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#दीपावली #दीपोत्सव #मिट्टी के दीये सी प्यारी खुशियाँ

विविध संस्कृतियों के सतरंगी इन्द्रधनुष के रंगों की आभा से सराबोर पर्वों रूपी रंगों के मध्य का चटक और चमकीला रंग- दीपावली, जो केवल पर्व नहीं बल्कि महापर्व है  संसार से तम हरने, लोगों के अँधियारे जीवन में उजाला भरने,  ह्रदय से संताप मिटाने, अंधकार से उजाले की ओर तथा  असत्य से सत्य की ओर ले जाने हेतु अंधकार से रातभर लङकर लक्ष्मी के  ज्योतिर्गमय रूप को आमंत्रित करते  नन्हे दिये। अमावस्या  की काली रात्रि में विश्वास, आस्था, ज्ञान और प्रकाश की अखंड जोत के प्रतीक जगमग जलते  मिट्टी के दीपक जो इस संसार में फैली असमानता रूपी असीम अंधकार को मिटाकर जग को अपनी रोशनी से जगरमगर कर देते हैँ। लोगों में प्रेम और भाईचारे का संचार करता दीपावली का पर्व समूह, समूह इसलिए कि ये एक दिन का पर्व या उत्सव न होकर कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक मनाया जाने वाला उत्सव है। प्राचीन समय से ही देशभर में दीपावली का त्योहार उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। खुशी और उल्लास प्रकट करने के साधारण तरीकों यथा, लोगों से मिलना, पूजा करके दीपोत्सव मनाया जाता है। पुराने समय में दीपावली से लगभग एक मही

मेहरानगढ़ दुर्ग - जोधपुर

मेहरानगढ़ दुर्ग इतिहास और स्थापत्य में विशेष होने के कारण साहित्यिक यात्राओं में भी किलों और महलों को देखने का लोभ संवरण  नहीं कर पाती। कलमकार मंच के तत्वावधान में  2 दिसम्बर 2018 को सूर्यनगरी जोधपुर में आयोजित साहित्य कुंभ के दौरान कलमकार टीम के साथ मेहरानगढ़ किला देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसलिए इस अविस्मरणीय यात्रा के पूरे वृत्तांत से पहले मेरी नज़र से मेहरानगढ़ दुर्ग दिखाने का प्रयास करती हूँ।            देश के प्राचीनतम किलों में से एक, राव जोधा द्वारा बनवाया गया, राजस्थान के गौरवशाली अतीत की गाथा गाता। कहने को वृद्धावस्था की ओर  अग्रसर किन्तु आज भी अपने समकालीन किलों एवं वर्तमान समय में बनी इमारतों को मुंह चिढाता रणबांकुरे युवा की भाँति गर्व से सीना ताने खड़ा अपने सौन्दर्य से अभिभूत करता मेहरान गढ़ दुर्ग। दुश्मन के हर आक्रमण को सहने में सक्षम तीखे दाँतों और नुकीले नखों को संजोकर रखते सैनिक की भांति '   पावणों' के स्वागत में मुकुराहट बिखेरता खुला पड़ा मेहरानगढ़ का प्रवेश द्वार।मुस्कुराती,बलखाती,अठखेलियाँ करती मौसम और समय के थपेड़ों से बूढी होतीं अपने जख्म छुपाती इन बड़े-बड़े

श्रद्धांजलि - अमृतसर ट्रेन हादसे के मृतकों को 🙏🙏

अमृतसर श्रद्धांजलि 19 अक्टूबर 2018 अमृतसर, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक विजय दशमी के दिन, राम के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना से दम्भी रावण के गर्व को धू धू कर जलता देखने का उत्साह मन लिए अपने परिवार के साथ हजारों की संख्या में लोग घर बाहर के काम निपटा कर जोड़ा फाटक एकत्र हो गए। भला भारत में कुछ को छोड़कर कोई मुख्य अतिथि समय पर आया है जो इस बार आता खैर मुख्य अतिथि के आगमन के पश्चात् राम ने जलती हुई तीर रावण की ओर छोड़ी, तीर सीधे रावण की नाभि में लगी रावण कराह उठा, उसका अहम जल उठा। उसका ह्रदय अपने ही ह्रदय में छिपे बारूद से फट गया। उसका पहाड़ सा शरीर घोर गर्जना  करता हुआ धराशायी होने लगा। परिवार के साथ उसे देखने आए लोगों का भी जोश चरम पर था।  चहूँ ओर राम  के जयकारे गूंज रहे थे। बस, रावण की चित्कार और राम के जयकारों के अतिरिक्त वहाँ और कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी,  भक्त ये दृश्य देखकर आनंदित थे.................. अचानक काल की क्रूर गति से आगे बढ़ती ट्रेन, घुप्प अँधेरे में पटरियों पर खडे लोगो को काटती, रौंदती, चली गई    उत्साह और ख़ुशी मातम में बदल गई, मौत के तांडव का ऐसा

मेरे पिता

मेरे पिता---मेरे गुरु स्नेह पिता का ऐसा था,न सखा कोई सम उनके था थे वो  मेरे प्रथम गुरु ,                    शिक्षा मेरी हुई वहीं शुरू विद्वान मनीषी ज्ञानी थे,विद्या के वो महादानी थे        मुँह पर सरस्वती का वास रहा,                            शिक्षा को समर्पित हर साँस रहा... ईश्वर के थे परम भक्त,रहते थे जैसे एक संत         पिता  मेरे वो थे प्यारे,                       शिष्यों के गुरूजी वो न्यारे, गुरु की पदवी शहर ने दी,शिक्षा सबको हर पहर ही दी ।             था देशाटन का शोक बड़ा,                         प्राकृतिक सोंदर्य का रंग चढ़ा, दीनों के दुख करते थे विकल,मन उनका पावन निश्चल ।             मुख से छंद  बरसते थे,                      औरों का भला  कर हँसते थे। वृक्षारोपण किया सदा,कहते वृक्ष सदा हरते विपदा।              पहाड़ों की ऊँचाई नापी,                          माँ संग सदा उनके जाती। माँ चली गई जब हमको छोड़,दुख ले लीन्हे तात ने ओढ़।          जब शक्ति हाथ से छूट गई,                               हिम्मत भी उनकी टूट गई।    धीरे -धीरे फिर खड़े हुए ,वो कलम उठाकर प

किस्मत - कर्म और भाग्य

अच्छे-बुरे के होने को,मनुज 'भाग्य'बतलाता है, मनचाहा नहीं मिलने पर,किस्मत की दुहाई देता है। मनुज तुम्हारे हाथों में भाग्य का चाँद चमकता है, कर्म से मिलता है इच्छित,ईश्वर का गणित ये कहता है। श्रम से डरते मानव की किस्मत का सितारा सोता है, अंधियारी गलियों 'बोझा',अंधविश्वास का ढोता है। मानव की बांहों की ताकत को,ईश्वर तक ने माना है, 'किस्मत का धनी' है वो इंसा,जिसने इस मर्म को जाना है। भाग्य तेरा क्यों कर फूटा,लो..आज मैं तुम्हें बताल दूँ, भाग्य से तुमको लड़ना,आओ...मैं सिखला दूँ। भाग्य के नाज घनेरे हैं, कब तक तुझको दुत्कारेगा गर कर्म करेगा आगे बढ़ तो भाग्य भी चरण पखारेगा। भाग्य के बल पर नहीं किसी ने,कर्म के बल पर सब पाया धरती से अम्बर तक मानव, भाग्य बदलता है आया। पुष्प खिला  माली की मेहनत,मकरंद तभी छिटकाया। किस्मत का टूटा कहर, कृषक का हरा खेत मुरझाया, उम्म्मीद का दामन न छोड़ा,,वो भाग्य से जा टकराया, हाथों के दम पर उसने फिर,कर्म का पुष्प खिलाया। बार -बार चींटी की किस्मत,नीचे उसे उसे गिराती है, कर्मठ चींटी  फिर उठकर,मंजिल को पा ही लेती है। कि

फूल

जोड़ता दिल को ये दिल से फूल कहता जमाना है, प्यार का ये बना साखी,खिलाकर इसको रखना है। मुहब्बत की निशानी हूँ,सुर्ख खुद फूल है कहता, वादा तुमको निभाना है,वादा मुझको निभाना है। हिना हाथों की ये कहती ,सजन तुम हो हजारों में, रखना फूलों सा तुम मुझको,सजाना तुम बहारों में। बड़ा नाजुक है ये बंधन सजन जो तुम से जोड़ा है, निभाना हमको ये नाता, जमाने की दीवारों में।

भूख

#कहानी-भूख जिधर नजर दौड़ाओ हर तरफ हरियाली सीताफल,केले अमरुद ,आम के वृक्षों से हरित उड़ीसा का छोटा सा ग्राम।   केशुभाई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी गाँव में रहता हैं। कृशकाय केशूभाई चिपके गालों से हड्डियाँ झांक रहीं हैं,आँखों के नीचे कालिमा और लगभग धँसी हुई ।गरीबी की मार के कारण मुँह से दांत भी बाहर निकल आए।ईमानदार इतना कि मालिक भाऊ साहब कई बार सबकुछ इसके सहारे छोड़ जाते हैं। भाऊ साहब के बागों में ही तो रखवाली का काम करता था। केसूभाई। बदले में उसे दो वक्त धान मिल जाता जिससे आधा-अधूरा पेट भर जाता और पाँच सौ ₹ मासिक पगार भी मिलती । बीवी भी दो तीन घरों में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम करती ।थोड़े धान और कुछ पैसे वो भी कमा लेती । ऐसे ही गुजारा चल रहा था।   लेकिन इस बार बारिश न के बराबर हुई बगीचों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी रखवाली के भाऊ साहब को चौकीदार रखना पड़े और फसल अच्छी न होने के कारण केशू की बीवी को भी घरों में काम मिलना बंद हो गया। अब तो उनके खाने के लाले पड़ गए ,रात को रुखा -सूखा मिल जाता तो दिन को नहीं..दिन को खाया तो रात को नहीं।इस अकाल के समय सरकार अपनी तरफ से गरीबों के भोजन-पान