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संदेश

दान--दोहे

#दान-दोहे दान सहित सम्मान के,दीजो आगे आय, याचक की नजरें कभी,बोझ से झुक न पाय। दधिची मुनि का जानिए,त्याग देह का आप। कष्ट सहे हित जगत के,मिटे-मिटा संताप। दान  दिया खुद कर्ण ने,खींचा कवच शरीर। मुस्काए सह कष्ट वो, हुए न जरा अधीर।। राजा बलि सा दान में,नहीं बराबर कोय, सब कुछ अपना दान दे,फिर भी नत थे होय।। दान करन सीता गई,पकड़ा पापी हाथ। नींव युद्ध की डाल के,सीता लीन्ही साथ।। जग में पहले सा नहीं,रहा दान का रूप। लालच के भी नाम से, दिखता दान स्वरूप। दान नाम से कर रहे,कुछ लोभी व्यापार। जेबें खुद की भर रहे,करके बंटाधार।। शिक्षा भी अब दान में,कहीं न मिलती भाय। ये मिलती गुरु नाम की,बड़ी दुकानों माय।। रक्तदान से बच रहा,जीवन नन्हा फूल। मगर बीच में चुभ रहे,लोभी बनके शूल।। अंगदान भी कीजिए,बहुत बड़ा ये दान। मरता-मानस जी उठे,पाकर दान महान।। ज्योत गई जिन नयन से, निर्बल मानस जात। दान-नयन का पाय के,खुशियाँ नहीं समात।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संगीत

#संगीत झंकृत करदे तार ह्रदय के,                 मन में जलता दीप, थिरक उठे साँसों की वीणा,                      वो होता संगीत। मीरा की मोहनवीणा ने,            ह्रदय लिया है जीत, बावरिया सी संतन संग            मीरा खोय रही संगीत। कान्हा की मुरली का सुनकर,                    मादक सा संगीत, फड़क उठे राधा के नयना,                  जगी अनोखी प्रीत। सनन-सनन पुरवाई भी,                  गाती होले से गीत। घोल रही रस राधा की पायलिया,              देख के मन का मीत। यमुना की लहरें भी मचलती,                सुन गोकुल के गीत, चंचल लहरें कल-कल-छल-छल,                घोले अपना संगीत। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर                 

मैं मीरा---जीवन परिचय(मीरा बाई)

            #मैं मीरा   (जीवन परिचय) वर्ष विक्रमी संवत का,                 लगा पन्द्रह सौ चौंसठ। जीवन के आरंभ से,                 दिवस सब रहे विकट।।             दूदा जी के 'रत्न' की,                  बनी कली मैं 'मीरा' , श्याम नाम की रट लगी,                धर लिया कुसुम शरीरा। मैं 'मीरा' घनश्याम की,                खेली मोहन के संग, बचपन में ही रंग गई,                 मैं तो कान्हा के रंग। 'सांगा' जी के पूत थे,                   'भोजराज' भरतार, उदयपुर के कुंवर को,                   कर लीन्हा स्वीकार। कुँवर भोज ने राह में,                 छोड़ा मेरा साथ। दुष्टों ने करने 'सती' ,              पकड़ा मेरा हाथ। जीवन पर अधिकार था,                मान न पाई बात      धर बैरागिन रूप मैं,                हुई संतन के साथ। विरक्त हुई संसार से,               संतन संगत पाय, मोहन की मैं बन सखी,              नाची संगत माय। नजरों में संसार के,              खुशियाँ खटकी मेरी, विष का पान कराय के,                    चाही मृत्यु मे

दोहे और कविता

दोहे लेकर पत्थर हाथ में,हिंसक हुआ समाज, धर्मों में मानव बंटा,लुटी देश की लाज। हिंसा की राहें तजें, तजिए सब हथियार, मौन की शक्ति देखिए,भरे दिलों में प्यार। अपने हाथों पर सदा,कर लीजे विशवास, हाथों के हथियार से, छूना है आकाश। सबकी काया एक सी,अलग न कोई भाय, दाता के दर पर सभी,आये ज्यों ही जाय। जालिम जिद के कारणे,जलते ज़िंदा लोग, खुद के ही नुकसान का,लगा जीव को रोग। #सुनीता बिश्नोलिया #सपना आँखों का हर सपना ही सदा पूरा तो नहीं होता, जिद कर लो तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रहता। उम्मीद-आशा और विश्वास हो अपने कर्मों पर, कोई लक्ष्य अपनी पहुँच से दूर तो नहीं होता। आजाद भारत का सपना देखा था उन सपूतों ने छोड़ देते वो हिम्मत तो देश आजाद नहीं होता। शिक्षा के उजाले का स्वप्न सलोना ले नयन में, लेकर के कटोरे निकले हैं हाथों बस्ता नहीं होता। किसी के तोड़ता है सपनों के महल अपनी खुदगर्जी में, दूजों के सपनों के टूटने का दर्द उनको जरा सा नहीं होता। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर सो रहे इस ज़माने को,जगाने की जरुरत है, नकल कर पढ़ने वालों को,सुधरने की जरुरत है। पैसों से खेलता है जो, हिमाक़त देखिए उनकी, फिरता

आँखें

आँखें 1आँखें मन का आइना,बोले ये बिन बोल। इनसे छिप पाया नहीं,भेद दे रही खोल। 2.नीरज-नटखट नयन हैं, उलझे-उलझे केश। नीर नयन से छलकिया,पिया गए किस देश।। 3.आँखें कहती प्रेम की,हर अनसुलझी बात। हँस-मुस्काते रोवते,नैना हैं कुम्लात ।। 4.नैनों में है रिक्तता,अधरों पर मुस्कान। राहों में तेरी बिछे,उपजे विरहा गान।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर  

मजदूर

#मजदूर आग सरीखे जलते दिन में, काम करे मजदूर हँस -हँस के सब का बोझा, सिर पे ढोता है मजदूर। ना हिन्दू ना ये मुसलमा, इसकी जाति बस मजदूर संघर्ष करे नित दुनिया से, कुछ पाने को मजदूर। हर काम अधूरा इसके बिन, हर काम करे मजदूर, छोटी-छोटीे बातों से भी खुश , रहता है मजदूर। अपनों की ख़ुशी तलाशे,अपनी मेहनत में मजदूर देश की खुशहाली का मजबूत आधार भी है मजदूर। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर ‌ ‌

हास्य व्यंग्य--नेताजी का उपवास

#हास्य व्यंग्य करना होगा उपवास,             बात ये आई न साथी रास, आओ चलो भोग लगाएँ।                है घंटे भर की देर, भटूरे-छोले आधा सेर,                आओ चलो खाकर आएँ। यहाँ देखेगा हमें कौन,                    रहना बंधू तुम मौन, चलो जमकर खाएँ।                   उफ्फ किसने खोली पोल, बज गया बंधू सुन ढोल,                    कहाँ हम मुँह को छिपाएँ। सुनो नेता है मक्कार,                  गलती करते न कभी स्वीकार, फजीहत खुद की कराएँ। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर