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सूर्योदय - झीलों की नगरी उदयपुर

 रमा मेहता ट्रस्ट द्वारा आयोजित तीन दिवसीय 'कहानी लेखन' 'कार्यशाला' के तहत पिछले महीने झीलों की नगरी उदयपुर जाना हुआ।
      झीलों की नगरी में सबसे पहले बात करुँगी  बड़गाँव स्थित 'कृषि विज्ञान केंद्र' की जहाँ हमें ठहराया गया। शहर के फ्लैटों से निकलकर कृषि विज्ञान केंद्र के हरे-भरे प्रांगण में पहुंचकर लगा जैसे हम स्वर्ग में आ गई। अरावली पर्वत शृंखला से घिरे वहाँ के हरितिम वातावरण को देख हमारे हृदय में बचपन हिलोरें लेने लगा लगा। 
   मैं, शिवानी और तारावती सुबह उगते सूरज के साथ खिलखिलाती तो संध्या के सूरज को पकड़कर डूबने से रोकती।
     हम तीनों अलसुबह चाय  का कप उठाकर सीधे कृषि भवन की छत पर जा बैठती। जिधर भी नज़र घुमाओ हर तरफ़ हरी-भरी पहाडियाँ और इन्हीं हरीतिम पहाड़ियों के बीच दूर से दिखाई देती महाराणा प्रताप की बड़ी सी मूर्ति जैसे हमें अपने पास बुला रही हो।  
चिड़ियों की चहचहाहट,सुग्गे के स्वर और मोर की मीठी बोली सुनकर हृदय के तार-तार से स्वर लहरी फूट पड़ती और आँखों के आगे बचपन की यादें चित्रवत चलने लगती और अभिशप्त सी हम पाषाण प्रतिमा बनकर उस कर्णप्रिय संगीत को सुनते हुए उन दृश्यों को आँखों के रास्ते सदा के लिए ह्रदय में बसाने का प्रयास करती।
     सावन के महीने में हर तरफ हरियाली के राज में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती हम सखियाँ कभीं उत्शृंखल बालिकाओं की तरह दौड़ भाग करती तो कभी इन दृश्यों को मोबाइल में कैद कर सूर्य के आगमन की प्रतीक्षा करती। 
      संतरे के बागानों के पीछे से पर्वत शृंखला की ओट से धीरे-धीरे निकलकर बादलों के साथ लुका-छिपी खेलते हुए लालिमा बिखेरते सूरज के साथ चाय पीते हुए दिनभर के लिए ऊर्जा का संचय कर लेते। 
       जैसे  सूर्य का उदय और अस्त होना शाश्वत सत्य है उसी तरह चंद्र और तारिकाओं का आसमान में अठखेलियाँ करना भी शाश्वत सत्य है।सूर्यास्त होने से अनमनी हम सखियाँ फिर खिलखिलाती और बतियाया करती चाँद-तारों के साथ। अब चाहे दिन हो रात हम किसी भी पल वहाँ की हरियाली को कैमरे में कैद और अपनी आँखों में बसाने ने से नहीं रोक पातीं। हर तरह की सब्जियों से लदे पौधे तो कहीं संतरे, नींबू, केला, अमरूद..आदि फलों-फ़ूलों युक्त पेड़ और हरे-भरे खेतों में घूमकर जिस आनंद की अनुभूति हुई वो किसी रिसॉर्ट में भी नहीं हुई... 
 क्रमशः.. 
सुनीता बिश्नोलिया 


 

टिप्पणियाँ

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