सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कौन कहता है, सपने पूरे नहीं होते - लोकार्पण सपनाज ड्रीम्स इन डेजर्ट (एक पाती), अस्मिता (कहानी संग्रह)

लोकार्पण- सपनाज ड्रीम्स इन डेजर्ट (एक पाती) 

 फरिश्ता बन गया कोई चमकता है सितारों में ,
बनके हर फूल में खुशबू वो रहता है 
बहारों में, 
किन्हीं आँखों का वो सपना है, उन्हीं आँखों में जिंदा है - 
 फँसे ना कोई लहरों में वो रहता है किनारों में।। 
अस्मिता ( कहानी-संग्रह)



  
    कौन कहता है कि सपने सच नहीं होते हाँ! काँच से नाजुक और पानी के बुलबुले से क्षण भंगुर होते हैं सपने। 
        कुछ सपने जो क्षण भर के लिए आँखों में आते हैं पर कुछ आँखें इसी एक क्षण में उन सपनों को आँखों के रास्ते ह्रदय में बंद कर लेते हैं।
     सपनों को पूरा करने की ठान चुका व्यक्ति जुट जाता है जी जान से अपने सपने को पूरा करने। 
    एक सपने की किलकारियाँ गूंजी थी नीलम शर्मा जी के आँगन में नीलम जी ने भी देखा था एक सपना... बस क्षणिक ।     
      बाईस वर्षो तक उस सपने को आँखों में काजल की तरह लगाया। जीवन की हर रिक्तता को अपनी हँसी से  पूरा करता अपनी सुखद उपस्थिति की अनुभूति के अनूठे एहसास से देखते ही देखते उस बुलबुले ने सपना जी के दिल के कोने में खास स्थान ले लिया लिया। 
       उस सुहाने 'सपने' को देखती उनींदी माँ कैसे टूटने देती अपना सपना। नियति ने बहुत कोशिश की माँ से उनका सपना छीनने की। बहुत कोशिश की उस बुलबुले को मिटाने की। बहुत दुःख, बहुत दर्द 
कभी आँसू तो खामोशी के सागर में डुबोने चली नियति भी हार मानकर नतमस्तक हो गई उस दृढ़ निश्चयी माँ के आगे। 
  ना तो माँ हारी ना ही उसका सपना टूटा क्योंकि माँ ने अपनी आँखों से अपने सपनों के मोती बहाने से मना कर अपनी पलकें बंद कर लीं और बना लिया एक 'स्वप्नलोक' अपनी सपना के लिए। 
  सपनामय हो चुकी नीलम शर्मा जी को आज भी राह दिखा रहा है उनका प्यारा और खास सपना। 
    हर बालिका में देखती है वो 'सपना' और शिक्षा के आलोक से बहुत सी जरूरतमंद और ग्राम्य बालाओं के जीवन  से निरक्षरता का अंधियारा मिटाकर अपने 'स्वप्नलोक' में तैयार कर रहीं हैं देश की सुनहरी शिक्षित पौध। 
     अपने 'सपने' की दिखाई राह पर चलकर बढ़ रही हैं आगे और साहित्य के माध्यम बयां कर रही हैं उस सपने से जुड़े किस्से और कहानियाँ । 
  इसी क्रम में रविवार 12 दिसंबर 2021 को वरिष्ठ लेखिका श्रीमती नीलम 'सपना' शर्मा की दो पुस्तकों' 'सपनाज ड्रीम्स इन डेजर्ट' ( एक पाती ) एवं अस्मिता - (कहानी-संग्रह) का लोकार्पण संस्था 
#नारी कभी ना हारी' के बेनर तले सपना  के 'स्वप्नलोक'हुआ ।
   आवश्यक कार्य होने के कारण वीना चौहान दी कार्यक्रम में नहीं आ पाई किंतु तकनीक की सहायता से वो साथ ही रहीं।
 उनकी तय किए कार्यक्रम के अनुसार कार्यक्रम की अध्यक्षता गलता पीठाधीश्वर श्री अवधेशाचार्य जी ने की  कार्यक्रम के  विशिष्ट अतिथि थे आदरणीय अनिल कौशिक जी तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे अतिथि #मन की टकसाल  फेम डॉ.बजरंग सोनी। थजिन्होंने हमेशा की तरह अपने वाणी का जादू बिखरते हुए श्रोताओं को सम्मोहित कर दिया और जब उन्होंनें वाणी को विराम दिया तब तक हर श्रोता भीगी पलकों पर हाथ फेरता दिखाई दिया । 
     डॉ. आशा शर्मा  जी और सतीश व्यास जी ने पुस्तकों की शानदार  समीक्षा के द्वारा श्रोताओं के हृदय में पुस्तकों को पढ़ने के लिए उत्कंठा जागृत की। 
      कार्यक्रम का सुंदर संचालन किया आदरणीय रानी तवंर जी ने। 

     शिक्षाविद शकुंतला शर्मा जी के सुगंधित पुष्प वृष्टि की भाँति सौम्य धन्यवाद ज्ञापन से हर हृदय महक उठा । 
      पहले दिन थोड़ी तबीयत खराब होने के कारण कार्यक्रम में जाना असंभव सा लगा  किंतु वीना चौहान दी एवं नीलम  ' सपना' दी के स्नेह एवं शकुंतला दी की प्रार्थना से मैं ठीक होकर कार्यक्रम में गई और सभी वरिष्ठ लेखिकाओं की ममता, लाड़ और प्यार पाकर निहाल हो गई ।
      कमलेश शर्मा दी, निर्मला गहलोत दी, आशा शर्मा ' अंशु दी, सुशीला शर्मा दी, रमा भाटी दी आदि के स्नेह से स्नेह पाकर अभिभूत हूँ।
  शानदार कार्यक्रम की सफ़लता के लिए नारी कभी ना हारी की हर सदस्या एवं संस्था की अध्यक्ष आदरणीय वीना चौहान दी तथा नीलम 'सपना' शर्मा दी को बहुत-बहुत बधाई  एवं शुभकामनाएं। 


टिप्पणियाँ

  1. शाबाश सुनीता बहुत बढिया लिखा है, बधाई शुभकामनाऐ ।

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित उदाहरण शैली और संवादात्मक वाक् कला श्रोताओं मंत्रमुग्ध कर देती है

      हटाएं
  3. बेहतरीन कवरेज। सादर अभिनन्दन।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुनिताजी,
    बेहद रूचिकर और सुंदर रिपोर्टिंग पढ़कर मन आह्लादित हो रहा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अद्भुत समीक्षा शैली पाठक के हृदय में पुस्तक पढ़ने की जिज्ञासा जागृत करती है आपको मेरा लेखन पसंद आया मेरा सौभाग्य है। हार्दिक धन्यवाद सतीश जी

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सूरमा - रामधारी सिंह ' दिनकर' - # पाठ्यपुस्तक - # नई आशाएँ

पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '-    सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर '    सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है,     कायर को ही दहलाती है |    सूरमा नहीं विचलत होते,     क्षण एक नहीं धीरज खोते |   विघ्नों को गले लगाते हैं,       काँटों  में राह बनाते हैं |    मुँह से कभी ना उफ कहते हैं,    संकट का चरण न गहते हैं |    जो आ पड़ता सब सहते हैं,     उद्योग- निरत नित रहते हैं |    शूलों का मूल नसाने हैं ,     बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं |         है कौन विघ्न ऐसा जग में,      टिक सके आदमी के मग में?      खम ठोक ठेलता है जब नर,     पर्वत के जाते पाँव उखड़ |     मानव जब जोर लगाता है,      पत्थर पानी बन जाता है |           गुण बड़े एक से एक प्रखर,       हैं छिपे मानवों के भीतर       मेहंदी में जैसे लाली हो,       वर्तिका बीच उजियाली हो |      बत्ती  जो नहीं जलाता है,      रोशनी नहीं वह पाता है |     कवि परिचय -    #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर

जलाते चलो - - #द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

भावार्थ   जलाते चलो - -  #द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जन्म 1 दिसम्बर 1916 को आगरा जिला के रोहता गाँव में हुआ। उनकी मुख्य कृतियाँ - 'हम सब सुमन एक उपवन के' , 'वीर तुम बढ़े चलो'...  जलाते चलो ये दिये स्नेह भर-भर कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा। ये दंतुरित मुस्कान हंसिनी का श्राप भले शक्ति विज्ञान में है निहित वह कि जिससे अमावस बने पूर्णिमा-सी; मगर विश्व पर आज क्यों दिवस ही में घिरी आ रही है अमावस निशा-सी। क्यों लड़ती झगड़ती हैं लड़कियाँ बिना स्नेह विद्युत-दिये जल रहे जो बुझाओ इन्हें, यों न पथ मिल सकेगा॥1॥ नारी अस्मिता और यथार्थ जला दीप पहला तुम्हीं ने तिमिर की चुनौती प्रथम बार स्वीकार की थी; तिमिर की सरित पार करने तुम्हीं ने बना दीप की नाव तैयार की थी। पन्नाधाय नारी अब कमज़ोर नहीं बहाते चलो नाव तुम वह निरंतर कभी तो तिमिर का किनारा मिलेगा॥2॥ वर्तिका रूप नारी का युगों से तुम्हींने तिमिर की शिला पर दिये अनगिनत हैं निरंतर जलाये; समय साक्षी है कि जलते हुए दीप अनगिन तुम्हारे पवन ने बुझाये। प्रेम नदी और स्त्री मगर बुझ स्वयं ज्

हिंदी कविता - लीलटांस #नीलकंठ

लीलटांस#नीलकंठ                      लीलटांस #नीलकंठ             अमृतसर ट्रेन हादसे के मृतकों को श्रद्धांजलि नहीं देखा था उन्हें किसी कुप्रथा या अंधविश्वास को मानते पर.. कुछ परम्पराएं थीं जो निभाते रहे सदा। दादा जाते थे दशहरे पर लीलटांस देखने  उनके न रहने पर  जाने लगे पिता।  घर से कुछ ही दूर जाने पर  दिख जाता था तब  धीरे-धीरे दूर होता गया  पिता की पहुँच से लीलटांस।  जाने लगे पाँच कोस खेत तक  ढूँढने उसे  हमारी साथ जाने की ज़िद के आगे हार जाते..  किसी को कंधे पर तो  किसी की ऊंगली थाम  बिना पानी पिए,  चलते थे अनवरत दूर से दिखने पर  लीलटांस... लीलटांस...  चिल्ला दिया करते थे  हम बच्चे.. और  .                            लीलटांस # नीलकंठ                                 विरह गीत  भी पढ़ें  बिना पिता को दिखे  उड़ जाता था लीलटांस, उसी को दर्शन मान रास्ते में एक वृक्ष रोपते हुए  लौट आते थे पिता घर,  अंधविश्वास नहीं  विश्वास के साथ। फिर से घर के नजदीक  दिखेगा लीलटांस।  सुनीता बिश्नोलिया ©®