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नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"

नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ" अनोखी का संघर्ष : फूल से से तलवार   नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"*     संस्करण 2021  में शामिल करने एवं पुस्तक की प्रति उपलब्ध करवाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Manisa Sharma जी।       नारी अस्मिता : अर्थ परिभाषा और यथार्थ       (ऐतिहासिक, सामाजिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य) संपादन- डॉ. मनीषा शर्मा, डॉ. सुधा राठी, डॉ. अनन्ता माथुर  के संपादन में एक स्त्री के समग्र स्वरुप के दर्शन के उद्देश्य से तैयार की गई बहुत ही महत्तवपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक की यही विशेषता भी है कि नारी जीवन से जुड़े विविध पहलुओं का शोध, लेखन और सभी कार्य महिला महिला रचनाकारों द्वारा ही संपादित किए गए हैं। गुरु बिन ज्ञान कहाँ         डॉ. मनीषा शर्मा बताती हैं कि मेरे घर में सहायिका आती थी 18 - 20 साल के आसपास की उम्र वाली। यथा नाम तथा गुण वाली 'खुशी' हमेशा चहकती  दिखाई देती थी।  एक दिन उसने इसी तरह चहकते हुए बताया कि कल उसके पति ने उसकी सर्विस(पिटाई)  की। बच्चों ने आश्चर्य से उसे देखते हुए पूछा आप फिर भी इतनी खुशी से यह बात कह रही हैं

बरसात - जमके बरसे मन फिर क्यों तरसे

कवयित्री #शिवानी जयपुर के साथ लीजिए पहली बारिश का अद्भुत आनन्द  शिवानी कहती हैं -  सुकून से सो रहे थे पंछी आज बादलों ने फिर हम से की गुफ्तगू आज पहली बारिश का स्वागत ज़रूरी है भई 😁😁 अरे बादल जरा घेरो,      मेघ- मन आसमां को तुम             कि ऎसे जोर से बरसों,                    धरा को दो नया जीवन।  काया जल रही है तुम,         शीतल बूंदे बरसाओ,             है प्यासी ये धरा बादल,                प्रेम जल शब्द छलकाओ।  कवि गाओ राग ऐसा,      जागे सोते हुए सारे,            तेरे शब्दों की शीतलता,                 ह्रदय में ऐसे बस जाए।  मन के घन गरज कर तुम,        विषमता जग की सम कर दो,                मुक्त कर दो रूढ़ियों से,                     सुमन- सौरभ बिखरा दो  पिघल जाएँ हृदय पत्थर,          गीत गाओ अति मधुरिम,                  भरम की गाँठ सब खोलो,                        मिटाओ भेद सारे तुम।  जमे शैवाल बह जाएँ,         बहो बन तेज धारा तुम                 बाँध शब्दों के ना टूटे,                        मीठी सी बहे सरगम।। सुनीता बिश्नोलिया ©® फिर फिर जावे बादली

दोहा गीत - फिर-फिर जावे बादली (बरखा गीत)

बरसात का गीत.. बरखा गीत  दोहा गीत - - - - फिर-फिर जावे बादली_ बैठी हूँ मैं बावरी, ले बरखा की आस।  दिन-गिन सावन के कटें,ये मन हुआ उदास।।  गहरे बादल हैं घिरे, बहती मंद समीर।  फिर-फिर जावे बादली, फिर मन हुआ अधीर।।  फिर भी मन में आस है, देख गगन में रंग  चमक रही है दामिनी, हृदय मेघ का चीर।।  दूर देश बरसी घटा, है मुझको अहसास।  दिन-गिन सावन के कटें,ये मन हुआ उदास।।  जमके बरसे मन फिर क्यों तरसे थके-थके देखो नयन, रस्ता रहे निहार। इन आँखों में है छिपा, बनकर आँसू प्यार।।  कह कब तक न आएगी, धोरां वाले देश  आन बुझा मन- प्यास तू, छेड़ मेघ मल्हार।।  सूखी धरती प्रेम की, सूखा सावन मास।  दिन-गिन सावन के कटें, ये मन हुआ उदास।।  सुनीता बिश्नोलिया ©®

चिड़िया और कोयल

चिड़िया और कोयल                     शहर के दूसरे छोर की बगिया में          ख़ुद को हीन समझ,          कंठ में मिठास छिपाए चुपचाप बैठी          घबराई हुई कोकिल को          राह दिखाकर चिड़िया          ले आई अपनी बगिया में।         थोड़ा शरमाई ,थोड़ा सकुचाई थी वो।          देखकर अपनत्व उंडेलने लगी मधु कलश         अपनी वाणी से ,         बहुत साथी बना लिए थे कम समय में         अपनी मिठास से।          महत्त्वाकांक्षाओं में अंधी कोकिल          हर पेड़,हर पत्ते में          भरना चाहती थी अपनी मिठास,         नापना चाहती थी हर वो ऊंँचाई,          जो सिर्फ सपना थी उसके लिए,          सपने सच होते हैं, जानती थी वो        किन पँखों  के सहारे         पहुँचेंगी पेड़ की फुनगी पर          पहचानती थी वो ।         चिड़िया को कुंठित कहकर        धकियाते हुए       नापने लगी हर वो ऊँचाई       अपनी मिठास से।       छोड़कर आम की डाली       अब बसेरा है नीम की डाल पर       नीम भी छोड़कर अपनी कड़वाहट       बन गया मीठा-गुणहीन       सब भूल गए उस भ

सुप्रभात - प्रेमचंद के सुविचार

#सुप्रभात  जवानी आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग बन जाती है तो करुणा से पानी भी।     #प्रेमचंद

मेरे पिता - मेरे गुरु

#मेरे पिता---मेरे गुरु (श्रद्धांजलि) स्नेह पिता का ऐसा था,न सखा कोई सम उनके था थे वो  मेरे प्रथम गुरु ,                    शिक्षा मेरी हुई वहीं शुरू विद्वान मनीषी ज्ञानी थे,विद्या के वो महादानी थे        मुँह पर सरस्वती का वास रहा,                            शिक्षा को समर्पित हर साँस रहा... ईश्वर के थे परम भक्त,रहते थे जैसे एक संत          पिता  मेरे वो थे प्यारे,                       शिष्यों के गुरूजी वो न्यारे, गुरु की पदवी शहर ने दी,शिक्षा सबको हर पहर ही दी ।             था देशाटन का शोक बड़ा,                          प्राकृतिक सोंदर्य का रंग चढ़ा, दीनों के दुख करते थे विकल,मन उनका पावन निश्चल ।             मुख से छंद  बरसते थे,                      औरों का भला  कर हँसते थे। वृक्षारोपण किया सदा,कहते वृक्ष सदा हरते विपदा।              पहाड़ों की ऊँचाई नापी,                          माँ संग सदा उनके जाती। माँ चली गई जब हमको छोड़,दुख ले लीन्हे तात ने ओढ़।          जब शक्ति हाथ से छूट गई,                                हिम्मत भी उनकी टूट गई।    धीरे -धीरे फिर खड़े हुए

मिल्खा सिंह - जीवन परिचय

मिल्खा सिंह का जन्म: 20 नवंबर 1929 में पाकिस्तान के गोविन्दपुर में हुआ।  स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक मिल्खा को जिंदगी ने काफी जख्म दिए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी । भारत विभाजन के समय हुए खून खराबे में मिल्खा सिंह ने अपने माँ बाप को खो दिया।        वो   बहुत मुश्किल से वे शरणार्थी बन कर ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से भारत आए और दिल्ली के शरणार्थी कैंपों में छोटे-मोटे जुर्म करके गुजारा करते हुए जेल भी गये। इसके अलावा सेना में भर्ती होने की तीन बार कोशिश  की पर वो असफल रहे।         महान एथलीट 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह देश के लाडले धावक थे।वो भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट्स में से एक थे।  दैनिक भास्कर अखबार की रपट के अनुसार मिल्खा सिंह एक ऎसा हिंदुस्तानी एथलीट जिसकी जीत पर  पाकिस्तान भी खुशी मनाता था।    मिल्खा जब किसी देश में तिरंगा लेकर उतरते थे वो जीतते थे तिरंगा ओढ़कर घूमते थे, तो पाकिस्तान में भी जश्न मनता था।  वे संभवतः एथलीट जिनकी जीत पर  पाकिस्तान भी खुश  होता था।       मिल्खा सिंह ने 1960 में रोम ग्रीष्

सुप्रभात #सुप्रभात #goodmorning - दोहे

सुप्रभात  झूठा-अंजन डाल के,मत कर आँखें बंद।    सत्य साथ देगा सदा,झूठ रहे दिन चंद।1।    अहंकार का मत भरो,काजल अपनी आँख।     टूटेगा इक रोज ये, ज्यों पंछी की पाँख।2।   .काजल ज्यों काले करे,निर्मल-कोमल हाथ।      साथी को दागी करे, दुष्ट मनुज का साथ।2।     रंग मंच दुनिया सकल,अभिनय करना काम।     दाता नाच नचा रहा, बैठा डोरी थाम।3।      सुनीता बिश्नोलिया 

#सुबह. सूरज #सूरज सुप्रभात

#सुबह स्वर्ण रश्मियाँ छितराई,लो आई अलमस्त सुबह, चिड़ियाँ  ने भी पंख पसारे,लो आई मदमस्त सुबह। झाँक उठी पल्लव से कलियाँ,नवजीवन लेआई सुबह, भाग पड़ी तारों की सेना,नटखट इठलाती आई सुबह। लो गायें भी लगी रंभाने,गाती-मुस्काती आई सुबह, पशुधन दुहने ग्वाल चले,घर भरने फिर आई सुबह। सज-धज पनघट चली गुजरिया,अलबेली लो आई सुबह, साथ चली छनकाती पायलिया खेतों में मुस्काई सुबह। चलीं कुदालें और फावड़े,नव सृजन करने आई सुबह,  बज उठी तान मोहन की ,लो वीणा के स्वर लाई सुबह। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

सुप्रभात #सुप्रभात

सुप्रभात अंगड़ाई सूरज ने ली,       कर खोल रहा धीरे-धीरे। चली यामिनी वसन समेटे,      खग कलरव करते यमुना तीरे।। 

पर्यावरण - दोहे #पर्यावरण

पर्यावरण दिवस  पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाएं हरी-भरी धरती रहे,नीला हो आकाश, स्वच्छ बहे सरिता सभी,स्वच्छ सूर्य प्रकाश।। पेड़ों को मत काटिए,करें धरा श्रृंगार। माटी को ये बांधते,ये जीवन आधार।। वन के जीव बचाइये,रखते धरती शुद्ध। अपने ही अस्तित्व को, करते हमसे युद्ध।। शुद्ध हवा में साँस लें,कोई न काटे पेड़। आस-पास भी साफ़ हो, सभी बचाएँ पेड़।। धरती माता ने दिए,हमें अतुल भण्डार, स्वच्छ पर्यावरण रखें, मानें हम उपकार।। कानन-नग-नदियाँ सभी,धरती के श्रृंगार।  दोहन इनका कम करें,मानें सब उपहार।।  साफ-स्वच्छ गर नीर हो,नहीं करें गर व्यर्थ। कोख न सूखे मात की, जल से रहें समर्थ। धूल-धुआँ गुब्बार ही,दिखते चारों ओर। दूषित-पर्यावरण हुआ,चले न कोई जोर।। कान फाड़ते ढोल हैं,फूहड़ बजते गीत, हद से ज्यादा शोर है,खोये मधुरम गीत। हरी खुशहाली के,धरती भूली गीत। मैली सी वसुधा हुई,भूली सुर संगीत।। पर्यावरण स्वच्छ राखिये,ये जीवन आधार, खुद से करते प्यार हम,कीजे इससे प्या