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संदेश

श्रम सुंदरी

नाजुक अंग कोमल काया,तिस पर बिन सिंगार, बेल से नाजुक अंगों पर, बहती अमृत धार। रूप तेरा ज्यों चटख चांदनी,'ओ' गर्वीली नार, तड़ित हास् मुख से ना छुपा,बहने दे तू बयार। ललाट तेरे की शोभा सिंदूरी,क्यों आँचल में छिपाए, सूरज की लालिमा मुख पे गौरी,तेरे रूप को और बढाए। अंजान बोल आते तुझ तक , तेरे रूप को मलिन बनाए। तेरी आँखों का फैला काजल,खुद तेरा हाल सुनाए। धरती सा तेरा धैर्य कहीं  ,ना झरने सा बह जाए, तेरा रूप दमकते हीरे सा,कहीं धुंधला ना पड़ जाए।  मैली चुनरिया ओढ़ कामिनी,बोझा मस्तक धारे,  कर्मातुर तेरे हाथ सखी, तेरे रूप   को और निखारे। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

विश्व पुस्तक_ दिवस_   तम का करती नाश ये, हृदय जलावे जोत। राहों को रोशन करे, नन्हा सा खद्योत।।              सच ही तो हैं  किताबें जुगनू की ही तरह  अज्ञान रूपी अंधियारे मार्ग में टिमटिमाकर भटकों को राह दिखाती हैं। मेरे अनुसार किताबों का सतरंगी संसार... सतरंगी इसलिए कि नीले आकाश से लेकर माँ धरती  और  प्रकृति के विविध रंग  सिमटे हैं, सफेद धरातल पर लिखे काले आखरों में ।किताबें उस अनंत तक पहुँचने का वो जादुई द्वार है जहाँ से प्रवेश कर हमारी हर जिज्ञासा को शांत  ही नहीं करती   वरन हर उत्तर प्राप्त कर,नवीन रहस्यों को भी उद्घाटित करती हैं। किताबें तो वो जादुई चिराग हैं जिन्हें ज्ञान प्राप्ति हेतु घिसने भर की देर है।

मैं हिरनी - जंगल बचाओ धरती बचाओ

मैं हिरणी..... धरती बचाओ... मैंने सूरज की गर्मी से,                  तप्त धरा को देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन,                  मानव मरता देखा है।। करती थी अभिमान स्वयं पे,                   मैं जंगल की रानी हूँ। सपने से जागी तो देखा                    भूली हुई कहानी हूँ।। देख रही मानव का लालच                    कहे भाग का लेखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन,                    मानव मरता देखा है।। कहो कहाँ तक मनुज रहेगा,                      मस्ती में जो डूबा है। मुझ हिरणी का घर भी छीना                     आगे क्या मंसूबा है। जंगल काटे वन भी काटे                   चमन उजड़ते देखा है वन-उपवन हरियाली के बिन,                   मानव मरता देखा है।। पेड़ों के झुरमुट में मैं तो,                    दौड़ लगाया करती थी। शेर,बाघ ,चीतों को भी मैं,                    खूब छकाया करती थी।। मत काटो जंगल उपवन को                    भू पर संकट देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन,                     मानव मरता देखा है।।

उज्ज्वल भविष्य का निर्माण

#लॉकडाउन डायरी   #उज्ज्वल भविष्य का निर्माण      सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम निपटाकर साढ़े सात बजे स्कूल जाना और प्यारे-प्यारे बच्चों का अभिवादन स्वीकार कर घर को भूलकर अब इन्हीं बच्चों के साथ प्रार्थना सभा में खड़ा होना। स्कूल में इधर-उधर भागते उछलते -कूदते और धमा चौकड़ी मचाते बच्चे हँसते-मुस्कुराते बच्चों के साथ दिन कब बीत जाता पता ही नहीं चलता था। पर कोरोना संकट के कारण वार्षिक परीक्षा  भी पूरी नहीं हो पाई कि बच्चों की सुरक्षा हेतु सरकार की घोषणा से पहले ही स्कूल प्रशासन ने बच्चों की छुट्टी घोषित कर दी। दो दिन बाद सरकारी आदेश के पश्चात अध्यापकों को भी घर से स्कूल का कार्य करने हेतु निर्देश देकर छुट्टी कर दी गई तथा अभिभावकों को आश्वासन दिया कि किसी  भी हाल में बच्चों की पढ़ाई नहीं ख़राब होगी।    दो ही दिन में छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई की रूपरेखा तैयार हो गई और बच्चों से मोबाइल के माध्यम से संपर्क करने लगे।     छुट्टी होते ही कई बच्चे गाँव चले गए कई यहीं पर थे, कुछ फोन उठाते कुछ नहीं, कुछ का बाद में फोन आता-     'नमस्कार मैम मैं हर्षिता की मम्मी बोल रही हूँ,सॉरी मैम आपका फोन नहीं

अनोखी दोस्ती

अनोखी दोस्ती  चलिए आज मैं आपको मिलवाती हूँ लॉकडाउन के बीच आसरा ढूँढते हुए हमारे घर आए नए मेहमानों से । अरे! भई चिंता ना करें इन्हें कोरोना कुछ नहीं कह सकता और ना ही इनके कारण हमें कोई डर।   ये तो है एक प्यारी कबूतरी और कबूतर का जोड़ा कई दिनों से ये घर की बालकनी में रखे ग़मलों के पूछे घोंसला बना रहे थे। सफाई करने के दौरान मैंने एक दिन ग़मलों में भरने के लिए रखी मिट्टी की बाल्टी वहाँ रख दी और बालकनी का दरवाज़ा बंद करके अंदर आ गई। अंदर से ही दिनभर बालकनी में मैं कबूतरों की आवाजाही को देखती रही। शाम के लगभग पाँच बजे मेरा प्यारा जिमी बालकनी खुलवाने की जिद करने लगा तो चाय पीते हुए मैंने बालकनी खोल दी। अंदर आने लगी तो कबूतर की फड़फड़ाहट महसूस हुई और जिम्मी भी कूं-कूं करता हुआ वापस अंदर भाग आया। मैं देखने गई तबतक मम्मी जी यानी मेरी सास वहाँ पहुँच गई़। हम दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मिट्टी वाली बाल्टी में  कबूतर का घोंसला बना हुआ है और उनमें दो अंडे पड़े हैं वहीं पास में शेरनी बनकर बैठी कबूतरी जिसने मेरे पाँच साल के डॉग जिम्मी को डरा कर भगा दिया।      मम्मी ने सबको कह दिया इन्हें कोई नहीं छेड़

जलाते चलो - - #द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

भावार्थ   जलाते चलो - -  #द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जन्म 1 दिसम्बर 1916 को आगरा जिला के रोहता गाँव में हुआ। उनकी मुख्य कृतियाँ - 'हम सब सुमन एक उपवन के' , 'वीर तुम बढ़े चलो'...  जलाते चलो ये दिये स्नेह भर-भर कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा। ये दंतुरित मुस्कान हंसिनी का श्राप भले शक्ति विज्ञान में है निहित वह कि जिससे अमावस बने पूर्णिमा-सी; मगर विश्व पर आज क्यों दिवस ही में घिरी आ रही है अमावस निशा-सी। क्यों लड़ती झगड़ती हैं लड़कियाँ बिना स्नेह विद्युत-दिये जल रहे जो बुझाओ इन्हें, यों न पथ मिल सकेगा॥1॥ नारी अस्मिता और यथार्थ जला दीप पहला तुम्हीं ने तिमिर की चुनौती प्रथम बार स्वीकार की थी; तिमिर की सरित पार करने तुम्हीं ने बना दीप की नाव तैयार की थी। पन्नाधाय नारी अब कमज़ोर नहीं बहाते चलो नाव तुम वह निरंतर कभी तो तिमिर का किनारा मिलेगा॥2॥ वर्तिका रूप नारी का युगों से तुम्हींने तिमिर की शिला पर दिये अनगिनत हैं निरंतर जलाये; समय साक्षी है कि जलते हुए दीप अनगिन तुम्हारे पवन ने बुझाये। प्रेम नदी और स्त्री मगर बुझ स्वयं ज्

#स्टेडियम की उदासी

चूं-चूं,चर-चर, कुहू -कुहू, गुटर-गूं, पिहू-पिहू,फड़-फड़, फर-फर.. के स्वर के बीच, कुत्तों के भौंकने, लोगों के दौड़ने-हांफने और बातें करने की आवाजें सुबह चार बजे ही तो शुरू हो जाती है यहाँ।      ' आज स्टेडियम के चार चक्कर लगा लिए चलो शर्मा जी अब थोड़ी देर सुस्ता लेते हैं। ' ' हाँ-हाँ चलिए सच कहा बातों ही बातों में आज कुछ ज्यादा ही सैर करली, चलिए वहाँ हमारी सारी मित्र मंडली बैठी है उधर ही चलते हैं। ' अरे ये बच्चे भी सुबह-सुबह बैट और बल्ला लेकर आ जाते हैं स्टेडियम के अंदर।'   'ठीक ही तो है बच्चे भी बिचारे कहाँ जाएं स्टेडियम के अंदर ये तो खेलेंगे ही। '  'हाँ बस ध्यान ये से खेलें किसी को बॉल से चोट ना लग जाए।'    ' बेटा, देखो अभी यहाँ कितने लोग सैर कर रहे हैं,तुम्हारी बॉल से किसी को चोट लग जाएगी क्रिकेट खेलना हो तो थोड़ी देर से खेला करो। '   ' अंकल फिर हमारे स्कूल का टाइम हो जाता है, हम ध्यान से खेलेंगे आप आप चिंता मत करो हमारी बॉल आपकी तरफ नहीं आएगी। '     'बीना, थोड़ा जल्दी-जल्दी चलो, बच्चों के स्कूल का टाइम हो रहा

बुआ कहती थी - 3. मेरे ताऊजी - बाबा की स्मृति को नमन

बुआ कहती थी - 3 बुआ की यादों के गुलदस्ते से एक और फूल......       हमारे बड़े पापा यानि बाबा की पुण्य तिथि पर सादर नमन 🙏🙏 यह भी पढ़ें  बुआ कहती थी - 1 बुआ कहती थी - 2     मैं, मेरी छोटी बहन अमृता और हमारी बुआ एक ही कमरे में सोते थे। सोने से पहले नियम से बुआ हमें किस्से-कहानियाँ सुनाया करती। हालांकि इसके लिए हमें बहुत पापड़ बेलने पड़ते। बुआ जैसे ही कमरे में सोने आतीं हम अपनी किताबें एक कोने में रख देते और कहानी सुनाने के लिए बुआ के पीछे पड़ जाते। बुआ का पहला जवाब यही होता - 'छोरियो पढाई कर ल्यो, क्यूं ई कोनी मेल्यो कहाणी-किस्सां मै म्हानै देख पढ़ी-लिखी होती तो... . ।' कहते-कहते उनके चेहरे पर दुख की रेखाएँ साफ झलकने लगती थीं। उन्हें खुद के स्कूल ना जा पाने का बहुत दुख होता था । वो बताया करती थीं कि छोटे - भाई बहनों की जिम्मेदारी और....... खैर बुआ की पढ़ाई की नहीं वरन आज बात करते हैं ताऊजी की।ताऊजी के  बचपन के किस्सों की पोटली भी बुआ हमारे समाने खोलती तो पोटली से बिखरते कपड़ों की भाँति एक-एक किस्से भी बिखरने लगते और बुआ धीरे-धीरे हर किस्से की तह खोलने लगती ।  बुआ के किस्सों में ख

अब ये देश हुआ बेगाना 

बुआ कहती थी कि भारत-पाक विभाजन के समय पाक से बहुत से लोग सीकर आए, सरकार द्वारा शेखपुरा मोहल्ले में उनके रहने लिए अस्थाई में व्यवस्था की गई। कुछ समय बाद उन्हें स्थायी रूप से वहीं बसा दिया गया। उन्हीं के बीच में है हमारा घर। इसीलिए विभाजन का जो चित्र बुआ हमारे समक्ष प्रस्तुत करती थी उसे सुनकर हमारी आँखों के समक्ष भी भगदड़, डर और भूख का दृश्य उपस्थित हो जाता था और अपने पति को खोकर तीन बेटों के साथ पाकिस्तान से आई अम्माजी और पड़ौस में रहने वाले अन्य सिंधी और पंजाबी परिवारों के मुखियाओं की आँखों से विभाजन के दर्द को छलकते तो मैं भी देख चुकी हूँ। खैर ये सब बातें फिर कभी..      आज जब पूरा विश्व #कोरोना महामारी से जूझ रहा है भारी संख्या में शहरों से गांवों की ओर तो पलायन करते लोगों को देख कर मुझे बुआ के द्वारा बताई बातें याद आ रही हैं लेकिन दूसरे ही पल शहरों से गांवों की ओर पलायन करते लोगों को देखकर आँखें छलक उठती है और सोचती हूँ आज दिखाई देने वाला दृश्य उस दृश्य की अपेक्षा अधिक भयावह और शर्म से नजरें झुकाने पर मजबूर करने वाला है।क्योंकि उस समय जान बचाने के लिए विभाजन और साम्प्रदा

#कोरोना #

दूर मेरे आँचल से दोनों,  मेरे बच्चे रहते हैं सब ठीक है माँ चिंता न करो  एेसा मुझसे कहते हैं।  नौकरी के सिलसिले में बच्चे कहाँ माता-पिता के पास रहते हैं। दोनों बच्चे जयपुर से बाहर मुझसे दूर रहते हैं।      पर माँ तो माँ होती है चाहे वो माँ कोई भी हो.. मेरे हृदय में भी ममता हिलोरें मारती हैं। बच्चों को देखने के लिए आँखें तरसती हैं।रोज ही तो बात होती है।भला हो टेक्नॉलॉजी का जिसके द्वारा बच्चों को देख भी लेती हूँ।       वैश्विक संकट #कोरोना के कारण घर से दूर बच्चों की चिंता होती है। बेटी तो अपने घर में है इसलिए ज्यादा चिंता नहीं पर बेटा कम्पनी के काम से एक महीने से नोएडा के एक होटल में है। 22 मार्च को आने वाला था पर कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण होटल से नहीं निकल पाया । कम्पनी ने होटल में रहने की अवधि बढ़ा दी और बिना किसी चिंता के वहीं से काम करने को कह दिया। उसके साथ उसी की कंपनी के पाँच दोस्त और हैं जो विभिन्न प्रांतों से हैं सारे वहीं से काम कर रहे हैं। बेटा कहता है ममा हम सब अपने-अपने कमरों में बैठे काम करते हैं और कोई दिक्कत नहीं बस खाने की थोड़ी समस्या आ रही है होटल में

सुगना

#बेटी की मौत के दूसरे दिन माँ को खिलौने बेचने आना पड़ा  ''माँ चिंता मत करो, शीतला माता सब ठीक करेंगी बाबा जल्दी ही ठीक हो जाएँगे। मैं भी तो खिलौने बेचने चलूँगी।हम दोनों मिलकर ये सारे खिलौने बेच देंगे। माँ फिर छोटी को रोज दूध मिलेगा मैं इसमें से एक खिलौना भी बचाकर कर दूँगी उसे और वो स्कूल भी जाएगी। माँ बोलो ना कब चलेंगे हम मेले में...... । नटखट भालू, डांसिंग डॉल नाचता मोर.... ले लो...बीस-बीस रुपये में सारे खिलौने... ले लो ना दीदी।अंकल एक खिलौना तो ले लो मेरे बाबा की दवाई लानी है। माँ देखो मैंने भी सो रुपये के खिलौने बेच दिए आज तो दो सौ रुपये कमा लिए हैं। बाबा की दवाई, छोटी का दूध और आज का खाना सब मिल जाएगा ना.....अब मैं थोड़ी देर उस झूले पर झूल लूँ। सरकारी झूला है माँ पैसे नहीं लगेंगे...।"   'नहीं.. नहीं.. तुम्हें कुछ नहीं हो सकता पिंकी मेरा तो तुम्हीं एक सहारा हो उठो!' लाड़ली पिंकी की मीठी यादों से जागकर सुगना चिल्ला उठी।  'अरे! अभी-अभी तो ये खिलौने बेच रही थी,अचानक क्या हुआ इस खिलौने वाली को।'भीड़ में से एक आवाज़ आई।    'बिचारी बदनसीब औरत है,कल इस झूले