आँसू बहते आँख से,माता के अविराम।।
कान्हा झूले पालने, माँ मन में हर्षाय,
नजर न मोहन को लगे,कजरा मात लगाय।।
देख शरारत कान्ह की,मात-पिता मुसकाय।
नन्द-यशोदा की ख़ुशी,नयनों में दिख जाय।।
तुतली बोली कृष्ण की,माँ को रही रिझाय।
उमड़ रहा उल्लास जो,आँचल नहीं समाय।।
मोहन माखन-मोद में,भर लीन्हों मुख माय।
मात यशोदा जो कहे,कान्हा मुख न दिखाय।।
कान्हा ने उल्लास में,सखियन चीर छुपाय ।
सखियाँ रूठी कृष्ण से,नटखट वो मुसकाय।।
कृष्ण सामने जान के,सखियाँ ख़ुशी मनाय।
सुन मुरली घनश्याम की, सुध-बुध भूली जांय।।
कान्हा लेकर साथ में,ग्वाल-बाल की फ़ौज।
मन में भर उल्लास वो,करते कानन मौज।।
सुनीता बिश्नोलिया
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