बहुत आसान है किसी की
प्रशंसा में काग़ज़ रंगना
कितना मूर्ख है ना वो
सच उजागर करने में
काग़ज काले करता है।
फूलों की तरह बिखरा
झूठ छोड़कर वो
सच की शूलें चुनता है।
ईंट-पत्थर,लाठी और
कटुवाणी का हमला झेलकर भी
अपनी बात पर अटल रहता है ।
कितना मूर्ख है ना वो
झूठ के लिहाफ तले भी उसे
सिर्फ सच का कोना दिखता है।
आलीशान कोठी नहीं
दो कमरों के घर में रहता है
कितना मूर्ख है ना वो
बेहिसाब पैसे के भाव में भी
जाने क्यों नहीं बिकता है।
हमारी नजरों मूर्ख है वो
पर खुद को सच्चा पत्रकार
कहता है.. बात तो सही है..।
चलो देखते हैं
चापलूसों की दुनिया में
वो कब तक टिकता है।
सुनीता बिश्नोलिया
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