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रंग

#रंग नीले-पीले,लाल-गुलाबी,जित देखो उत रंग हैं बिखरे, फाग का रंग चढ़ा धरती पर,रंग ही रंग हर तरफ हैं छितरे। उड़ते रंगों में लिपटी हुई ,धरती देखो बनी दुल्हनिया, फाग की मस्ती मुख पे लिए,बहु रंगों की ओढ़ चुनरिया, मोसम है मस्ताना और वात्सल्य लुटाती वसुधा, झूम रहा हर पल्लव संग मन में भर कर उत्साह। पुकार रहा मन आज मैं हर फूल को बाँहों में भर लूँ, ये रंग भरूँ हर जीवन में हर रंग को दिल में बसा लूँ। अलंकार अलबेले ये रंग,रूप धरा का और सँवारे, रंग बिरंगी पुष्प-लताएँ , कहीं खिले ये टेसू प्यारे, उड़ते हुए रंग कितने प्यारे,फाग की मस्ती में बहके सारे, धरती पर हैं अजब नज़ारे,आँखों को भाते हैं सारे। धरती का हर कोना भरा है,रंगों से लिपटी पूरी धरा है, बचा न कोने खाली कोना,रंगों ने न की शरारत जहाँ है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संस्कार

#संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीँ की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु,और ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़ी में संचरित करेगा.

श्रीदेवी

अमावस की काली रात ने छुपा लिया है जरुर तुम्हे। पर जुन्हाई कब तक छुपी रहेगी अँधेरे में। न भुला पाएगा जमाना तुम्हे भला चांदनी भी कहीं खोती है। #सुनीता बिश्नोलिया

श्रीदेवी

#श्रद्धांजलि श्रीदेवी उफ़ ! काल के क्रूर हाथ...         एक सितारा लूट गए। देखे थे अपनों ने सपने...         हाय अधूरे छूट गए। 'श्री' लुटाती सौम्य छवि       'सदमा' देकर चली गई। चंदा से निकली चटक 'चांदनी'            बादल में खो गई कहीं। नमन नमन अर्पण सुमन,           मिले  आत्मा को शांति। R.I . #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर          

संस्कार

#संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीँ की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु,और ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़ी में संचरित करेगा.

पत्र संतोष मैम के नाम

#तिथि-20/2/18 आदरणीया,संतोष मैम,         सादर चरण-स्पर्श,   मैंम मैं यहाँ कुशलता पूर्वक रहते हुए ईश्वर से आपकी कुशलता की मंगल कामना करती हूँ। मैंम मुझे आपके द्वारा हम छात्रों पढ़ाने-समझाने और प्यार करने का अन्दाज आज भी याद है...आज भी आपकी मीठी बोली कानों में गूँजती है,गूंजता है आपका हर प्रेरणादायी  शब्द जो आप कक्षा में बोला करतीं थी और प्रार्थना सभा में आपको सुन कर दिन बन जाया करता था। मैम आपका हिंदी के प्रति लगाव और छात्रों में हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और मुझे अपने हर कार्य का दायित्व संभला देना,मेरी कविताओं की प्रशंसा करना,नित्य लेखन हेतु प्रेरित करना ...जैसे कल ही की बात है।मैम आप मात्र शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं वरन हर क्षेत्र में निपुण थीं, जैसे-अंतर्विद्यालय स्तर पर गायन,वाद-विवाद,भाषण,नाटक आदि हेतु हमपर जितनी  मेहनत करतीं ...शायद उसी का प्रभाव मुझ पर पड़ा है जो मैं भी अपने छात्रों पर आप ही की भांति प्रभाव छोड़ने का प्रयास करती हूँ। मैम मुझे अच्छी तरह याद है..आपकी मेहनत,लगन और निष्ठा देखकर प्रधानाचार्य श्रीमती तारावती भादू ने प्रार्थना सभा में कहा था कि आप ब

धरा

#धरा धैर्य धरा का टूट रहा है,देख हमारे धंधे, स्वयं नष्ट करते वसुधा,तैयार कर रहे फंदे। माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला, हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला। शहरों का विस्तार हुआ और सिमट गए हैं ग्राम, कंक्रीट के जंगल कहो धरा पे,क्यों हो गए हैं आम। आभूषण वृक्षों के माँ के,मानव ना तुम नोचो, नूतन वृक्ष लगा धरती को ,स्नेह-सुधा से सींचो। धरती का क्यों ह्रदय ,चीरते संसाधन पाने को, क्यों पर्वत का अस्तित्व मिटाते बन कर के अनजाने। देखो माँ की कृश काया,आँखों में अश्रु का सागर, फिर भी दे उपहार मनुज को,भरती लालच का गागर। पार कर गई पराकाष्ठा गर धरती के सहने की, अश्रु धार से नष्ट करेगी,जाति मनुज अभिमानी की। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर