्तिगत स्पर्धा का मेडल जीतने पर उनके अनुरोध पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया था।
रोम ओलंपिक में चूकने का मलाल उन्हें ताउम्र रहा।वो किसी भारतीय को ये मेडल लाते देखना चाहते थे पर 61 सालों बाद भी उनका सपना पूरा नहीं हुआ।
दिनांक 18.06.2021को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर हॉस्पिटल में रात 23:15 बजे के तकरीबन कोरोना से उनकी मौत हो गई।
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