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संदेश

गुलजार हुए स्कूल

#राजस्थान पत्रिका       "मैम स्कूल कब खुलेगा, हमें स्कूल आना है।   आपसे मिलना है, फ्रेंडस से मिलना है। "     "मैम प्लीज एक बार स्कूल दिखा दीजिए।"   प्लीज मैम हमारी क्लास दिखा दीजिए.. प्लीज.. प्लीज।"    ऑनलाइन पढ़ाते हुए बच्चों का स्कूल आने के लिए इस तरह मचलना देखकर चाहते हुए भी  उन्हें स्कूल नहीं बुला पाते थे । हाँ लेपटॉप के साथ ही क्लास को मोबाइल से जोड़कर बच्चों को दूर से ही विद्यालय का भ्रमण अवश्य करवा दिया करते थे । बच्चों की खास फरमाइश पर उन्हें स्कूल के पसंदीदा स्थान दिखाकर उनके चेहरे पर मुस्कराहट बिखरने में तब भी शिक्षकों ने कसर नहीं छोड़ी और अब जब बच्चे स्कूल आने लगे हैं तब भी शिक्षक दोगुनी ऊर्जा से जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं।                  स्कूल स्टाफ हो या छात्र सभी को थर्मल स्क्रीनिंग और हैंड सेनेटाइज करने के बाद ही  स्कूल में प्रवेश की अनुमति दी जाती है।           स्कूल के मुख्य गेट पर खड़े गार्ड से लेकर शिक्षक तक सभी मास्क पहने हुए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं।          अधिकांश बच्चे अब स्कूल आने लगे हैं। स्कूल आक

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  शब्दों की सरिता बहे, बोले मीठे बोल।  हिंदी भाषा है रही कानों में रस घोल।।  पश्चिम के तूफान में, नहीं पड़ी कमजोर।  हिंदी शब्दों की लहर,करती रही हिलोर।  सोने सी महँगी बड़ी, हीरे सी अनमोल  इसे चुरा पाए नहीं, भारत आए चोर।।  सरस शब्द ही जान है, इनसे है पहचान।  हिंदी की गाथा सकल, गाता सदा जहान। नव सृजन, नव गीत और, दोहा, रोला,छंद रस की गागर अंक भर,गाती मीठे गान।।  शब्द-  शब्द सम्मान है, होते गहरे अर्थ।  थोड़े में ज्यादा कहें, नहीं बहाओ व्यर्थ । आँचल में इसके कई, भाषा करें किलोल हिंदी भाषा हिन्द की, सच में बहुत समर्थ।।   सुनीता बिश्नोलिया © ® जयपुर 

इमली का बूटा

   इमली का बूटा...      इमली... नाम सुनते ही आ गया ना मुँह में पानी। मुँह में पानी तो मेरे भी आ गया पर मुझे तो इमली की कहानी ही कहनी है तो संभालना पड़ेगा अपने आपको।      हाँ तो यहाँ मैं बात करने वाली हूँ इमली की.. नहीं.. नहीं सिर्फ इमली नहीं इमली के पेड़ की। इमली का पेड़ हाँ भई बहुत ऊँचा और घना पेड़ होता है इमली का।मुझे इमली का पेड़ बहुत पसंद है क्योंकि बचपन से ही देखते आई हूँ इमली के पेड़ को।     सीकर में देवीपुरा में हनुमान जी का बहुत ही भव्य मंदिर है। ये मंदिर देवीपुरा बालाजी के नाम से प्रसिद्ध है।    पिताजी बालाजी के पक्के भक्त थे इसलिए वो इस मंदिर में रोज जाया करते थे इसलिए हम भी कभी- कभी उनकी उंगली पकड़ कर उनके साथ चले जाते थे।      पिताजी के साथ हमारे मंदिर जाने का कारण हमारी भगवान में आस्था कतई नहीं थी।    हमारी आस्था का केंद्र था मंदिर में खड़ा इमली का पेड़। जिसकी सघन शाखाओं पर पक्षी किलोल करते तो हम बच्चे मुँह में पानी भरे एक दूसरे को उसकी शाखाओं से लटकती कच्ची-पक्की  लटकती इमलियां दिखाने के लिए आँखें गोल-गोल करते।

बढ़ती महंगाई - महंगा गैस सिलेंडर

  बढ़ती महंगाई से तंग आकर         एक फैसला कर लिया..।        एक ही बार बनाऊँगी खाना         मैंने ये निश्चय कर लिया।         पहले ही दिन पेट में कूदते चूहों ने         घायल कर दिया         एक टाइम खाने का फैसला मैंने         तत्काल बदल दिया।         सब्जियां मंहगी और गैस दुश्मन बन गया         बढ़ती देख अपनी वैल्यू        मुआ सिलेंडर भी तन गया।         सुबह खाएंगे दही-चूड़ा ( दही-चिवड़ा)          तो शाम को दाल बनाऊँगी          और मैं कुशल गृहणी की तरह          घर चलाऊंगी।       इधर-उधर देखा तो दालों के खाली डिब्बे         बड़बड़ा रहे थे        देखकर अकड़ ढीली मेरी , सिलेंडर          महाशय मुस्कुरा रहे थे।        गैस पर पतीला चढ़ा देखकर झल्लाई,         खुद के ही लिए चाय बनती देख     खिसियाई।          चाय का कोई ऑप्शन नहीं         ये तो कमज़ोरी है,          बिन गैस बनेगी नहीं,          गैस की सीना-जोरी है।     ध्यान आया.. क्यों ना पैट्रोल बचाया जाए     हर समान में 'वेट' है तो क्यों न     पैदल चलाकर घर वालों का      वेट ही कम किया जाए।     आसमान पर चढ़े पैट्रोल से     नज़र मिलाने क

धरती धोरां री

धरती धोरां री      हर वर्ष  'शिक्षक दिवस' से पूर्व शैक्षणिक भ्रमण हेतु छात्रों को ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन हेतु जाया करते हैं पिछले दो सालों से कहीं जाना नहीं हो रहा। इसीलिए भ्रमण की यादें. जब निकल पड़ा था हमारा कारवां कुछ नए अनुभव समेटने । उद्देश्य छात्रों को गाँवों से जोड़ने,प्रकृति के अंचल में समाप्त होते रेतीले धोरों में खुले आसमान के नीचे स्वच्छंद इस पेड़ से उड़ते पक्षियों को निहारने की सुखानुभूति प्रदान करना।     #कुछ छात्रों का रेतीले टीलों पर दौड़कर चढ़ जाना कुछ का धीरे -धीरे लक्ष्य प्राप्त करना और कुछ का मार्ग में ही पस्त हो जाना। आस-पास में बकरी और गायों को चराने वाले बच्चों,महिलाओं को बिना किसी परेशानी के पहाड़ी की चोटी पर चढ़ता देखकर पहाड़ तो नहीं पर पुनः रेत के टीलों पर चढ़ने का प्रयास कर सफलता प्राप्त करने की खुशी से झूमते बच्चों को देखकर प्रसन्नता का अनुभव तो हुआ किन्तु उनकी..हमारी जीवन शैली पर प्रश्न चिन्ह लगता दिखाई दिया     #कुछ दृश्य मन को आनन्दित करनेवाले थे तो कुछ दृश्यों ने मन में आक्रोश भर दिया। मेरा मानना है अगर हम गाँवों को कुछ अच्छा नहीं

बस एक ख्वाब ज़रा सा है

#बस एक ख्वाब ज़रा सा है  स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं              ~~~~~~~~ भूलें द्वेष-दंभ को त्यागें,बस छोटी सी आशा है।  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                               (१) गीत प्रीत के गूंजें हर सू,मधुर रागिनी बजने दो।  देश भक्ति के मधुर तरानों,वाली महफिल सजने दो।। भिन्न-भिन्न परिवेश हमारा,भिन्न हमारी भाषा है।  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                               (२) रंग केसरी की आभा को,इस जग में बिखराने दो।  श्वेत रंग सौहार्द सिखाता,जगति को बतलाने दो।। रंग हरा वसुधा का गौरव,भारत की परिभाषा है।  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                             (३) शिक्षा के आलोक से जग-अँधियार मिटाने दो।  बस श्रेष्ठ जगत से हो भारत,कर्मों से दिखाने दो।।  वीर सपूतों की ये धरती, करती हमसे आशा है  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                              (४) जाति - धर्म की तोड़ दीवारें, संग सभी को आने दो।  गंगा- जमुना दोनों ही को, गान देश का गाने दो।।  पेट भरे हर उस जन का जो, कब से भूखा-प्यासा है।  एक रह

शहादत का रंग बसंती

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं शहादत का रंग बसंती खुनक राख की गर्मी आज भी है हवाओं में शहादत का रंग बसंती आज भी है घटाओं में। खुद को गाफिल न समझ ऐ! नौजवां देश के तू बसा हर शख्स की आज भी है दुआओं में। वतन पे टूटते जुल्मों को सहा अपने बदन पे आसीरी के दिए निशां आज भी हैं दिशाओं में। 'सुनीति' हिम्मत से तेरी वतन से भागा फिरंगी जज्बे के तराने गूंजते आज भी हैं फिजाओं में।। #सुनीता बिश्नोलिया©

अवरुद्ध कंठ - कविता

     कंठ हुए अवरुद्ध  गाने को आतुर कोकिल के  कंठों में गीत मचलते हैं,  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।।  कहो कहाँ तक मौन रहे वो  कंठ ही जिसकी थाती है,  अंतर्द्वंद से कैसे जीते  अंखियन नीर बहाती है। देख उजड़ती अपनी दुनिया युद्ध स्वयं से चलते हैं,  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।।  बुरे समय का साथी तरुवर ठूंठ हुआ बिन गीतों के पत्ता-पत्ता गिरा बहारें  बीत गईं बिन प्रीतों के।  मन मयूर भी भूल थिरकना आज गमों में पलते हैं  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।। दादुर की बोली सुनकर  अवरुद्ध कंठ सहलाती है  अंतर्मन में छिपी वेदना  मगर हास बिखराती है।  पीड़ा के धागों में लिपटे,  कहाँ घाव फिर सिलते हैं  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।। सुनीता बिश्नोलिया 

बारिश की बूँदों सी लड़कियाँ

बारिश बूँदों सी लड़कियाँ  नारी अस्मिता : संघर्ष और यथार्थ    उछलना-कूदना, नाचना - नचाना, दौड़ना-भागना, चीखना-चिल्लाना, कभी गरजते हुए तो कभी बिन मौसम कभी भी कहीं भी टपक पड़ती थीं हम लड़कियाँ।            आज उन दिनों को याद करके बहुत हँसी भी आती है तो सखियों की याद भी।  वर्तिका   मोतियों की सी माला हम सखियाँ कब टूटकर  अलग होती गई पता ही नहीं चला। लेकिन वो मोती सच्चे और कीमती थे तभी तो सब किसी ना किसी घर की शोभा बढ़ा रहे हैं।     आज भी उन मोतियों की चमक बरकार है।  सोशल मीडिया की मेहरबानी से दूर से ही सही पर बन गई  है माला. हम सखियों की। हम अनीता-सुनीता बहनों के अलावा भी दो बहनें अनिता - सुनिता  तारा, पिंकी, साबू, संपत्ति, सजना, शारदा,बानो, शबनम जाहिदा, ऋतु, नीतू, आशा पुष्पा, सुमन, सरोज,मोनू,  (मोनिका) मीनू, पूनम,राजू,रंजू, गुड़िया, सरला, सुनीता सोनी, प्रीतिआदि अनेक, लड़कियाँ। कभी पोषम पा तो कभी सितोलिया, गेंद गट्टे तो कभी इमली के बीजों को दो टुकड़े करके उछालना, कभी पकड़म- पकड़ाई खेलते हुए गिर जाना तो कभी लुका-छिपी खेलते हुए झगड़ पड़ना तो कभी गुड्डे-गुड़ि

मित्रता दिवस - friendship day

सभी मित्रों को मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹❤️💕💕💕💐💐❤️💕💕किसी ने सच ही कहा है - "मित्रता खुशी का सबसे अच्छा जरिया। बिना मित्रों के मनपसंद चीज़ भी उबाऊ लगने लगती है।"      साथ सखा के धूप भी, लगती ठंडी छांव।   दुनिया की दोपहर में,नहीं जले फिर पांव।1।    कारज होते सिद्ध सब, थाम मित्र का हाथ।    पुष्प कंटकों में खिलें,मित्र अगर हो साथ।2।     कृष्ण-सुदामा सा नहीं, मित्रों का व्यवहार।  छल-छल बहती है मगर, मध्य प्रेम की धार।3।    सुनीता बिश्नोलिया ©® जयपुर

हरी मिठाई... लाल अमरूद

      हरी मिठाई मैं भी सुदामा देवी माँ अनोखी     हमारे गांव तलवाड़ा की धर्मशाला में आए दिन समारोह होता था। कभी शादी समारोह तो कभी किसी के मरने के अवसर पर भोज होता था। हम लोग घर से पानी का लोटा लेकर जाते थे। रिवाज के अनुसार तभी मृत्यु भोज में विशेष व्यंजन नहीं बनाए जाते थे। एक बार किसी बुजुर्ग के मृत्यु पर मृत्यु भोज में मिठाइयाँ बनाई गई हमने अपने बड़ों से पूछा कि मृत्यु भोज में तो मिठाई नहीं बनाई जाती तब जवाब मिला की जिनकी मृत्यु हुई है उनकी आयु 100 वर्ष की थी जब कोई अपनी आयु पूरी कर कर मरता है तब मृत्यु भोज में मिठाइयाँ बन सकती हैं। बस फिर क्या था हम गणना करने लगे किस-किस की मृत्यु पर मिठाईयाँ बन सकती हैं। हमारी गैंग में शैलबाला जो हमारे दूर के चाचा की लड़की थी उसके दादाजी भी बुजुर्ग थे उनकी बड़ी होटल थी बस स्टैंड पर हमने कई बार उनकी होटल में हरी परत वाली मिठाइयाँ देखी थी।  अब हर रोज हम शैलबाला से एक ही बात पूछते और उससे कहते कि जब तुम्हारे दादा जी का मृत्यु भोज होगा तो तुम जिद करके मृत्यु भोज में हरे परत वाली मिठाई रखवाना वह भी मित्रतावश  हाँ कह द