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संस्कृति

संस्कृति रंग बिरंगी, अनोखी, अलबेली है भारतीय संस्कृति,विशाल ह्रदय वाली, विदेशी संस्कृतियों को ह्रदय में समाहित करके भी अपने स्वरुप को नहीं खोने वाली है भारतीय संस्कृति । संस्कृति सिखाती है विनय,प्रेम, सहिष्णुता आदर- सम्मान जिसका पालन करना हम भारतीयों को जन्म से ही सिखा देने की परम्परा है या कहें संस्कृति ही है। जब भी भारतीय संस्कृति की बात होती है तो सबकी निगाहें महिला और महिलाओं के परिधानों पर आकर अटक जाती है क्यों... क्योंकि हमारी सोच इससे आगे बढ ही नहीं पाती है । जिस व्यक्ति की आदत महिलाओं को घूंघट में देखने की पड़ गई है वह किसी महिला को पाश्चात्य परिधान में पूरे ढके हुए बदन में देख कर भी उस पर संस्कृति के हनन का आरोप लगाता है। हमारी संस्कृति इतनी पिछड़ी हुई नहीं वरन ये उस व्यक्ति का दृष्टि -दोष कहलाएगा... महिला का पाश्चात्य परिधान में रहना सांस्कृतिक अस्मिता का ह्वास नहीं वरन परम्परावादी सोच के आगे एक कदम है। वास्तव में पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण......भौंडे..और बदन दिखाऊ वस्त्र पहनना संस्कृति

म्हारो राजस्थान

#म्हारो राजस्थान म्हारो राजस्थान रंगीलो ....म्हारो राजस्थान रंगीलो   म्हानै बनजारों सो लागै..म्हाने बनजारो सो लागै.. पैरयाँ सिर पर पगड़ी छोरो..      दुनिया नै रिझावै ऊँचा गढ़ यो गर्बीलो सो लागै। ई रा रेतां रा धोरा भी...ई रा रेतां रा धोरा भी        म्हानै घणा सजीला लागै। पैरयाँ सिर पर पगड़ी छोरो..पैरयाँ सिर पर पगड़ी छोरो..       नखरालो सो लागै..छोरो नखरालो सो लागै। म्हारो राजस्थान रंगीलो ....म्हारो राजस्थान रंगीलो   म्हानै बनजारों सो लागै..म्हाने बनजारो सो लागै.. म्हाने बाजरिया रो खीचड़ो..म्हाने बजरिया रो खीचड़ो      छप्पन भोग सी लागै..म्हाने छप्पन भोग सो लागै फोफलियाँ और कैर-सांगरी ...फोफलियाँ और कैर-सांगरी    देख नींद सूं सगळा जगै---2 खावण खातर सतमेला रो-2 साग भूख बड़ी लागै म्हारो राजस्थान रंगीलो ....म्हारो राजस्थान रंगीलो   म्हानै बनजारों सो लागै..म्हाने बनजारो सो लागै.. दाल चूरमो खाकै छोरा--2 बणया सूरमा ठाडा-2 प्रेम सूं बोल्यां प्यार सगळा-2       उलटा बोल्यां आंक हैं आडा। म्हारो राजस्थान रंगीलो ....म्हारो राजस्थान रंगीलो   म्हानै बनजारों सो लागै..म्हाने बनजारो सो ल

धैर्य

# धैर्य सुख और दुःख सहने की, कला कहाती है संयम, प्रतिकूल परिस्थिति में भी अविचल रहे जिसका मन। धरे धैर्य धरे जो बाधाओं में, वो निडर न घबराए, हर मुश्किल से धैर्य से, वो धैर्यवान कहलाए। पराकाष्ठ सहनशक्ति की , पार वही कर पाता है, धैर्य धरा के जैसा जिसके दिल में रहा करता है। धैर्य सिखाता हँसकर के सुख-दुःख में संयम रखना, धैर्य सिखाता क्रोध में भी स्वयं नियंत्रित रहना। पर्वत से सीखें धैर्य सभी, वो अडिग खड़ा रहता है, हर रोज वो लड़ता तूफानों से, पर धैर्य नहीं तजता है। माँ का देखो धैर्य नहीं माँ, कभी फर्ज से पीछे हटती, रात-रात भर जगती और पूत को कर बलिदान है माँ इतराती। उस वीर सिपाही के धीरज की मत लेना कभी परीक्षा, अपनों को छोड़ अपनों की वो ज्यों संत

यात्रा संस्मरण

#यात्रा संस्मरण बात लगभग 5-6 वर्ष पूर्व की है,हम दोनों बच्चों के साथ दिल्ली से किसी शादी में शामिल होकर वापस जयपुर लौट रहे थे। पूरे रास्ते आराम से आ गए किन्तु अजीतगढ़ नामक स्थान के आस पास पहुँचे तो वहाँ तेज बारिश के कारण जगह-जगह पेड़ों की छोटी-छोटी डालियाँ टूट कर गिरी हुई ,8-9 बजे का समय बिलकुल अँधेरा। अब पतिदेव धीरे-धीरे गाड़ी चलाने लगे,दोनों बच्चे लंबे सफर के कारण गाडी में ही सो गए थे लेकिन सफर लंबा होने के कारण उन्हें टॉयलेट आने लगी,दोनों ही टॉयलेट जाने के लिए बार-बार कहने लगे। बारिश जब थोड़ी हलकी लगी तो हमने गाडी रोक कर बच्चों को उतारा।अचानक एक गाडी पास से गुजरी उसमें से एक व्यक्ति ने वहाँ रुकने से मन करके आगे जाने को कहा और वो गाड़ी आगे बढ़ा ले गया ..तभी दूसरी..तीसरी गाड़ी वालों ने भी आगे बढ़ने का इशारा किया। हमें कुछ समझ नहीं आया और वहाँ बच्चों को टायलेट करवाकर आगे बढ़ गए। अब अँधेरे के कारण जो रास्ता पकड़ा वो बिल्कुल अंजान-सूनसान..रास्ते में कोई गाड़ी नहीं कोई..व्यक्ति नहीं हम रास्ता भटक चुके थे। 5-6 किलोमीटर चलने के बाद कुछ ट्रक खड़े दिखाई दिए..पतिदेव ने पहले उनसे रास्ता पूछना चाहा..पर मेर

आफत

#हास्यास्पद 'आफत सरकारी बाबू हाय!बिचारा,ये बैठा आफत का मारा, चाय मिली ना पेपर इसको,ऑफिस में क्या करे बिचार। घिसी पिटी फाइल को देखा, आफत समझ रद्दी में फैंका। चपरासी भी कम नहीं, इसको भी 'आफत 'कम नहीं बाबू के दुःख का गम नहीं, मोबाइल छोड़ते हम नहीं रद्दी से फाइल उठाता है,बाबू को आँख दिखाता है। जब 'बोस ' आफत में आता है,नारद ये बन जाता है काम ना होने का जिम्मा,बाबू पर सरकाता है। आफत है भई आफत है, सबको सबसे आफत है। पति को आफत पत्नी से, क्यों ब्यूटी पार्लर जाती है। मैं जब कहता सजने को ,तो आफत में आ जाती है मिस वर्ड की दौड़ में आगे ज्यों,बन 'किटी पार्टी जाती है। खेल तम्बोला घर आकर,आर्डर खाने बाहर से देती है। आफत है भाई आफत है सबको सबसे आफत है। आफत का मारा एक बिचारा, मर ना जाए ये कुँवारा, हाय! नौकरी मिली ना इसको, कैसे होगी इसकी शादी भटक-भटक कर तलुए घिस गए,उम्र बीत गई आधी। आफत है भई आफत है सबको सबसे आफत है.. बहु को सास लगे आफत सी, कर न पाती बो मर्जी की, सास जो बोले ऊँचे बोल, बहु खोलती सारी पोल, अब तो बाबू वापस भगा, आफत में फँस गया अभागा आफत है भाई आफत है ,सबको

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

#आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के जाने-माने आलोचक एवं निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दूबे के छपरा' नामक गांव में सन 1907 में हुआ था इनके पिता का नाम अनमोल दूबे तथा माता का नाम श्रीमती ज्योति कली था। इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी उच्च शिक्षा हेतु बनारस चले गए वहाँ उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिष शास्त्र तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि हासिल की। इसके उपरांत वे शांतिनिकेतन में अध्यापन कार्य करने लगे रविंद्र नाथ टैगोर के सानिध्य में आकर उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया काशी हिंदू विश्वविद्यालय,पंजाब विश्वविद्यालय, शांति निकेतन में हिंदी विभाग के प्रमुख रहे उनका देहावसान सन 1979 में हो गया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने व्यक्ति व्यंजक निबंधकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की निबंध संकलनों में अशोक के फूल, विचार प्रवाह, कल्पलता, कोटर ,आदि हैं इनमें अधिकांश निबंध विचारात्मक और आत्मपरक है तथा इनकी मानवतावादी दृष्टि लोकमंगलकारी स्तर पर उभरी है।द्विवेदी जी के निबंधों

नववर्ष

#नववर्ष चहूँ और किया श्रृंगार धरा ने,है पुष्पों की भरमार, मादकता, सौंदर्य, सुगंध हर तरफ, है भ्रमरों की गुंजार। सिमट गया कोहरे का जादू, सर्दी भी जा कर दुबक गई, नववर्ष की सुबह लेकर आई, समस्त चराचर में स्फूर्ति नई। है चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा , हर जन के लिए विशेष सूर्य -चंद्र आधार पर ,नववर्ष मनाता देश । शक्ति-भक्ति की भावना, मन में कपट-क्लेश नहीं मात्र नव वर्ष के प्रथम दिवस ही , शुरू होते वासंती-नवरात्र । सृष्टि का सृजन ब्रह्मा ने, नववर्ष से किया प्रारंभ विक्रम संवत का प्रथम दिवस, नववर्ष से हुआ प्रारंभ। श्री राम और युधिष्ठिर का,राज्याभिषेक भी आज हुआ, समाज के रक्षक सच्चे संत, झूलेलाल का प्रादुर्भाव हुआ। आर्य समाज की स्थापना,हुई नव वर्ष के प्रथम दिवस, गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र भी, मनाता नववर्ष को है सहर्ष। आंखों में चमक चकोर सी , देख फसल के आती हैं पकी फसल को देख के,किसानों की आँखें भी मुस्काती हैं। #सुनीता बिश्नोलिया

रंग

#रंग नीले-पीले,लाल-गुलाबी,जित देखो उत रंग हैं बिखरे, फाग का रंग चढ़ा धरती पर,रंग ही रंग हर तरफ हैं छितरे। उड़ते रंगों में लिपटी हुई ,धरती देखो बनी दुल्हनिया, फाग की मस्ती मुख पे लिए,बहु रंगों की ओढ़ चुनरिया, मोसम है मस्ताना और वात्सल्य लुटाती वसुधा, झूम रहा हर पल्लव संग मन में भर कर उत्साह। पुकार रहा मन आज मैं हर फूल को बाँहों में भर लूँ, ये रंग भरूँ हर जीवन में हर रंग को दिल में बसा लूँ। अलंकार अलबेले ये रंग,रूप धरा का और सँवारे, रंग बिरंगी पुष्प-लताएँ , कहीं खिले ये टेसू प्यारे, उड़ते हुए रंग कितने प्यारे,फाग की मस्ती में बहके सारे, धरती पर हैं अजब नज़ारे,आँखों को भाते हैं सारे। धरती का हर कोना भरा है,रंगों से लिपटी पूरी धरा है, बचा न कोने खाली कोना,रंगों ने न की शरारत जहाँ है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संस्कार

#संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीँ की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु,और ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़ी में संचरित करेगा.

श्रीदेवी

अमावस की काली रात ने छुपा लिया है जरुर तुम्हे। पर जुन्हाई कब तक छुपी रहेगी अँधेरे में। न भुला पाएगा जमाना तुम्हे भला चांदनी भी कहीं खोती है। #सुनीता बिश्नोलिया

श्रीदेवी

#श्रद्धांजलि श्रीदेवी उफ़ ! काल के क्रूर हाथ...         एक सितारा लूट गए। देखे थे अपनों ने सपने...         हाय अधूरे छूट गए। 'श्री' लुटाती सौम्य छवि       'सदमा' देकर चली गई। चंदा से निकली चटक 'चांदनी'            बादल में खो गई कहीं। नमन नमन अर्पण सुमन,           मिले  आत्मा को शांति। R.I . #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर