सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नीम का पेड़

"नीम का पेड़ " मेरे घर के बरामदे का नीम वाला पेड़... संरक्षक था सभी पक्षियों का जो आश्रय पाते थे इसकी शाख पर झूम उठता था वो भी उनकी एक आवाज पर । बचपन में हर दिन हम खेले थे संग थकते जो हम तो....वो भरता उमंग । हमारे लिए बहुत था उसका महत्त्व उससे हमें बहुत ही अपनत्व था अपने पत्तों को हिला-हिलाकर वो हमें अपने पास बुलाता था सावन में हमको वो झूला-झुलाता था। हर शाख पे उसके नीड़ नजर आते थे , परोपकारी था वो , कई पक्षी- परिवार उसी के सहारे थे। पवन- बाँसुरी हरदम बजाकर सिर पे 'निबोली ' का गहना सजाकर वो प्यार लुटाता था,हमको बुलाता था। संयुक्त परिवार के सारे बच्चों की जान था सबसे बड़ी बात हमारे घर की पहचान था। मेरे घर के बरामदे का नीम वाला पेड़.... आज जब जाती हूँ अपने घर, नजरें ढूंढतीं हैं उसे पर...... रिक्त हो गई वो जगह , नहीं है वो वहाँ पर हाँ वहाँ रहने वाले आदी हो गए हैं उसके बिन रहने के, पर वो हमारी तो दिनचर्या का हिस्सा था, नहीं भूल सकती हूँ मैं उसे .... क्योंकि उससे जुड़ा मेरे बचपन का हर किस्सा था। #सुनीता बिश्नोलिया जयपुर (राजस्थान)

अंतर्मन

#अंतर्मन  रहे मान-स्वाभिमान न हो जरा अभिमान              करें सबका सम्मान अंतर्मन जागिए।। न मन में राग-रंग रहे सदा ही उमंग              चंचल न ज्यों पतंग अंर्तमन जानिए।। न हो द्वार कोई बंद न मनों में अंतर्द्वंद              सबसे प्रेम-संबंध अंतर्मन देखिए।।  करें नहीं भेद-भाव सबको सुखों की छाँव              मिटा दें धूप के घाव अंतर्मन झांकिए।।

सूरमा भोपाली

#हास्य मिश्रित वीर रस सूरमा भोपाली को सूझी फिर से नई एक बात सोच-सोचकर जागे मियां आज की पूरी रात। आज गढ़ा है फिर एक किस्सा अपना रौब जमाने को बैठ गए ले चाय-चपाती,किस्सा-अपना सुनाने को। सुड़प-सुड़प के चाय गटकते चब-चब खाते रोटी । बोले भईया "हम शेर से भिड़े गए पहन लंगोटी । जब हम गये शहर में भईया! अपने चाचा के घर में, वल्ला वल्ला गजब हो गया !आया शेर शहर में। देख शहर में शेर दुबक गए, घर में सारे लोग, चचा हमारे ले लोटा बाहर आए अजब संजोग। आँखें चार शेर से करके चाचा तो थर-थर काँपे, गिरा हाथ से लोटा ,गीला हुआ पजामा काँपे। हम थे थोड़े व्यस्त कर रहे थे मियां मलखंब दौड़ पड़े हम उसी हाल में लिया नहीं था दम। शेर को हमने हाथ दिखाए अपने भारी-भारी शेर बिचारा ढेर हो गया नहीं चली होशियारी। जंगल की ओर दौड़ पड़ा वो देश हमारे दाँव पीछे-मुड़कर भी न देखा..गया जो उलटे पाँव। वाह्ह सारे कस्बे में हुई सूरमा भोपाली, आकर बिल्ली ने तब खोली बात थी डरने वाली। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
#जिंदगी फलसफा जिंदगी का है जिन्दगी नाम मुश्किलों का। बढ़के पीछे नहीं मुड़ना है जिंदगी नाम हौंसलों का।। न बन खुदगर्ज तू इतना सभी को साथ लेकर चल। मिटा दे तू नफरतों को जिंदगी नाम मोहब्बतों का।। तेरा ये धन तेरी दौलत नहीं कुछ साथ जाएगा, कभी न अंत होता है जिन्दगी नाम हसरतों का।। छोटी इस जिन्दगी में दे सहारा किस्मत के मारों को। रूप लेकर बेसहारों का जिन्दगी नाम बरकतों का। परखता रोज इंसा को खुदा-खुद ही कसौटी पर। न घबराना परीक्षा से है जिंदगी नाम इम्तिहानों का।। भला करना सभी का तू किसी का मत बुरा करना। संभल करके कदम रखना जिन्दगी नाम साजिशों का।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मैं पत्थर

#मैं पत्थर.. पत्थर जैसी हो गई,पड़ी पत्थरों बीच, हरित छाँव सर से उठी,खड़ी पत्थरों बीच। दृढ और मैं मजबूत बनी,अपनी राह पे बढ़के अधिकार छीनती हूँ अपने,इस दुनिया से लड़के। अटल बनी मैंने दुनिया में,अपने पैर जमाये, प्रस्तर के खंबों संग रहके,मैंने हुनर दिखाये। मध्य मुझे पाकर प्रस्तर में,कोई आह न भरना, ह्रदय हुआ है प्रस्तर मेरा अबला न कोई कहना। साँसों की वीणा गाती है,अब पत्थर के गान, खूब ज़माने ने करवाया,मुझको विष का पान। कहे जमाना मुझे बिचारी, नहीं है ये मंजूर, नियति-पत्थर बनें हैं मेरी पर मैं ना मजबूर। देखो मेरे मुख पे क्या,आज उदासी दिखती है, मैं कहती मेरी आँखें मेरी तक़दीर को लिखती है। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कुम्भकार

#कुम्भकार पाकर के स्पर्श तुम्हारा,                          जगी चाक की किस्मत, ये जीवन के फेर बताकर,                             रज को देता हिम्मत। ज्यों जीवन का चक्र निरंतर                      अविरल चलता रहता है, कुम्भकार का चक्र घूम कर                         नश्वरता बतलाता है। कोमल कच्ची मिट्टी को                  अपनी छाती पे वो धर कर, स्नेह पिता का देता है                      वो है सहलाता माँ बनकर। शीतल जल पाकर शीतल  वो                       वचन सुनाया करता है, शीतल वचनों की शीतलता                   रज में वो भर देता है। हे कुम्भकार हे भाग्य विधाता,                    मनचाहा हे सृजनकर्ता, तेरे हाथ की रज का जादू ,                चाक पे जीवन के निर्माता। हे कुम्भकार तुम धन्य हो,                   धन्य तुम्हारे हाथ का गौरव धन्य तेरे है चाक की कृति,                   धन्य तेरी माटी का सौरव, #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कह मुकरी

#कह मुकरी वो आवे मन हर्षावे, मन में सखी मेरे नाचे मोर, भावे जिया को उसका शोर। ऐ सखी साजन...ना सखी बादल। वो आवे मन डर जावे, तन काँपे ना निकले बोल, मन में चलते कितने बोल। क्यों सखी साजन.....न सखी चोर। वो आवे जीना दुश्वार, नींद ना आवै जाये चैन करार आँखें भी करें उसका बखान, ऐ सखी साजन......न सखी बुखार। वो छुए तो तन सिहर उठे, प्यास जिया की बुझ जाए, मन में आवै एक संतोष, क्यों सखी साजन......ना सखी पानी। वो छू ले तो अगन लगे, तन बदन में जलन लगे अपने ताप से कर दे खाक। ऐ सखी साजन...ना सखी आग। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मुआवजा--कहानी

#मुआवजा रेवती की आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे । बार-बार वो चारों बच्चों का माथा चूम रही थी,ह्रदय में ममता हिलोरे ले रही थी। खेत से थक-हारकर लौटी सास बार-बार रोने का कारण पूछ रही थी। पर रेवती कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी।बस वो चुपचाप खाना खाना बनाने का इंतजाम करने लगी। दिनभर दूसरों के खेत में मजदूरी बदले सास को थोड़ा सा आटा,चावल और मुट्ठीभर दाल मिली। जो उसने लाकर बहु को दे दिया।हालांकि घर के सातों सदस्यों के लिए यह राशन अपर्याप्त था किन्तु सुबह की तरह बच्चे भूखे नहीं रहेंगे..आखरी बार उन्हें अच्छा खाना तो खाने को मिलेगा। इसी सोच में डूबी रोती हुई वो काम कर रही थी तभी सास उसके पास आई और बोली "बेटा क्यों अपना दिल जलाती हो,जिसे जाना था वो तो चला गया। पर हमें इन बच्चों के बारे में सोचना है इनका भविष्य बनाना है। माना कि कुम्भल कुम्भल पति था पर हमारा भी तो बेटा था। उसकी मौत के पाँचवे दिन जब मैं इन बच्चों का पेट भरने और हँसता चेहरा देखने के लिए काम पर जा सकती हूँ तो तुम्हे भी हिम्मत रखनी होगी इन बच्चों में ही अब हमें अपना कुम्भल खोजना होगा।" इतने में लाठी के सहारे चलते और

यात्रा-संस्मरण

#यात्रा-संस्मरण मई 1995 शादी के 20 दिन बाद पतिदेव के साथ पटना जाने के लिए दिल्ली पहुँची।पहली बार घरवालों से इतनी दूर और इतने लम्बे सफ़र पर जा रही थी सो थोड़ी घबराहट भी थी। साथ था बहुत सार सामान...एक बैग तो पूरा मेरी कॉलेज की किताबों का ही था। अब मैंने अपनी इच्छा से ही प्राइवेट पढ़ने का निर्णय किया था..क्योंकि अब पतिदेव के साथ जो रहना था। खैर स्टेशन तक पतिदेव के परम मित्र और मेरे भाई साथ आए थे। ट्रेन थोड़ी लेट थी ये सब बातें करने लगे थे लगभग घंटे भर बाद गाड़ी आ गई और हम रवाना हो गए। थोड़ी देर बाद पतिदेव ने देखा कि इनका पर्स नहीं है..यानि जेब कट चुकी थी। पहले तो इन्होंने मुझे नहीं बताया पर बाद में बोले कि शायद टिकिट भी पर्स में ही थी। तो मैंने बताया कि टिकिट मेरे पास है जोकि इनके मित्र ने बनवाए थे और मुझे दिए और मैंने अपने पर्स में रख लिए थे। मुझे लगा अब इनके पास पैसे नहीं होंगे पर्स के साथ निकल गए सो मैंने कहा आप चिंता न करें मेरे पास खूब पैसे हैं मुँह-दिखाई और जो माँ-पापा ने दिए। मेरे इतना कहते ही ये मुस्काए और बोले वाह बड़ी समझदार हो लेकिन ये पैसे तुम्हारे हैं तुम जैसे चाहो खर

पढना है

# मुझे पढ़ना है अभी महावर मेहंदी न, बाबुल बस्ता ला दो मेहंदीवाली कड़ियाँ ना बाबुल पैरों में डालो। न पँख मेरे काटो बाबुल, न बेड़ी पैरों में डालो। अभी मेरे पैरों में घुँघरू, आखर के बजने दो, अभी मेरे पैरों में पायल जूते की सजने दो। छनक उठेगी शब्द सरिता कल-कल छल-छल बहती सुप्त मयूरा मन का बाबुल, बन कोयल वीणा गाती। बाबुल आखर की दुनिया से, बस पहचान करा दो, फिर इन पैरों में जंजीरे मेंहदी की बंधवा दो। पंख मेरे पैरों को आखर अपने आप ही देंगे। लोह-श्रंखला मेंहंदी वाली, ये खुद ही तोड़ेंगे।। #सुनीता बिश्नोलिया

#उत्सव

#उत्सव घर में 'उत्सव' है सखी , मिल गाएँ मंगल गीत। इंदौर उत्सव स्थान है, करना हैं शुरू संगीत। शानदार उत्सव होगा, होगी शानदार हर बात, सखियाँ सब मिल जाएँगी, उत्सव वाली रात। हिल-मिल सखियाँ सब चली, मुख पे अनोखी शान, साहित्य का उत्सव यहाँ होगा, होगी सबसे पहचान। कविता मधुर सुनाएँगी, सखियों की क्या बात, सब बंधू वहीं लगाएँगे, उत्सव में अपनी जमात। बिटिया की शादी में जैसे, बहुत बटोही आते हैं, इस उत्सव में भी सखियों, आओ मेहमान बुलाते हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर