भानू है ज्यों कनक-घट, राही हम गए ठिठक, स्वर्ण सी ये रश्मियाँ, आच्छादित धरा घने विटप। क्षितिज में प्रतीत है उदित, उत्तरोत्तर ताप अपरिमित, अभिभूत है नयन सभी, दिनकर को देख अवतरित। अद्घोषक उषा काल का, अंशुमाली आ रहा है, विचरण करे गगन में ये, सृष्टि को जगा रहा। पथिक पथ पर खड़े, सूर्य -रोशनी बढ़े, माना घना ये ताप है, राह सूरज दिखाता आप है। नयनाभिराम दृश्य ये दृग भर रहे नयन में हैं, निहार सूर्य-रश्मियाँ, आह्लाद सबके मन में है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia