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कहानी-शिक्षा

#शिक्षा ये कथा है जयपुर शहर में रहने वाले सोने-चाँदी के बहुत बड़े व्यापारी संपतलाल जी की। उनके व्यापार में तीन मित्रों की हिस्सेदारी थी।वो थोड़ा कम पढ़े लिखे थे इसलिए रोजाना का हिसाब मित्र ही कर लिया करते।दोनों मित्र भी बहुत ही ईमानदार इसलिए ईश्वर ने उन्हें धन-दौलत से लेकर दुनिया के हर सुख प्रदान किये..नहीं दिया था तो बस संतान सुख। जो कोई जिस मंदिर जाने की कहता वो संतान प्राप्ति का आशीर्वाद लेने उस मंदिर में पहुँच जाते। विवाह के आठ-दस वर्ष बाद ईश्वर ने उनकी झोली में डाली प्यारी सी बच्ची।अपनी पत्नी को ही अपना भाग्य समझने वाले संपत जी पुत्री जन्म के बाद तो माँ बेटी का विशेष ध्यान रखते। वो बेटी प्रिया से इतना अधिक प्रेम करते थे कि कई बार तो उसकी जिद के कारण दुकान पर नहीं जाते और इस कारण नुकसान भी हो जाता। संपत जी बड़े ही दयालु व्यक्ति थे वे अपने यहाँ काम करने वाले अधिकांशत: कर्मचारियों के बच्चों को बहुत प्रेम करते थे और जरूरत के अनुसार उनकी आर्थिक मदद भी कर दिया करते थे। उनके घर में काम करने वाला किसन अपनी पत्नी व बेटी के साथ घर के पीछे बने एक कमरे में रहता था।वो दोनों पति-पत्नी ही सेठजी के य

युद्ध की बातें करने वालो

#भारत पाक सीमा पर तनाव के बारे में कौन नहीं जानते.. ##युद्ध की बातें करने वालो युद्ध की बातें करने वालो,घर अपने में रहनेवालो , सीमा पर जाकर तो देखो,जीवन उनका जीकर देखो अपने घर को छोडा है ,हर मुशकिल का रुख मोडा है , देश कीरक्षा की खातिर,अपनों के सपने को पीछे छोड़ा है। दिन रात खड़े रहते हैं,जो अपने सीनों को ताने, भारत भू की रक्षा में ,हर सुख को बौना माने। ओ युद्ध की बातें करने वालो,सुख का जीवन जीने वालो........ युद्ध से हमें बचाने को ,रातों को पहरा देते हैं, अमन का पाठ पढ़ाते सैनिक,खुद ही पत्थर खाते हैं। लड़ते हैं इक दूजे से हम,हर सुख ही पा लेने को,    सीने पे गोली खाने को, तैयार है ये मर जाने को । दुश्मन की नापाक हरकतें ,हम से ज्यादा ये जानें, आतंकी के हर हाव भाव को वीर हमारे पहचानें। ओ युद्ध की बातें करने वालो,रातों को सुख से सोने वालो....... हम इन को क्या फ़र्ज सिखाते,क्यों युद्ध हेतु उकसाते हैं ये अपनी मर्जी से जाते हैं,दुश्मन सिर ले आते हैं। युद्ध-युद्ध ना नाम रटो तुम,शांति का आहवान करो तुम , युद्ध ना होने पाए,ऐसा कोई उपाय करो तुम। आतंकी को सजा मिले,सम्मान शहीद हर पाए ,

तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ मैं

#तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ मैं अश्क आँखों के खुद ही पिये जा रहा हूँ,मैं, तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ,मैं। जख्म देकर ज़माने ने छलनी दिल को किया, दिल जख्मों को खुद ही सिये जा रहा हूँ मैं। पाने को तमगा सबकी लालच भरी है निगाहें, तमन्नाओं को लालच से,आगे लिए जा रहा हूँ मैं। लोग हँसते हैं मेरी जिद को कहते तमाशा , अपनी जिद से ही लेकिन बढ़ा जा रहा हूँ मैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

गीत...नींद आती माँ मुझको

#गीत ... नींद आती है माँ मुझको, छुपा आँचल में माँ मुझको याद आती है लोरी माँ, सुना लोरी-मधुर मुझको। नींद आती है.... सुनो पापा मेरे प्यारे, झुलाओ बाँहों का झूला, तेरे पहलू में है सोया, देखो प्यारा तेरा लाला। नींद आती है...... बड़ी खुदगर्ज दुनिया है, रास ना मुझको आती है, आप दोनों की नजदीकी, यही बस मुझको भाती है। नींद आती है..... खुदा ने मुझसे क्यों छीना, साया मुझको बताओ ना, सूने से इस गुलिस्तां में, अपने संग में सुलाओ न। नींद आती है..... सुकूं पाता हूँ मैं माँ-पा, आपके बीच में सोकर, मैं दिन-भर खूब हूँ भटका, आपकी याद में रोकर। नींद आती है..... कोई अपना नहीं है माँ, छोड़ कर तुम कहाँ चलदी, सुन लो पापा मेरे प्यारे, आपको भी थी क्या जल्दी। नींद आती है.... छोड़ा किसके सहारे माँ, बताओ मुझको ना पापा, रात वो थी बड़ी काली,

रसिक इंद्र-हास्य रस

#हास्य रस #रसिक इंद्र पहन गरारा नारदजी ने नृत्य सभा में कीन्हा, डोल गया दिल इंद्र का एक देख दुपट्टा झीना। नारद जी भी लजा -लजा कर घूँघट में मुस्काते, दिखा इंद्र को नई अदाएँ अपनी और रिझाते। थिरक रही नारद की काया,ज्यों नखरेली नार, देख हंसीं ठुमके नारद के इंद्र को आया प्यार। पीछे-पीछे डोल रहे मय की माया में खोय रहे, इंद्र छिछोरे हुए अप्सरा जान के आपा खोय रहे। इंद्राणी आ गई सभा में लेकर रंभा और शंभा, हुई शर्म से पानी-पानी देख के पति निकम्मा। झट-पट खींचा घूंघट नारद का,और देख मुस्काई, वाह्ह नारद बहुत खूब क्या लाज न तुमको आई। देख मिलीभगत दोनों की इंद्र हुए बैचन, लुटी इज्जत भरे बाजार न मिले किसी से नैन। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-धरती

#धरती-दोहे कानन-नग-नदियाँ सभी,धरती के श्रृंगार। दोहन इनका कम करें,मानें सब उपहार।। अचला का मन अचल है,डिगे न छोटी बात। पर मानव का लोभ क्यों, छीन रहा सौगात।। देख धरा की ये दशा,पीर उठी मन माय। जख्म जिगर में देय के,कोय नहीं सुख पाय।। अपने ही समझे नहीं,माँ अपनी की पीर, लालच ने सबको किया,पापी-दुष्ट-अधीर।। माँ का छलनी मन किया,गहरे देकर घाव। संसाधन को ढूंढने,स्वयं डुबोते नाव। आज अगर हम सोच ले, ले लें गर संज्ञान, संग धरा के बची रहे,हर प्राणी की जान।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-यादें

#स्मृति/यादें #दोहे अलबेली उस शाम की,ताजा है हर याद। संगम-साथी संग में, मीठा सा संवाद।। स्मृतियाँ मेरे मन बसी,ज्यों गुलदस्ते फ़ूल। महक मुझे हर फूल की,कभी न पाए भूल।। संगम था साहित्य का,हिल-मिल मिलते लोग, यादें ही बस शेष हैं,अजब-गजब संजोग।। खुशियों में डूबे सभी,उत्सव वाली रात। संग सजीली लाय हैं,यादों की सौगात।। संगम के आलोक में,डूबा था इंदौर। यादें ही बस रह गई,ताली का वो शोर।। भूल न पाएँगे कभी,साहित्य-गुम्फित शाम। कविताओं में है लिखा,संगम का ही नाम।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

लघुकथा-जीजी की ननद

#लघुकथा-जीजी की ननद हर तरफ रोने की आवाज...जया भी अपने होश खो बैठी थी...वो दीदी को चुप नहीं करवा पा रही थी बल्कि वो और उनका परिवार ही जया को चुप करवा रहा था...। जया अपनी जीजी की ननद की लाश पर लिपट गई उसे उनकी अप्रत्याशित मृत्यु पर विश्वास नहीं हो रहा था...।हमउम्र होने के कारण दोनों में पक्की दोस्ती थी.. जया की आँखों में पुराणी यादें नाचने लगी..जब भी दोनों मिलती बहुत मस्ती करती.. जया उनकी मौत का जिम्मेदार खुद को मान रही थी..उसे याद आया कि दीदी की ननद के बलिदान के कारण ही उसे वरुण जैसे जीवन साथी मिले.. उन्होंने अपने मेरी ख़ुशी के लिए अपने प्रेम का त्याग किया..और खुद ने ऐसे व्यक्ति से शादी की जिसके कारण आज उनके साथ ये हादसा हुआ... जया का रो-रो कर बुरा हाल था.... #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

अंशुमाली

#अंशुमाली सागर की कोख में जैसे 'अंशुमाली' हुए पैदा मध्य सागर के ये लगते झांककर देखते चेहरा। अंशु इनकी है हरती तम,नित ये होती है 'अभ्युदित', अपना विस्तार सागर में देख सूरज है ज्यों गर्वित। पर.... शांत हृदय पर सागर के, आघात मनुज हर देता है, फिर भी अपने हृदय का मोती,ये मानव को देता है। जग का मैल समेटे सागर , हुआ बड़ा बदरंग है, अमूल्य निधि का स्वामी ये,देख जहां को दंग है। हृदय में सागर के भी पलता, प्रेम नदी को पाने , अपनी बाँहें फैलाकर,करता है निवेदन प्रेम का। स्नेह-मिलन नदिया से करने,करता है सागर गर्जन, पवन के संग हिलोरें ले, सागर करता है पूरे जतन। ह्रदय से मोती-माणक ला,लहरों की बाँहें फैलाता, अंतर का गहरा अनुराग तभी,ज्वार सा छलक उठता। अपने शांत ह्रदय से ये दिनकर को पूजा करता है, कडवाहट अपनी धोने,बन ऊष्मा सा उड़ जाता है। सृष्टि का नियम निरंतर है,सागर के मन में आशा है, बहता ना वो तोड़ नियम,पर क्रोध सुनामी जैसा है। नदिया भी प्रीत में है पागल,आती इसके आलिंगन में, चंचल नदिया के जल को ये,जलधि भर लेता अंतर में। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कहानी-भूख

#कहानी-भूख जिधर नजर दौड़ाओ हर तरफ हरियाली सीताफल,केले अमरुद ,आम के वृक्षों से हरित उड़ीसा का छोटा सा ग्राम। केशुभाई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी गाँव में रहता था। केशू भाऊ साहब के बागों में रखवाली का काम करता था बदले में उसे दो वक्त धान मिल जाता जिससे आधा-अधूरा पेट भर जाता और पाँच सौ ₹ मासिक पगार भी मिलती । बीवी भी दो तीन घरों में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम करती ।थोड़े धान और कुछ पैसे वो भी कमा लेती । ऐसे ही गुजारा चल रहा था। लेकिन इस बार बारिश न के बराबर हुई बगीचों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी रखवाली के भाऊ साहब को चौकीदार रखना पड़े और फसल अच्छी न होने के कारण केशू की बीवी को भी घरों में काम मिलना बंद हो गया। अब तो उनके खाने के लाले पड़ गए ,रात को रुखा -सूखा मिल जाता तो दिन को नहीं..दिन को खाया तो रात को नहीं।इस अकाल के समय सरकार अपनी तरफ से गरीबों के भोजन-पानी की व्यवस्था कर रही थी पर न जाने क्यों वो व्यवस्थाएँ वो भोजन गरीबों तक ही नहीं पहुँच पा रहा था।हरा-भरा गाँव सूखने लगा था..केशूभाई की गृहस्थी,बच्चे,पत्नी और खुद भी लगभग सूख ही गए। धीरे-धीरे पूरे गाँव में हड्डियों के

ममता

#ममता माँ को याद रहा तेरा रुदन, तेरा हँसना याद माँ करती है, तेरे बचपन की यादों में गुम माँ अश्रुधार छिपाती है। इस विटप की छाँव भी अब माँ के , ह्रदय को दग्ध ही करती है, कृश-काय हुई तेरी याद में माँ, तेरी राह रात-दिन तकती है। हृदय के द्वार खुले माँ के, ज्यों खुला पड़ा दरवाजा, जान बसा परदेस पूत, माँ कहे लाल घर आजा। माना तू नादान बहुत था, बहकावे से बहक गया , माँ का आँचल छिटक बता, तू किस दुनिया में भटक गया। आजा रे! नादान परिंदे, तोड़ के सारी कड़ियाँ, क्यों रोक ना पाई तुझको, माँ की प्रेम भरी हथकड़ियाँ। माँ की आँखों का पगले , गुम हुआ देख उजियाला, झुकी पीठ से राह तके, माँ का जी मतवाला। जीर्ण-शीर्ण से खंडहर सी बैठी माँ पथ में पुष्प बिछाने, छोड़ छलावे का जीवन, तुझ बिन ये महल हुए वीराने। #मौलिक #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#विकास

#विकास 1. नेता ही गटका रहे,देखो मोटा माल। विकास को भटका रहे,बुरा देश का हाल।। 2.मनुज की मेहनत कभी,नहीं निरर्थक जाय। विकास का पहिया सदा,श्रम से घूमा जाय।। 3.आँखें मलता उठ खड़ा,देखो फिर ये जीव। बस्ता छोड़ निकल पड़ी, नव विकास की नींव।। 4.शिक्षा से इस देश में,नित-नित हुआ उजास। विकसित बचपन हो रहा,भर मन में विश्वास।। 5.दोष रहित गर सोच हो,विकसित होगा देश। द्वेष मनों से जब मिटे,स्नेहिल हो परिवेश।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कहानी-महत्वकांक्षा

#कहानी-महत्त्व़ाकांक्षा राजकीय अधिकारी हरिओम जी अपने नाम की भाँति हरि के बहुत ही भक्त बड़े भक्त थे। ईश्वर में अपार श्रद्धा के कारण वो यथासंभव मंदिर में दान किया करते थे। शांत चित्त सुलझे हुए व्यक्तित्व के हरिओम जी के दोनों बच्चे बहुत ही अच्छी विद्यालय में पढ़कर निकले। इतने अच्छे गुणों के होने पर भी उनकी अति महत्त्वाकांक्षी प्रवृति के कारण घर में हर कभी माहौल गरमा जाता था। वो चाहते थे कि उनके दोनों बेटे भी सरकारी अफसर बनें जबकि बच्चे निजी कंपनी में कार्य करने के इच्छुक थे। हरिओम जी जबरदस्ती अपनी महत्त्वकांक्षाओं का बोझ अपने बच्चों पर डालकर उन्हें सरकारी नौकरी की तैयारी करवाया करते थे। बिना मन से बच्चे परीक्षाएँ देते पर कहीं चयन नहीं हो पाता। इस कारण वे थोड़े चिड़चिड़े हो गए और बच्चों और पत्नी पर गुस्सा निकाला करते। इस कारण बच्चे भी अवसाद में रहने लगे। बच्चों की ये हालत देखकर हरिओम जी बड़े दुखी होते पर अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को नहीं त्यागना चाहते। एक दिन ऑफिस में नंदन जी की पुत्री के सरकारी अफसर बन पाने के पीछे का राज जानकर उन्होंने भी वही मार्ग अपनाने की सोची। विज्ञप्

तेरे बिन अधूरी

#तेरे बिन अधूरी है अधूरी तेरे बिन,मेरी ये काया। सोच सपने सुहाने ये मन मुस्कुराया जीवन में हर स्वप्न ,संग तेरे सजाया घनी धूप में तुम ही,हो मेरी छाया हर बुरे दौर में ,एक दूजे का साया तेरे साथ मिल,फर्ज हर है निभाया। तुम्ही ने मुझे 'रस्ता' सीधा सुझाया भी कहने दो ,मौका है आया मैं सबसे सुखी 'राज' ,तुमको जो पाया मैं जो रूठी तुम्हीं ने है मुझको मनाया। शरमा के मन ,पुष्प सा है मेरा मुस्कुराया न मन में कोई गम ,न डर भी समाया मैं बैठी हूँ 'निर्भय',जो तुम मेरा साया एक हँसी पे ,हर सुख था लुटाया मुझको कहने दो.. तुम बिन है आधी सी काय मैं तो भोली थी, जीना तुमने सिखाया असली संसार से,तुमने मुझको मिलाया आज बैठी तेरे साथ, गर्व मुझमे समाया तुम्ही 'प्राण' मेरे...'प्रिया ' तुमने बनाया कैसे भूलूंगी तूने ,हर वादा निभाया, राह काँटों की पे फूल, तूने बिछाया। मेरी खुशियों का हर 'राज'तुम मे

विज्ञान-मनहर घनाक्षरी

मनहर घनाक्षरी #विज्ञान 8,8,8,7 पर यति 31 वर्ण, अंत गुरु एक कोशिश.... हर पथ पर बढ़ा, विज्ञान रथ पे चढ़ा मनुज आगे है बढ़ा, बिज्ञान भाग्य लिखे। सीधा बड़ा मनुष्य है सुलझा रहा रहस्य है, सच्चे साथी सदृश्य है, विज्ञान ज्ञान सीखें। अनूप रूप शक्ति सा, है ठंडी छाँव धूप सा। रोद्र शिव स्वरूप सा, अद्भुत ज्ञान देखें। धार ज्यों तलवार है, तेज ज्यों तलवार है। ये उन्नति का द्वार है, विशिष्ट ज्ञान सीखें। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

₹रंगों का संसार

रंगों का संसार हजारों रंग बिखरे हैं जमीं से आसमां तक, मिलन धरती गगन का रंग दिखलाते हैं नटखट। उमड़ती है लहर चंचल निकल सागर के दिल से, जमीं सूखी हुई खुश आज फिर सागर से मिलके। आसमां ज्यों जमीं की गोद में सर को झुकाए, जमीं खुश है गगन की प्रीत को मन में छुपाए। मिलन का गीत गुनगुना रही सागर की लहरें, मचलती तोड़ने प्राचीर और दुनिया के पहरे। पाषण भी खंडित हुआ लहरों से मिलके, यही लहरें छिपा रखती हैं,तूफां अपने दिल के।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कह मुकरी

#कह मुकरी वो आवे मन हर्षावे, मन में सखी मेरे नाचे मोर, भावे जिया को उसका शोर। ऐ सखी साजन...ना सखी बादल। वो आवे मन डर जावे, तन काँपे ना निकले बोल, मन में चलते कितने बोल। क्यों सखी साजन.....न सखी चोर। वो आवे जीना दुश्वार, नींद ना आवै जाये चैन करार आँखें भी करें उसका बखान, ऐ सखी साजन......न सखी बुखार। वो छुए तो तन सिहर उठे, प्यास जिया की बुझ जाए, मन में आवै एक संतोष, क्यों सखी साजन......ना सखी पानी। वो छू ले तो अगन लगे, तन बदन में जलन लगे अपने ताप से कर दे खाक। ऐ सखी साजन...ना सखी आग। # #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

यज्ञ

#-यज्ञ मन पावन मन की इच्छाएँ, मन के धुलते कपट-क्लेश, 'यज्ञ' में जल जाते मानव के, पाप और आपस के द्वेष। मात-तात सा आराधक कोई, नहीं उपासक धरती पर, अखंड 'यज्ञ' करते हित-संतति, हवन की भाँति खुद जलकर। वैराग्य वृत्ति वाला परिमल, वो छोड़ पुष्प उत्सुक होकर, 'यज्ञ' देशहित करते नित, सीमा पर लाल खड़े होकर। आत्मविस्मृत-आत्मतेज से, भुजबल से आलौकिक होकर, 'यज्ञ' वो करते बोझा ढोकर , धूप में जल दिनभर खपकर। उदात्त-ह्रदय सरित्पति सम, स्निग्ध-शांत सुंदर वाणी, शिक्षा 'यज्ञ' में डाल रहे हैं, समिधाएँ गुरुवर पाणि। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#उलझन

#उलझन मन में उलझन कृष्ण है, और गहरा अंतर्द्वंद, मूरत तेरी को छोड़ कन्हैया, क्या करलूँ आँखें बंद। कान्हा तेरा नाम जपूँ, दुनिया को आए न रास, उलझन में बन मीरा बन भटकूँ , मोहे है तुझसे ही आस। नाम तेरी की दीवानी, रटती हूँ सुबहा-शाम, निश्छल निर्मल मेरा मन, उलझन में भगवान। सास-ननदिया ताने मारे, जग करता बदनाम, पति ने मुख मोसे कान्हा मोड़ा, उलझन ये हरो घनश्याम। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

छोटू

#छोटू 'छोटू...चाय नहीं बनी बेटा'..'अभी लाया' मास्टर जी कहते हुए छोटू चाय का कप लेकर आता है और मास्टर जी को पकड़ाता है। चाय पीते हुए मास्टर जी कहते हैं..छोटू जल्दी चल देर हो जाएगी..मोहन भेज इसे ..मास्टरजी मैंने कहाँ रोका है..मैंने तो इसे पाँच बजे ही जगा कर पढने बिठा दिया था...और बाद में होटल के काम में मदद  की है इसने ...अब देखिए ये तैयार है ।छोटू बस्ता लेकर आ जाता है...चलें मास्टर जी..नहीं तो मोहन भैया को कोई काम याद आ जाएगा..।मास्टर जी ने छोटू का कान पकड़ते हुए कहा...नहीं बेटा मेरा मोहन ऐसा नहीं है क्योकि ये भी कभी छोटू था ...बड़ा तो आज हुआ है..मन से बड़ा,ये अपनी होटल पर हर दूसरे साल एक छोटू को ले आता  है...ये उसे पढ़ाता-लिखाता है..जैसे तुझे। मास्टर जी मुझे बहुत ख़ुशी होती है...जब मेरा हर छोटू यहाँ काम के साथ पढ़-लिख कर बड़ा होता है...पता है मास्टर जी मुझ अनाथ के कितने भाई हैं..अब....सब मोहन भईया-मोहन भईया कहते रहते हैं,किसी भी होटल का छोटू आज तक बड़ा नहीं हुआ एक जाता है दूसरा आ जाता है पर देखो मैं बड़ा हो गया मेरा हर छोटू यहीं पढ़ कर बड़ा भी होता है पाँव पर भी खड़ा होता है ।मेर