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संदेश

शिक्षक दिवस # teachers day

वंदे गुरु,                     ज्ञान की हाथ छैनी हथौड़ी लिए                 तराशा वो करते हैं पत्थर नए         हाथ घायल किए दिल भी छलनी हुआ                  पर जलाते रहे ज्ञान के वो दिये ।          अनगढ़ वो पत्थर लगा बोलने                  प्राण फूंके गुरु ज्ञान अनमोल ने        प्रपात बहने लगा अब तो पाषाण से                  वो पखारे चरण गुरु-सम्मान में।।             गुरु चरणों की रज से हृदय में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार ज्ञान के उजियारे में परिवर्तित हो जाता है तथा जीवन उज्ज्वल बना देता है।   सीकर की राधाकृष्ण मारु स्कूल में पढ़ते हुए अध्यापक- अध्यापिकाओं से इतना स्नेह हो गया था कि आज भी उनकी याद आती है। उनसे प्राप्त ज्ञान की घूंट अमृत बनकर कंठों को ऊर्जा देती है। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर अपना इच्छित पा रहे हैं उनकी, शिक्षा ही पाथेय है जिसके सहारे जीवन में आने वाली समस्याओं से भी हार नहीं मानी।  श्रीमती तारावती भादू, संतोष दाधीच, सरस्वती जांगिड़,उर्मिला पाठक, इंदिरा सहारण, इंदिरा राणा, सुधा जैन, सविता थापा, नीता सक्सैना आदि वे शिक्षिकाएं हैं जिन्होंने न हम छात्राओं को न के

बारिश का संगीत खो ना जाए

अरावली पर्वतमाला के अंक में बसा राजस्थान। ऊँचे-ऊँचे टीले और सोने सी चमकती बालू। राज्य के अधिकांश भाग में रेत उड़ाते रेतीले धोरे और पानी को तरसते खेत।ऐसा नहीं कि यहाँ बरसात होती ही नहीं बरसात के मौसम में बरसात तो होती है किंतु कई बार बरसात साल भर के लिए पर्याप्त नहीं होती।जल संरक्षण के उचित संसाधन न होने के कारण बरसात का कुछ पानी जमीन में जाता है तो अधिकतर व्यर्थ बह जाता है।      पानी को तरसते इन खेतों को सरसाने एवं पूरे वर्ष जन-जन की प्यास बुझाने हेतु जल का भंडारण की नितांत आवश्यकता है।हालांकि राज्य में थोड़े बहुत जल को  संग्रहित करने के लिए कुछ परंपरागत स्रोत भी हैं और कुछ नवीन भी। लेकिन व्यर्थ बहते पानी को बचाने और साल भर जनमानस की प्यास बुझाने के लिए जल प्रबंधन के और संसाधनों की महती आवश्यकता है।        राजस्थान का स्वर्णिम इतिहास गवाह है कि प्राचीन समय में राजा-महाराजाओं द्वारा भी जल प्रबंधन की अति उत्तम व्यवस्था की गई थी। जिसका अनुगमन करना आज अनिवार्य है। राजस्थान के विभिन्न किलों और दुर्गों में पानी के संचयन

कैसे लिया काव्य संग्रह का रूप #पुस्तक का रूप लेने से पूर्व

    कलमकार मंच   द्वारा प्रकाशित मेरे कविता संग्रह 'वर्तिका ' का लोकार्पण दिनांक 30/8/2020 को संपन्न हुआ।               वरिष्ठ साहित्यकार ऋतुराज, कथाकार जितेन्द्र भाटिया, आलोचक राजाराम भादू, फिल्मकार गजेन्द्र श्रोत्रिय, निबंधकार नाटककार प्रेमचंद गांधी और कलमकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक निशांत मिश्रा के हाथों  चुनिंदा रचनाकारों की उपस्थिति में हुआ।            इस काव्य संग्रह की भूमिका  हिंदी-राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्याम जांगिड़ जी ने लिखी है।     अगामी लेख में आप सभी के समक्ष भूमिका भी प्रस्तुत करुँगी ।  इस संग्रह छपने के पीछे कुछ रोचक किस्से भी हैं तो बहुत ही खास लोगों का योगदान भी।      वरिष्ठ साहित्यकार शकुंतला शर्मा दी से मिलना जुलना होता रहता है। वो मेरी कविताएँ पढ़ती भी हैं और अपनी बेबाक राय भी देतीं हैं। जहाँ सुधार अपेक्षित होता है वो अवश्य उसमें सुधार भी करवातीं हैं। उन्होंने ही मुझे  बताया कि ये कविताएँ स्कूल कॉलेज के छात्रों में प्रेरणा का संचार करेंगी इसीलिए इन कविताओं एक अलग पुस्तक में छपवानी  चाहिए

नश्वर जीवन...नहीं मरूंगी मैं

नहीं मरूंगी मैं  दुनिया है दुनिया में अपनी  आज निशानी छोड़ रही हूँ  झूठ जगत में रिश्ते नाते  मगर निभाए सारे हैं  क्या पाया रिश्ते-नातों में  मत पूछो हम हारे हैं  रिश्तों के पतले धागे मैं  पकड़े हूँ, ना छोड़ रही हूँ  ।।  धरती पर जो  भी आया है एक दिन उसको जाना है,  सत्य जानती हूँ जीवन का छोड़ जगत को जाना है ।  इस नश्वर जीवन का मुख मैं  अमर बेल से जोड़ रही हूँ।।  नहीं मरेगी कभी कविता  जीवन गीत सुनाएगी,  याद रहूँगी किस्सों में  बातें दोहराई जाएंगी । कलम कहेगी किस्से मेरे  इससे रिश्ता जोड़ रही हूँ।।  सुनीता बिश्नोलिया ©®

राजस्थानी भाषा म्हारी 'मायड़ भाषा'

मीठी बोली मारवाड़ी ,सबसे पहले इसी भाषा में बोलना और अपने भावों को व्यक्त करना सीखा। राजस्थान के टीलों, धोरों, हवेलियों, महलों और चौबारों में खनकती, इत्र सी महकती, कानों में मिश्री की सी मिठास घोलती हैं राजस्थानी बोली। कहते हैं हर पाँच कोस में राजस्थानी भाषा का स्वरुप थोड़ा सा बदल जाता है।  हाँ जरूर बदलता है लेकिन इसकी विविधता और परिवर्तनशीलता ही इसकी मुख्य विशेषता है।  इसीलिए तो देश के लगभग पाँच करोङ लोगों द्वारा बोली जाती है राजस्थानी भाषाएं।        राजस्थानी भाषाओं में प्राप्त  प्राचीन साहित्य, लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी लोगों के मन को लुभाते और मनोरंजन तो करते हैं पर इन भाषाओं को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी कारण इन्हें विद्यालयों में पढ़ाया नहीं जाता।     जहाँ पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझते हैं वहीं उनके द्वारा राजस्थानी भाषा को दैनिक रूप से बोलचाल में प्रयोग करना ही बंद कर दिया गया है। जिससे राजस्थानी भाषाओं का विस्तार तो नहीं हुआ वरन ये संकुचित होकर ह्वास  की ओर जरूर अग्रसर हो रही है। 

जेईई मेन और नीट की परीक्षाएं

      एक समय देश में कोरोना का इतना खौफ़ था कि सरकार ने लोगों के घरों से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया था। ट्रेन, बस यहाँ तक कि निजी वाहनों की आवाजाही पर भी रोक थी। सड़क पर बिना कारण घूमने वालों को मारा जाता और बेइज्जत किया जाता था।     लगता था कि सरकार का ये कदम और ये कठोर निर्णय देश हित में है। वास्तव में देश हित में ही तो था ये कदम तभी तो देश में लॉकडाउन लगा और गरीबों की नौकरी गई अन्यथा वो कमा-खा रहे थे। लेकिन फैक्ट्री और और रोजगार के अन्य साधन बंद होने के कारण भूख से मरने से अच्छा पैदल ही घरों की ओर चल पड़े कितने ही मजदूर बेमौत मारे गए। हाय! कोरोना कितने घरों के चिराग बुझ गए सिर्फ तुम्हारे नाम से। गरीब मजदूरों को मरता देखकर भी नियमों में ढिलाई नहीं दी गई ये इस महामारी का भय ही तो था कि देश की कमर टूटती अर्थव्यवस्था को संभालने वाले इन कर्णधारों का जीवन चींटियों की भाँति हो गया और ये उन्हीं चींटियों की भाँति सड़कों पर जहाँ-तहाँ रेंगते दिख रहे थे।  सरकार के प्रयास और जनसाधारण ने इस महामारी के संक्रमण बचने का पूरा प्रयास किया।