सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Sunita Bishnolia लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

#अत्याचार

#अत्याचार सहमे-सहमे लोग दिखें,होता जहाँ व्यभिचार, डाल रखा डेरा निश्चित,है वो #अत्याचार। विस्तृत है इतिहास देश में,अत्याचारी लोगों का, करते हँसी का सौदा और मजा उठाते भोगों का। कंस और रावण सबसे हैं,इस पंक्ति में आगे, इनके अत्याचारों से,त्रस्त मनुज थे भागे। बहन देवकी को न बख्शा,उस निर्मोही शासक ने, एक-एक छीना संतानों को,अत्याचारी शोषक ने। गोकुल के हर जन पर डाला,अत्याचार का जाल, हर घर का छीना उजियारा और हर नन्हा बाल। निरीह प्रजा पर रावण ने भी घोर किया था अत्याचार, दुष्ट दानवों को सिखलाया,उसने ही पापाचार। विरह-वेदना दे सीता को,दुष्ट था वो मुस्काया, देख बिलखती सीता को,उसने अट्टहास लगाया। मुगलों ने भी भारत भू का,लूटा वैभव सारा, निर्दोष बिलखती जनता को,था अत्याचार से मारा। अंग्रेजों का हुआ देश में,पिछले दरवाजे आना, निर्मोही उस शासन ने,था चैन देश का छीना। खून पसीना हम थे बहाते और मलाई वो खा जाते आवाज कभी उठ जाती तो दमन-चक्र उनके चल जाते। ओरंगजेब-अन्यायी ने,देश में करने को अधिकार, घोर किए जनता पर उसने,निर्मम अत्याचार। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

उल्लास-कृष्ण जन्म--दोहे

‌#उल्लास ‌कृष्ण जन्म उल्लास में,डूबा गोकुल ग्राम। ‌आँसू बहते आँख से,माता के अविराम।। ‌ ‌कान्हा झूले पालने, माँ मन में हर्षाय, ‌नजर न मोहन को लगे,कजरा मात लगाय।। ‌ ‌देख शरारत कान्ह की,मात-पिता मुसकाय। ‌नन्द-यशोदा की ख़ुशी,नयनों में दिख जाय।। ‌ ‌तुतली बोली कृष्ण की,माँ को रही रिझात। ‌उमड़ रहा उल्लास जो,आँचल नहीं समात।। ‌ ‌मोहन माखन-मोद में,भर लीन्हों मुख माय। ‌मात यशोदा जो कहे,कान्हा मुख न दिखाय।। ‌ ‌कान्हा ने उल्लास में,सखियन चीर छुपाय । ‌सखियाँ रूठी कृष्ण से,नटखट वो मुसकाय।। ‌ ‌कृष्ण सामने जान के,सखियाँ ख़ुशी मनाय। ‌सुन मुरली घनश्याम की, सुध-बुध भूली जांय।। ‌ ‌कान्हा लेकर साथ में,ग्वाल-बाल की फ़ौज। ‌मन में भर उल्लास वो,करते कानन मौज।। ‌#सुनीता बिश्नोलिया ‌#जयपुर ‌ ‌ ‌ ‌ ‌ ‌

मोल-भाव--दोहे

#मोलभाव--दोहे मोल-भाव का चल रहा,देखो कारोबार। छिपे हुए हैं संत की,पहने खाल सियार।। मोल -भाव ही रह गया,अंतिम अब हथियार। जनता खोकर वोट भी, बैठी है लाचार।। गद्दी खातिर हो रहा,जग में हाहाकार। आम जनों से छिन गए,क्यों उनके अधिकार।। मोल-भाव मत कीजिए,रिश्ते हैं अनमोल। दौलत से भी हैं बड़े,रिश्ते तुले न तौल।। पैसों से मिलती नहीं,दुनिया में हर चीज। मोल-भाव मत कर मना,प्रेम-प्रीत का बीज।। शिक्षा का भी हो रहा,मोल-भाव जग माय। सच्चे गुरुवर है कहाँ,शिष्य कहाँ मिल पाय।। छुप-छुप छलिया कर रहे,शादी का व्यापार, मोल-भाव तय हो गया,तब रिश्ता स्वीकार।। मोल-भाव हैं कर रही,सखियाँ बीच बजार, बोल न पावे बीच में,दिखते सब लाचार।। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

पानी--हाइकु

#पानी (हाइकु) छोटी कहानी       नत हो निरंतर बहता पानी                                    जीवन दाता                        जल मन भरता,                                        देह निर्माता सूखा आँगन       है बिन जल सूना जल से गूँजे।                              रूठे मनावै                                         दृग जल बरसे                                 आस जगावे           नदिया पानी मन प्यास बुझावै                यही डुबोये                                          शीतल पानी                                                  बहता पल-पल                                           चंचल जल      ठंडा सा सोता                निर्मल सा निर्झर       जल भण्डार                                            प्यारे से पल                                                  नयनों का निर्झर                                            होता सजल    चंचल नदी            बहती अविरल जल से भरी।                                            पानी की काया                                         

दान--दोहे

#दान-दोहे दान सहित सम्मान के,दीजो आगे आय, याचक की नजरें कभी,बोझ से झुक न पाय। दधिची मुनि का जानिए,त्याग देह का आप। कष्ट सहे हित जगत के,मिटे-मिटा संताप। दान  दिया खुद कर्ण ने,खींचा कवच शरीर। मुस्काए सह कष्ट वो, हुए न जरा अधीर।। राजा बलि सा दान में,नहीं बराबर कोय, सब कुछ अपना दान दे,फिर भी नत थे होय।। दान करन सीता गई,पकड़ा पापी हाथ। नींव युद्ध की डाल के,सीता लीन्ही साथ।। जग में पहले सा नहीं,रहा दान का रूप। लालच के भी नाम से, दिखता दान स्वरूप। दान नाम से कर रहे,कुछ लोभी व्यापार। जेबें खुद की भर रहे,करके बंटाधार।। शिक्षा भी अब दान में,कहीं न मिलती भाय। ये मिलती गुरु नाम की,बड़ी दुकानों माय।। रक्तदान से बच रहा,जीवन नन्हा फूल। मगर बीच में चुभ रहे,लोभी बनके शूल।। अंगदान भी कीजिए,बहुत बड़ा ये दान। मरता-मानस जी उठे,पाकर दान महान।। ज्योत गई जिन नयन से, निर्बल मानस जात। दान-नयन का पाय के,खुशियाँ नहीं समात।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संगीत

#संगीत झंकृत करदे तार ह्रदय के,                 मन में जलता दीप, थिरक उठे साँसों की वीणा,                      वो होता संगीत। मीरा की मोहनवीणा ने,            ह्रदय लिया है जीत, बावरिया सी संतन संग            मीरा खोय रही संगीत। कान्हा की मुरली का सुनकर,                    मादक सा संगीत, फड़क उठे राधा के नयना,                  जगी अनोखी प्रीत। सनन-सनन पुरवाई भी,                  गाती होले से गीत। घोल रही रस राधा की पायलिया,              देख के मन का मीत। यमुना की लहरें भी मचलती,                सुन गोकुल के गीत, चंचल लहरें कल-कल-छल-छल,                घोले अपना संगीत। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर                 

मैं मीरा---जीवन परिचय(मीरा बाई)

            #मैं मीरा   (जीवन परिचय) वर्ष विक्रमी संवत का,                 लगा पन्द्रह सौ चौंसठ। जीवन के आरंभ से,                 दिवस सब रहे विकट।।             दूदा जी के 'रत्न' की,                  बनी कली मैं 'मीरा' , श्याम नाम की रट लगी,                धर लिया कुसुम शरीरा। मैं 'मीरा' घनश्याम की,                खेली मोहन के संग, बचपन में ही रंग गई,                 मैं तो कान्हा के रंग। 'सांगा' जी के पूत थे,                   'भोजराज' भरतार, उदयपुर के कुंवर को,                   कर लीन्हा स्वीकार। कुँवर भोज ने राह में,                 छोड़ा मेरा साथ। दुष्टों ने करने 'सती' ,              पकड़ा मेरा हाथ। जीवन पर अधिकार था,                मान न पाई बात      धर बैरागिन रूप मैं,                हुई संतन के साथ। विरक्त हुई संसार से,               संतन संगत पाय, मोहन की मैं बन सखी,              नाची संगत माय। नजरों में संसार के,              खुशियाँ खटकी मेरी, विष का पान कराय के,                    चाही मृत्यु मे

आँखें

आँखें 1आँखें मन का आइना,बोले ये बिन बोल। इनसे छिप पाया नहीं,भेद दे रही खोल। 2.नीरज-नटखट नयन हैं, उलझे-उलझे केश। नीर नयन से छलकिया,पिया गए किस देश।। 3.आँखें कहती प्रेम की,हर अनसुलझी बात। हँस-मुस्काते रोवते,नैना हैं कुम्लात ।। 4.नैनों में है रिक्तता,अधरों पर मुस्कान। राहों में तेरी बिछे,उपजे विरहा गान।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर  

मजदूर

#मजदूर आग सरीखे जलते दिन में, काम करे मजदूर हँस -हँस के सब का बोझा, सिर पे ढोता है मजदूर। ना हिन्दू ना ये मुसलमा, इसकी जाति बस मजदूर संघर्ष करे नित दुनिया से, कुछ पाने को मजदूर। हर काम अधूरा इसके बिन, हर काम करे मजदूर, छोटी-छोटीे बातों से भी खुश , रहता है मजदूर। अपनों की ख़ुशी तलाशे,अपनी मेहनत में मजदूर देश की खुशहाली का मजबूत आधार भी है मजदूर। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर ‌ ‌

हास्य व्यंग्य--नेताजी का उपवास

#हास्य व्यंग्य करना होगा उपवास,             बात ये आई न साथी रास, आओ चलो भोग लगाएँ।                है घंटे भर की देर, भटूरे-छोले आधा सेर,                आओ चलो खाकर आएँ। यहाँ देखेगा हमें कौन,                    रहना बंधू तुम मौन, चलो जमकर खाएँ।                   उफ्फ किसने खोली पोल, बज गया बंधू सुन ढोल,                    कहाँ हम मुँह को छिपाएँ। सुनो नेता है मक्कार,                  गलती करते न कभी स्वीकार, फजीहत खुद की कराएँ। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हास्य रस

#हास्य रस लेट गए पपलू जी पीकर, बस एक दाल का प्याला, रसगुल्ले का भोग लगाता, बाहर बैठा साला। साले साहब की हुई सगाई, संग लाए वो बची मिठाई। पपलू जी की तोंद हिली, देख मिठाई लार गिरी। हाथ में लेकर दो रसगुल्ले, मुँह से निकले दांत थे पीले, किया जो उनको मुँह की ओर, मैडम ने छीना मुँह का कौर। पपलू जी कुछ मोटे हैं, कद में थोड़े छोटे हैं। मैडम का अब गुस्सा फूटा, देख पसीना उनका छूटा । मीठा खाना बंद करो , कुछ तो थोड़ी शर्म करो। साँस फूलती,बात-बात में, काया अपनी है रहम करो। बस दाल पड़ेगी आज से पीनी, हुए सुन पपलू जी पानी-पानी। मैडम के गुस्से के आगे, न चल पाया कोई बहाना, ले अपना सा मुँह उनको कमरे में पड़ गया जाना। अंदर बैठे सोच रहे वो

प्रियवर-गजल

# ग़ज़ल # काफिया - आना # रदीफ़ - था सूने से सपनों में प्रियतम,तुम्हें अचानक आना था, प्रेम के प्यासे जीवन में,तुमको बादल बन छाना था। पंख हवा से लेकर डोली,पाकर तुमको मैं प्रियवर, यूँ ही तेरा सपने में आना,अंदाज बड़ा मस्ताना था। खुशबू प्रियवर तेरे नेह की,भूली ना मैं भूलूँगी, तेरा मेरे सपनों में आना,जीवन को महकाना था। झूम उठी सपनों में प्रियवर सौगात तुम्हारी पाकर मैं सपनों में ही सही तुम्हें, मुझसे तो मिलवाना था। स्वप्न अधूरा छूटा प्रियवर फिर उजली सी भोर हुई, साथ सुहाना अपना था बस गीत प्रीत का गाना था। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-गर्मी

दोहे- गर्मी गरमी में जियरा जले, माथे टपके श्वेद। पेड़ ठूँठ बन हैं खड़े, अब क्या करना खेद।। जी अलसा तन झुलसिया,लू भी चलती जोर। मनवा को चैना नहीं , तपे धरा हर ओर।। कहता तरु मुसकाय के,आ रे मानस पास। गरमी ही बतलायगी,मैं भी हूँ कुछ खास।। भरा ताल ज्यों सड़क पे,मनवा भी भरमाय। बिन बादल ही रे मना,ये गरमी नहलाय।। तपती धरती पर तपे,और जले दिन रैन. बेघर खटता ताप में,सुने गरम वो बैन।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

बेकली

#बेकली बेकली में सनम क्या से क्या हो गए, मेरी नजरों में तुम बेवफा हो गए। बड़ी बैचैनी में रात काटी थी हमने, मेरी आँखों के सपने कहाँ खो गए। तेरी यादों को दिल में बसाया तो था, तुम ही क्यों इतने पराये हो गए। चैन मेरा तुम्ही थे मैं कहती रही हूँ, चैन मेरा क्यों तुम फिर कहो गए। मैं इतनी हूँ तनहा कैसा असर ये हुआ है, बेकली का ये आलम तुम क्या हो गए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

चौपाई-भारत माँ

#चौपाई ये अपनी भारत माता है, बैरी क्यों घात लगाता है। छोड़ो आपस की तकरारें मात भारती हमें पुकारे। बेबस और लाचार हुई माँ, तन पर गहरे घाव सहे माँ। रक्त भाल पे आज लगाएँ, आओ माँ को शीश चढ़ाएँ।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

औरत

#औरत ज्योति-पुंज,है निकुंज,          मातृ-शक्ति है,ये भक्ति भी है यथेष्ठ,सबसे श्रेष्ठ,        ईश्वर की सूरत,स्वयं है औरत। इसका शुभ्र है चरित्र,           सब सखा सभी हैं मित्र, अडिग-अचल है धरा ,               ह्रदय में प्रेम है भरा। कोमल सी है ये कामिनी,                 तेज है ज्यों दामिनी, सत्ता पुरुष की तोड़ती,                निशां विजय के छोड़ती। आँगन में जलती जोत,                 महान- प्रेरणा की स्त्रोत, जीवन संगिनी,अर्धांगिनी,               जिम्मेदारी से लदी लता घनी। साक्षात् सकल सृष्टि है,                   सब पे करती प्रेम-वृष्टि है, परीक्षा में सदा खरी,                     जूनून जोश से भरी । कैसा भी विचार हो,                    लोलुप सकल संसार हो निर्मलता का निर्झर है ये,                 जग की रखती हर खबर है ये। गुणों की ये है खदान ,                परम-पूज्या है महान। साश्वत सत्य है यही,                  सम्पूर्ण जैसे हो महि। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मिट्टी

#मिट्टी न सुंदर मैं स्वर्ण भस्म सी स्वर्ण कलश सी ना मजबूत, मैं कुम्हार की कच्ची मिट्टी, लेती वो जो देता स्वरूप। कूट-कूट के मल-मल के, मैं चाक चढ़ाई जाती हूँ, जल के छींटे पाकर के, कोमल मैं बन जाती हूँ। दिया बनूँ मैं हरण करूँ, अंधकार इस जग का, बनूँ खिलौना,मन बहलाऊँ परस पा के हाथों का। जलूँ आग में,तपूँ रात दिन सहती कठिन परीक्षा, बाधाओं से लड़ने की गुरु-कुम्भकर देता शिक्षा। जल को निर्मल-शीतल कर दूँ, वो मन्त्र फ़ूकता ऐसा, मैं कच्ची मिट्टी कुम्हार की, तृप्त कर्रूँ मन प्यासा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

जयशंकर प्रसाद

#जयशंकर प्रसाद कामायनी,कानन ,कुसुम,करुणालय, चित्राधार, प्रेम पथिक,आँसू लहर, महाकाव्य सृजनहार छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। बचपन में पिता के मित्रों से मिला साहित्य के प्रति लगाव व् पिता के साथ पुरी भ्रमण पर किये गए प्रकृति दर्शन और माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् व्यापार के साथ-साथ किये गए स्वाध्याय ने प्रसाद में एक प्रतिभा को तराशा, जिस प्रतिभा ने संसार में महाकवि के रूप में पहचान बनाई। अठारह सो नवासी-काशी, एक भक्त के घर में दीप जला, पितामह के प्रेम के घृत से, जग-मग दीपक खूब फला। पिता व्यापारी तम्बाकू के, पर गहरे विद्या प्रेमी, ईश्वर के थे परम भक्त, पिता पूजा के नित-नेमी। विद्वानों का रात दिन, घर में रहता जमघट, उनके ही प्रभाव से, कहलाये वो जयशंकर। तेरह वर्ष की उम्र में , पुरी दर्शन कर लीन्हा प्राकृतिक सौन्दर्य ने, तब ह्रदय में घर था कीन्हा। प्रकृति की छटा उंडेली, कामायनी में सारी, 'श्रद्धा' के तन पर वसन, पुष्पों के थे भारी। कच्ची उम्र में मात-

दोहे-हनुमान

#दोहे--हनुमान राम-नाम हनुमान से,जग में फैला जाय, बिना भक्त हनुमान के,राम कहाँ सुख पाय। देख जगत की ये दशा,सोच रहे हनुमान, संकट खुद पैदा करे, है ये जग नादान।। संकट हरता जगत का,संकटमोचन वीर, दीनों की विपदा हरे,पवन-सुत महावीर। राम-नाम जपते सदा,पवन-तनय हनुमान, मन मंदिर में राम है,मन ही पावन धाम। आज जगत को चाहिए,एक और हनुमान, दैत्य धरा पर हैं बहुत,धरा बनी  शमशान। हनुमत जी की आरती,गाता है हर कोय, भूतों से धरती भरी,सभी भक्ति में खोय। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर  (राजस्थान)

दिनकर

# "राष्ट्रकवि दिनकर" सूर्य से ऊर्जा लेकर , जन्मे सिमरिया में दिनकर, मन में देश साँसों में देश, कविता बन प्रेम झलकता था। बेहाल देख घर-परिवार को भी, वो जरा नहीं मचलता था। संस्कृत ,इतिहास और दर्शन के वो बड़े खिलाडी थे, हिंदी की धाक भी अपनी दिखा, बतलाया वो नहीं अनाड़ी थे। रश्मिरथी हर कुरुक्षेत्र संग हर विधा में हाथ दिखाया था संस्कृति का परिचय भी दिया, रस वीर हर तरफ बिखराया था। ज्यों दिनकर का उजियारा हरता, अंधकार धरती का, कवि"दिनकर" ने भी यज्ञ किया, कलम से राष्ट्रभक्ति का। कलम से उनकी शोले से, शब्द सदा झरते थे, अंगारों पर चलने का देश से, आह्वान किया करते थे। इंसान तो क्या भगवान को भी, बदलने की बात किया करते थे, ओजस्वी कविता लिख, जन में उत्साह भरा करते थे। गलत का समर्थन ना करते, सरकार से भी भिड़