स्वच्छ जयपुर "स्वच्छ नीर हो,स्वच्छ धरा हो, स्वच्छ हो नील गगन, स्वच्छ रहे धरती धोरों की,मिलकर करें समर्पण",। स्वच्छ हो ये शहर,स्वच्छ इसकी डगर आओ श्रम दान दें सभी,कस लें अब कमर, छोड़ो मत तुम कसर,...स्वच्छ हो ये शहर.., अरावली के अंक में ,किल्लोल करता जल महल, दर्प जयगढ़, नाहर गढ़,है मुकुट सम हवा महल, जय जय सवाई जयसिंह,जय आमेर का महल, ये जंतर -मंतर स्वच्छ हो,चलो कर दें हम पहल, फिर गुलाबी रंग इसका,हर तरफ बिखरे विश्व में बन मोती माणक ,इस मुकुट की छटा निखरे आओ मिलकर खाएं ये कसम, दर्पण सा हो शहर आओ श्रमदान दें सभी,कस लें अब कमर छोड़ो मत तुम कसर ,छोड़ो मत.... स्वच्छता के तराने मिल के हम गाएँगे , इस गुलाबी सुमन को और महकाएँगे। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia