दोहा गीत - - - - फिर-फिर जावे बादली_
बैठी हूँ मैं बावरी, ले बरखा की आस।
दिन-गिन सावन के कटें,ये मन हुआ उदास।।
गहरे बादल हैं घिरे, बहती मंद समीर।
फिर-फिर जावे बादली, फिर मन हुआ अधीर।।
फिर भी मन में आस है, देख गगन में रंग
चमक रही है दामिनी, हृदय मेघ का चीर।।
दूर देश बरसी घटा, है मुझको अहसास।
दिन-गिन सावन के कटें,ये मन हुआ उदास।।
थके-थके देखो नयन, रस्ता रहे निहार।
इन आँखों में है छिपा, बनकर आँसू प्यार।।
कह कब तक न आएगी, धोरां वाले देश
आन बुझा मन- प्यास तू, छेड़ मेघ मल्हार।।
सूखी धरती प्रेम की, सूखा सावन मास।
दिन-गिन सावन के कटें, ये मन हुआ उदास।।
सुनीता बिश्नोलिया ©®
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