वंदे गुरु, ज्ञान की हाथ छैनी हथौड़ी लिए तराशा वो करते हैं पत्थर नए हाथ घायल किए दिल भी छलनी हुआ पर जलाते रहे ज्ञान के वो दिये । अनगढ़ वो पत्थर लगा बोलने प्राण फूंके गुरु ज्ञान अनमोल ने प्रपात बहने लगा अब तो पाषाण से वो पखारे चरण गुरु-सम्मान में।। गुरु चरणों की रज से हृदय में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार ज्ञान के उजियारे में परिवर्तित हो जाता है तथा जीवन उज्ज्वल बना देता है। सीकर की राधाकृष्ण मारु स्कूल में पढ़ते हुए अध्यापक- अध्यापिकाओं से इतना स्नेह हो गया था कि आज भी उनकी याद आती है। उनसे प्राप्त ज्ञान की घूंट अमृत बनकर कंठों को ऊर्जा देती है। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर अपना इच्छित पा रहे हैं उनकी, शिक्षा ही पाथेय है जिसके सहारे जीवन में आने वाली समस्याओं से भी हार नहीं मानी। श्रीमती तारावती भादू, संतोष दाधीच, सरस्वती जांगिड़,उर्मिला पाठक, इंदिरा सहारण, इंदिरा राणा, सुधा जैन, सविता थापा, नीता सक्सैना आदि वे शिक्षिकाएं हैं जिन्होंने न हम छात्राओं को न के
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia