#दान-दोहे दान सहित सम्मान के,दीजो आगे आय, याचक की नजरें कभी,बोझ से झुक न पाय। दधिची मुनि का जानिए,त्याग देह का आप। कष्ट सहे हित जगत के,मिटे-मिटा संताप। दान दिया खुद कर्ण ने,खींचा कवच शरीर। मुस्काए सह कष्ट वो, हुए न जरा अधीर।। राजा बलि सा दान में,नहीं बराबर कोय, सब कुछ अपना दान दे,फिर भी नत थे होय।। दान करन सीता गई,पकड़ा पापी हाथ। नींव युद्ध की डाल के,सीता लीन्ही साथ।। जग में पहले सा नहीं,रहा दान का रूप। लालच के भी नाम से, दिखता दान स्वरूप। दान नाम से कर रहे,कुछ लोभी व्यापार। जेबें खुद की भर रहे,करके बंटाधार।। शिक्षा भी अब दान में,कहीं न मिलती भाय। ये मिलती गुरु नाम की,बड़ी दुकानों माय।। रक्तदान से बच रहा,जीवन नन्हा फूल। मगर बीच में चुभ रहे,लोभी बनके शूल।। अंगदान भी कीजिए,बहुत बड़ा ये दान। मरता-मानस जी उठे,पाकर दान महान।। ज्योत गई जिन नयन से, निर्बल मानस जात। दान-नयन का पाय के,खुशियाँ नहीं समात।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
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