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संदेश

स्वच्छ जयपुर - जयपुर स्थापना दिवस

स्वच्छ जयपुर "स्वच्छ नीर हो,स्वच्छ धरा हो, स्वच्छ हो नील गगन, स्वच्छ रहे धरती धोरों की,मिलकर करें समर्पण",। स्वच्छ हो ये शहर,स्वच्छ इसकी  डगर आओ श्रम  दान दें सभी,कस लें अब कमर, छोड़ो मत तुम कसर,...स्वच्छ हो ये शहर.., अरावली के अंक में ,किल्लोल करता जल महल, दर्प जयगढ़, नाहर गढ़,है मुकुट सम हवा महल, जय जय सवाई जयसिंह,जय आमेर का महल, ये जंतर -मंतर स्वच्छ हो,चलो कर दें हम पहल, फिर गुलाबी रंग इसका,हर तरफ बिखरे  विश्व में बन मोती माणक ,इस  मुकुट की छटा निखरे आओ मिलकर खाएं ये कसम, दर्पण सा हो शहर  आओ  श्रमदान दें सभी,कस लें अब कमर छोड़ो मत तुम कसर ,छोड़ो मत.... स्वच्छता के  तराने मिल के हम  गाएँगे , इस गुलाबी सुमन को और महकाएँगे। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर

यह दंतुरित मुस्कान - नागार्जुन

  यह दंतुरित मुस्कान-नागार्जुन    तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान मृतक में भी डाल देगी जान धूली-धूसर तुम्हारे ये गात छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात परस पाकर तुम्हारी ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल? तुम मुझे पाए नहीं पहचान? देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो? आँख लूँ मैं फेर? क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार? यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होगी आज मैं न सकता देख मैं न पाता जान तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान धन्य तुम, माँ भी तुम्‍हारी धन्य! चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य! इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तम्हारा संपर्क उँगलियाँ माँ की कराती रही मधुपर्क देखते तुम इधर कनखी मार और होतीं जब कि आँखे चार तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान लगती बड़ी ही छविमान! यह दंतुरित मुस्कान-नागार्जुन            जनकवि नागार्जुन द्वारा लिखित इस       कविता में छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान देखकर कवि के मन में जो भाव उमङते है,उन्हीं भावों को कवि ने इस कविता में अनेक बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया है।    कवि का मानना है कि छोटे बच्च

वीना चौहान - साहित्य को समर्पित 💐💐जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂

जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂 कहती हैं सूरज की किरणें                     कर खुद पर विश्वास।          हारेगा सौ बार मनुज,                  मत छोड़ जीत की आस।।     "मंजिलें नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं,     अरे सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं।"        जी हाँ बिल्कुल ये सही कहा है किसी ने        क्योंकि कार्य करने की ललक और हिम्मत भी व्यक्ति जुटा लेता है पर उद्देश्य स्पष्ट ना होने के कारण व्यक्ति असफल भी हो सकता है। किंतु कार्य अगर लोक कल्याण का हो और इसी जन कल्याण को करने की तीव्र उत्कंठा आपके जीवन का उद्देश्य और महिला लेखिकाओं को लेखन के अवसर प्रदान कर उन्हें मंज़िल की ओर अग्रसर करना आपका लक्ष्य बन जाए तो वास्तव में आप एक सच्चे साहित्यकार हैं। वर्तिका वर्तिका राजस्थान लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं नारी कभी ना हारी संस्था की संस्थापिका आदरणीय वीना चौहान दी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी आप 'नारी कभी ना हारी' के माध्यम से महिलाओं को एक मंच पर लाने

सुप्रभात #Suprabhat #goodmorning

देता है उपदेश ज़माना        ख़ुद की लेकिन ख़बर कहाँ  दूजों में कमियाँ खोजें पर,         खुद की आती नजर कहाँ।  नुक्ताचीनी के कारण है,          मीठा सबका जीवन रस,  रोग छिपे हैं मीठे में ही          दिखते उनको मगर कहाँ।।  सुनीता बिश्नोलिया

सुप्रभात

सुप्रभात रंग मंच दुनिया सकल,अभिनय करना काम। ईश्वर नाच नचा रहा, बैठा डोरी थाम।।      सुनीता बिश्नोलिया 

सुप्रभात

सुप्रभात🙏🙏💐💐 पिताजी कहते थे अच्छी और बुरी परिस्थियाँ     तो संगिनी होंगी तुम्हारी     इसलिए हर परिस्थिति में मुस्कुराना।      क्योंकि साथियों के साथ मार्ग में हँसकर ना       चलो तो राह मुश्किल होती है     इसीलिए विकट परिस्थियों में भी           मुस्कुराती हूँ     विश्वास का दीप  जलाकर      अंधेरों को ठेंगा दिखाती हूँ।       सुनीता बिश्नोलिया 

मेरी ताकत मेरी कलम

 मेरे जीवन की थाती   कहना चाहती हूँ सब    मौन होने से पहले   चलाना चाहती हूँ कलम   होश खोने से पहले   मेरे शब्द ही मेरा विश्वास,    मेरी थाती हैं,   मैं मिट्टी का दिया   ये जलती बाती है।   प्रकाशित है महल    प्रेम की लौ से मेरे अंतर का,   एक कोने में भर के रखा है    स्वच्छ जल, नील सर का।    बाँटना चाहती हूँ प्रकाश   जो थोड़ा बहुत    आया है मेरे हिस्से,   न होंगे कल.. कोई नहीं    याद तो रहेंगे    मेरे किस्से।   पढ़ती रहती हूँ उसकी लिखी     प्रेम की जो पाती है,    मैं मिट्टी का दिया और    ये जलती बाती है।  सुनीता बिश्नोलिया