#स्मृति/यादें #दोहे अलबेली उस शाम की,ताजा है हर याद। संगम-साथी संग में, मीठा सा संवाद।। स्मृतियाँ मेरे मन बसी,ज्यों गुलदस्ते फ़ूल। महक मुझे हर फूल की,कभी न पाए भूल।। संगम था साहित्य का,हिल-मिल मिलते लोग, यादें ही बस शेष हैं,अजब-गजब संजोग।। खुशियों में डूबे सभी,उत्सव वाली रात। संग सजीली लाय हैं,यादों की सौगात।। संगम के आलोक में,डूबा था इंदौर। यादें ही बस रह गई,ताली का वो शोर।। भूल न पाएँगे कभी,साहित्य-गुम्फित शाम। कविताओं में है लिखा,संगम का ही नाम।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia