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सत्ता की गलियाँ

सत्ता के रंग सत्ता की गलियों में मैंने          अजब तमाशा देखा है। साधू के चोले को पहने          धूर्त बगुला देखा है। इनकी बातें ये ही जाने            बिन पेंदे के लोटे हैं मासूमों पर जाल फेंकते            खुद आसामी मोटे हैं। वोटों की खातिर इन सबको             रंग बदलते देखा है। साधू के चोले को पहने          धूर्त बगुला देखा है। करें चाशनी से भी मीठी           बातों के ये जादूगर कहा आज का कल भूलें         रहना थोडा सब बचकर।  वादों के जालों में जन को           इन्हें फँसाते देखा है। साधू के चोले को पहने            धूर्त बगुला देखा है। बरसात अच्छी है खेल-खेलते ऐसा ये तो        लोगों को बहकाते हैं। छत भी नहीं नसीब ये उनको        महलों के स्वप्न दिखाते हैं। जिनको रोटी की ठोर नहीं       संग उनके खाते देखा है। साधू के चोले को पहने              धूर्त बगुला देखा है। #सुनीता बिश्नोलिया©

कहानी - अच्छी है बरसात

       बरसात अच्छी है       टिन की टूटी छत से आती टप-टप की आवाज़ के साथ बिस्तर के पास टपकते पानी के छींटों से बचने के लिए बार-बार बिस्तर से उठने के कारण सात साल के राधे की नींद पूरी तरह से उड़ गई। हालांकि घर में ज्यादा सामान नहीं है फिर भी माँ और बाबा भीगने से बचाने के लिए घर का सामान इधर से उधर कर रहे हैं।       इतनी रात को माँ-बाबा को काम में लगा देखकर राधे झुंझलाकर बैठते हुए बोला-"बाबा! बहुत बुरी है बरसात..!हमारा पूरा घर पानी से भर देती है और आपको सोने भी नहीं देती। "        बेटे की बात सुनकर राधे के हरिया ने हँसते हुए कहा-"बेटा ऎसा क्या है हमारे घर में जो खराब हो जाएगा.!बिना पानी जीवन कहाँ। अच्छा है जो समय से बरसात हो गई।"    हरिया की हाँ में हाँ मिलाते हुए पत्नी शारदा ने भी हँसते हुए बेटे के सिर पर हाथ फेरकर कहा-"बहुत इंतजार के बाद होती है ये बरसात.! इसके आने से ही ये धरती हँसती है और धरती के हँसने से हम सब हँसते हैं।अगर  बारिश नहीं होगी तो धरती सूख जाएगी...!"   माँ और पिताजी की गोल-गोल बातें राधे को समझ नहीं आई। वो अपने छोटे से घर के एक

कृष्ण जन्म - जन्माष्टमी

कृष्ण जन्म उल्लास में,डूबा गोकुल ग्राम। आँसू बहते आँख से,माता के अविराम।। कृष्ण कान्हा झूले पालने, माँ मन में हर्षाय, नजर न मोहन को लगे,कजरा मात लगाय।। देख शरारत कान्ह की,मात-पिता मुसकाय। नन्द-यशोदा की ख़ुशी,नयनों में दिख जाय।। तुतली बोली कृष्ण की,माँ को रही रिझाय। उमड़ रहा उल्लास जो,आँचल नहीं समाय।। मोहन माखन-मोद में,भर लीन्हों मुख माय। मात यशोदा जो कहे,कान्हा मुख न दिखाय।। कान्हा ने उल्लास में,सखियन चीर छुपाय । सखियाँ रूठी कृष्ण से,नटखट वो मुसकाय।। कृष्ण सामने जान के,सखियाँ ख़ुशी मनाय। सुन मुरली घनश्याम की, सुध-बुध भूली जांय।। कान्हा लेकर साथ में,ग्वाल-बाल की फ़ौज। मन में भर उल्लास वो,करते कानन मौज।। सुनीता बिश्नोलिया

कृष्ण

कृष्ण- मुक्तक हृदय में बस गया तेरा रूप जग से निराला था  तेरे खातिर मेरे कान्हा पिया विष का पियाला था  बस इक तेरा भरोसा था लड़ गई मैं ज़माने से  संभालो आज भी मुझको सदा जैसे संभाला था।।  कृष्ण 2 मेरे कृष्णा मनोहर सुन तेरी ये बाँसुरी बैरन  इसकी धुन सुन मोहना मैं भूल जाती कहाँ साजन उलाहने देती ननदी है बावरी कौन है आई मन से आराधना बचा रखना मेरा दामन।। संस्कार सुनीता बिश्नोलिया  जयपुर 

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा         तम खेनें संसार का, देकर सच्चा ज्ञान।         'सुनीति' करे गुरु वंदना, गुरु हरिये अज्ञान।। कभी 'विश्वगुरु' के सिंहासन पर आसीत हमारा प्यारा भारत देश। विभन्न संस्कृतियों की संगम स्थली,सांस्कृतिक वैभिन्य होते हुए भी एकता के सूत्र में बंधा है । वर्तिका  यद्यपि भारत तथा इसकी संस्कृति महान है किन्तु कई बार ऐसा लगता है जैसे आज भारत में लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति लगाव या मोह कम हो रहा है और विदेशी संस्कृति का वर्चस्व बढ़ा है। मेरा मानना है कि हम भारतीयों के सरल स्वभाव एवं सभी देशों की संस्कृतियों को मान एवं सम्मान देने के कारण भी लोग ऐसा कह रहे हैं और सम्मान की कला सीखी हमने संस्कारों से ये संस्कार हमने सीखे माता-पिता एवं गुरुजनों से।  प्रेम गुरु ही ऐसा व्यक्ति है जो छात्र के जीवन का सर्वांगीण विकास करने के साथ ही अज्ञान रूपी अंधकार में भटक रहे शिष्यों को सही एवं सरल मार्ग दिखाता है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरु के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण का पर्व सच्चे ह्रदय से गुरु का सम्मान एवं प

बरसो बादल

अरे बादल जरा घेरो,      मेघ- मन आसमां को तुम             कि ऎसे जोर से बरसों,                    धरा को दो नया जीवन।  काया जल रही है तुम,         शीतल बूंदे बरसाओ,             है प्यासी ये धरा बादल,                प्रेम जल शब्द छलकाओ।  कवि गाओ राग ऐसा,      जागे सोते हुए सारे,            तेरे शब्दों की शीतलता,                 ह्रदय में ऐसे बस जाए।  मन के घन गरज कर तुम,        विषमता जग की सम कर दो,                मुक्त कर दो रूढ़ियों से,                     सुमन- सौरभ बिखरा दो  पिघल जाएँ हृदय पत्थर,          गीत गाओ अति मधुरिम,                  भरम की गाँठ सब खोलो,                        मिटाओ भेद सारे तुम।  जमे शैवाल बह जाएँ,         बहो बन तेज धारा तुम                 बाँध शब्दों के ना टूटे,                        मीठी सी बहे सरगम।। सुनीता बिश्नोलिया

Happy birthday beta - जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

🎂🎂🌹🌹Happy birthday  #सोना #Sona betu 🌹🌹🎂🎂 देखते-देखते कैसे कब हो गया      तू नन्हा सा सोना युवा हो गया।  कहते सभी लाडला है तू मेरा       मैं कहती हूँ तुमसे है रोशन सवेरा। दूर रहते हो फिर भी हो तुम पास मेरे       माँ के आँचल के साये सदा साथ तेरे। उजालों की राहों में भेजा तुम्हें है       राह उजली रहें तय ये तुमको है करना दीप जगमग जले राहों में तेरी हरदम     दूजों के हित दीप बनकर तू जलना।  हक है तुम्हें फैसले खुद के लेना      सही और गलत का मगर ध्यान रखना   नादानियां हो ना जाए संभलना       रहना हो जैसे.. ना खुद को बदलना।  हाँ बड़े हो गए तुम मगर याद रखना      दिल बच्चे के संग तुम बच्चे ही रहना ।। 🎂🎂💕💕💕💕💕 🌹🌹Happy birthday 🎂 🎂 Sona Betu  अँधेरे घने होंगे राहों में तेरी,        जोत बनकर के जलना ही तो जिंदगी है, गिर गया जो कभी पाने मंज़िल को प्यारे              गिरके फिर से संभलना ही तो जिंदगी है,  पा खुशियों के मेले, मीतों के रेले,                  भूल खुद को ना जाना आँखों के तारे,  याद रखना उन्हें जिनका न कोई सहारा,              सहारा