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मैं भी सुदामा - टीना जोशी

          हँसमुख और खुश मिजाज़ टीना जोशी के मुख पर पर आज  भी एक मासूम बच्ची की मुस्कराहट खेलती है। वो लिखती हैं बचपन की मीठी - मासूम और सुखद स्मृतियों को।उसी नटखट अंदाज में जिस अंदाज में बच्चे अपनी चपलता और चंचलता से मोहित करते हैं अपनों को। आइए हम भी टीना जी के साथ चलते हैं उनके बचपन की दुनिया में जी लेते हैं अपना बचपन।

     
            मैं भी सुदामा 

             एक बात मेरे मन में कई बार आती है सोचती हूँ कहूँ या नहीं चलिए कह ही देती हूँ....जापान जैसे विकसित देश में प्रारंभ के 7 वर्ष बच्चों को तमीज और तहजीब सिखाने में बिताए जाते हैं। लेकिन हमारे भारत में प्राथमिक शिक्षा को बिल्कुल भी प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
इसकी जीती जागती मिसाल है मेरी ये कहानी कैसे..? 
 आप पढ़िए फिर आप अपने आप मेरी बात मानने को मजबूर होंगे चलिए तो सुनिए.. 
        हम तीन भाई बहन हैं बड़ी दीदी फिर मैं और मेरा एक छोटा भाई।
      मैं बहुत छोटी थी पर.. दीदी को स्कूल जाते देखकर न जाने मेरे मन में स्कूल जाने की इच्छा जाग्रत होने लगी और मैं भी जिद करने लगी। स्कूल जाने की। 
      दीदी को रोज सुबह स्कूल जाते देख मुझे लगता कि स्कूल ऐसी जगह है कि वहां सभी बच्चे बहुत मस्ती करते हैं  और इसी सोच के साथ मैं भी पहुँच गई विद्यालय जो कि मेरे घर के नजदीक ही था। शुरु शुरु में तो विद्यालय जाना मुझे बहुत भाता पर कुछ ही दिनों बाद स्कूल जाने के प्रति मेरा मोह भंग होने लगा। क्योंकि रोज जल्दी जो उठना पड़ता था । 
      एक दिन नींद ही नहीं खुली माँ ने भी जल्दी नहीं उठाया मैं जल्दी जल्दी उठी और उठते ही स्कूल के लिए तैयार हो गई । आव देखा न ताव बस उठाया अपना गुलाबी रंग का थैला और चल दी स्कूल को। मां ने घर पर गुलाबी रंग की दो थैलियां सिल कर रखी थी। जिनमें एक था मेरा बस्ता जो मैं स्कूल ले जाया करती थी और दूसरा थैला बाजार जाने के लिए। 
       आधे रास्ते तक पहुंची तब अचानक थैले को दबाकर देखा तो कुछ किरकिरी सी लगी अरे यह क्या इसमें तो चावल है मेरी किताबें कहाँ है? तब होश आया कि, जल्दी जल्दी में मैं अपना बस्ता लाने के बजाए बाजार ले जाने वाला थैला ले आई हूं। आज वैसे भी मुझे  स्कूल के लिए बहुत देर हो रही थी। मैं फिर भागी भागी घर  गई और जल्दी से अपना गुलाबी रंग का थैला उठाया और चल दी स्कूल को। जब घर आकर बताया कि आज मैं स्कूल में अपना बस्ता ले जाने के बजाय बाजार ले जाने वाला थैला ले गई थी और उस थैले में चावल  थे। बस फिर क्या था सब ने मेरा बहुत मजाक बनाया सब मुझे सुदामा सुदामा कह कर चिढ़ाने लगे। सुदामा तीन मुट्ठी चावल लेकर कृष्ण के पास गए थे भगवान कृष्ण ने तो तीन मुट्ठी चावल के बदले उनकी जिंदगी बदल दी थी लेकिन मुझे कई दिनों तक सुदामा के नाम से चिढ़ाया गया। 



      टीना जोशी. (M.A ,B.Ed (संस्कृत)
वर्तमान में- राजगिरि पब्लिक स्कूल दोहा में कार्यरत हैं आपको लिखने की प्रेरणा मुंशी प्रेमचंद और रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानियों से मिली।

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