नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"
नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"* संस्करण 2021 में शामिल करने एवं पुस्तक की प्रति उपलब्ध करवाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Manisa Sharma जी।
नारी अस्मिता : अर्थ परिभाषा और यथार्थ
(ऐतिहासिक, सामाजिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य) संपादन- डॉ. मनीषा शर्मा, डॉ. सुधा राठी, डॉ. अनन्ता माथुर के संपादन में एक स्त्री के समग्र स्वरुप के दर्शन के उद्देश्य से तैयार की गई बहुत ही महत्तवपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक की यही विशेषता भी है कि नारी जीवन से जुड़े विविध पहलुओं का शोध, लेखन और सभी कार्य महिला महिला रचनाकारों द्वारा ही संपादित किए गए हैं।
डॉ. मनीषा शर्मा बताती हैं कि मेरे घर में सहायिका आती थी 18 - 20 साल के आसपास की उम्र वाली। यथा नाम तथा गुण वाली 'खुशी' हमेशा चहकती दिखाई देती थी।
एक दिन उसने इसी तरह चहकते हुए बताया कि कल उसके पति ने उसकी सर्विस(पिटाई) की। बच्चों ने आश्चर्य से उसे देखते हुए पूछा आप फिर भी इतनी खुशी से यह बात कह रही हैं। इस पर उसने प्रत्युत्तर दिया कि इसमें दुखी होने की क्या बात है, मैं कुछ दिन सच में ठीक हो जाती हूँ।
उफ्फ... क्या सोच है!
मेरा मानना है कि ये उसकी अपनी सोच नहीं वरन बचपन से उसमें पुरुष के हाथों पिटने के संस्कारों का पोषण किया गया।
क्या वास्तव में ये संस्कार है?
क्या होगा उस समाज का जहाँ स्त्री को पुरुष की ठोकर में रहकर भी खुश होने की सीख दी जाती है।
अब कोई ये ना कहे कि ये तो पति-पत्नी की आपसी समझ है, हर स्थिति में पत्नी द्वारा पति की सेवा करना ही पत्नी का कर्त्तव्य और भारतीय संस्कृति है।
'खुशी' का किस्सा सुनाते हुए डॉ.मनीषा कहती हैं कि मैं आपको कहानी क्यों सुना रही हूँ इसलिए कि हम सोचते हैं कि आज के आधुनिक युग में नारी अस्मिता पर बात करने की आवश्यकता क्या है? आज जब नारी घर के साथ दफ्तर व्यवसाय जमीन आसमान सभी तक पहुँच रही है। इस युग में नारी अस्मिता का प्रश्न निरर्थक है लेकिन नहीं आज भी यह प्रश्न उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उस समय था जब इसका आरंभ हुआ होगा।
खुशी को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसका भी कोई वजूद है, कोई सम्मान है, पहचान है, कोई अस्तित्व है या अस्मिता है उसे लगता था कि जैसे एक मशीनी गाड़ी सर्विस होने के बाद अच्छी तरह से चलने लगती है उसी तरह वह भी सर्विस के बाद ठीक से काम करने लग जाती है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या खुशी कम पढ़ी लिखी निर्धन लड़की थी इसलिए उसे इन सब का अहसास नहीं था। बहुत बार हमने अंग्रेजी पढ़ी लिखी ऊँचे पदों पर पहुँची या धनवान स्त्रियों को भी इस अवस्था में देखा है। वे अपनी डिग्री, पद, धन, कपड़े, गहने नौकर चाकरों के चक्रव्यूह में घिरी इसी तरह प्रफुल्लित दिखाई देती हैं कि स्वयं की पहचान उसके लिए कोई मुद्दा ही नहीं होती।
पुस्तक मात्र नारी की अस्मिता के संघर्षों को भी नहीं दर्शाती अभी तो उसके समाधान भी दिखलाती है इसकी विवेकशील लेखिका ने नारी के विषय में बात करने के लिए पुरुष को सदैव अपराधी के रूप में कटघरे में खड़ा नहीं रखती बल्कि उसे साथ लेकर चलना चाहती है ना ही वह स्त्री मुक्ति का झंडा लेकर खड़ी दिखाई देती हैं बल्कि से संवाद स्थापित कर इस दूरी को पाटना चाहती हैं।
इस पुस्तक में मेरा भी छोटा सा योगदान रहा और मैंने #कविताओं में नारी अस्मिता: तब से अब तक! में कविताओं में सीता, द्रोपदी, यशोधरा लेकर वर्तमान कविताओं में महिला अस्मिता । महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ ही स्त्री जीवन के संचित अनुभवों को पीड़ा को व्यक्त करती ऋतुराज की कन्यादान
#आलोक धन्वा की भागी हुई लड़कियाँ..
#ममता कालिया #शारदा कृष्णा, #नीलिमा टिक्कू
#शकुंतला शर्मा #नूतन गुप्ता, #रूपा सिंह, #तस्नीम खान, #मुखर कविता, #शिवानी जयपुर, #प्रज्ञा श्रीवास्तव, #पूनम धाबाई की कविताओं में नारी अस्मिता को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
हम उन्नीस लेखिकाओं के सहयोग और संपादिका-त्रय के अथक परिश्रम से तैयार है यह गुलदस्ता।
आपके स्नेह और शुभकामनाओं से हमारी पुस्तक *"नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"* संस्करण 2021 अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है।आप दिए जा रहे लिंक से पुस्तक मंगवा सकते हैं ।साथ ही यदि आप सीधे प्रकाशक से इसकी प्रति लेंगे तो प्रकाशक के द्वारा दी जा रही छूट और हमारे रॉयल्टी के हिस्से में से आपको यह पुस्तक 30% discount के साथ भी मिल सकती है यदि आप सीधे प्रकाशक से इसकी प्रति लेना चाहेंगे तो प्रकाशक का विवरणहै-
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