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संदेश

सीख

#Betu  वर्तिका अँधेरे घने होंगे राहों में तेरी,        जोत बनकर के जलना ही तो जिंदगी है, गिर गया जो कभी पाने मंज़िल को प्यारे              गिरके फिर से संभलना ही तो जिंदगी है,  पा खुशियों के मेले, मीतों  के रेले,                  भूल खुद को ना जाना आँखों के तारे,  याद रखना उन्हें जिनका न कोई सहारा,              सहारा दूजों का बनना ही तो जिंदगी है। सुनीता बिश्नोलिया 

दोहा - झूठ

वर्तिका   पन्नाधाय प्रेम नदी और स्त्री सीख झूठा अंजन डाल कर ,मत कर आँखें बंद। सत्य साथ देगा सदा,झूठ रहे दिन चंद।। वर्तिका सुनीता बिश्नोलिया

सावित्रीबाई फुले जयंती

 #सावित्रीबाई फुले  महिला शिक्षा की अलख जगाने वाली नारी सशक्तिकरण एवं नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता,  महान समाज-सुधारिका  तथा देश की प्रथम महिला शिक्षिका, कवयित्री, शिक्षा और समानता की प्रबल समर्थक सावित्रीबाई फुले की जयंती पर शत्-शत् नमन! अंधियारे की रात कठिन   घनघोर घटाएँ अंबर पर  कैसे ढले रात ये काली  भारी चिंता मस्तक पर।   सोच उसकी बड़ी थी  ज्योति मन में जली थी  अंधेरी रात में उसको   लानी खुद ही दिवाली थी   ढलेगी रात ये काली,  छँटेगा ये अंधेरा  खुद पे इतना भरोसा था   लाई वो खुद सवेरा।   बहुत मंज़िल कठिन थी   मगर वो भी अटल थी  अशिक्षा के सघन तम में   जोत उसको जलानी थी  मन का डर छोड़कर पीछे   कलम का ले सहारा   बनी वो शिक्षिका करके   रुढियों से किनारा।     भेद ना देख सकती थी   सभी को सम समझती थी   मिटाने भेद मध्य का  वो आगे बढ़ गई थी।   दुखी बीमार की माँ बन   देती सबको सहारा   खुद पे इतना भरोसा था   लाई वो खुद सवेरा।   नारी शिक्षा के सूरज को   धरती पर उतारा।।     सुनीता बिश्नोलिया              

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं Happy New year

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🌼🌼 चलो भूलकर बीती बातें  नए तराने गाएं हम  नए वर्ष की नई सुबह में  हमने मन को बहलाया हाँ भूलेंगे उनको हम  जिनसे धोखा खाया  उनकी बातें मगर सुनेंगे  हृदय छिपाकर अपना ग़म  चलो भूलकर बीती बातें नए तराने गाएं हम।  बदलेंगे पत्ते तरुवर  अपना लिबास वो बदलेंगे  आज हमें कल किसी ओर को  चादर छल की वो सौंपेंगे दूर रहें उन खु़दगर्जों से किस्सा करदें यहीं खतम चलो भूलकर बीती बातें नए तराने गाएं हम।  उनके मनके भंवरे की  गुनगुन गुंजार भी गूंजे तो नए वर्ष में उस भंवरे की  बातों में ना जाना खो  हर डाली हर पुष्प पे साथी  बैठा होगा वो हरदम  चलो भूलकर बीती बातें नए तराने गाएं हम।  सुनीता बिश्नोलिया

स्वच्छ जयपुर - जयपुर स्थापना दिवस

स्वच्छ जयपुर "स्वच्छ नीर हो,स्वच्छ धरा हो, स्वच्छ हो नील गगन, स्वच्छ रहे धरती धोरों की,मिलकर करें समर्पण",। स्वच्छ हो ये शहर,स्वच्छ इसकी  डगर आओ श्रम  दान दें सभी,कस लें अब कमर, छोड़ो मत तुम कसर,...स्वच्छ हो ये शहर.., अरावली के अंक में ,किल्लोल करता जल महल, दर्प जयगढ़, नाहर गढ़,है मुकुट सम हवा महल, जय जय सवाई जयसिंह,जय आमेर का महल, ये जंतर -मंतर स्वच्छ हो,चलो कर दें हम पहल, फिर गुलाबी रंग इसका,हर तरफ बिखरे  विश्व में बन मोती माणक ,इस  मुकुट की छटा निखरे आओ मिलकर खाएं ये कसम, दर्पण सा हो शहर  आओ  श्रमदान दें सभी,कस लें अब कमर छोड़ो मत तुम कसर ,छोड़ो मत.... स्वच्छता के  तराने मिल के हम  गाएँगे , इस गुलाबी सुमन को और महकाएँगे। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर

यह दंतुरित मुस्कान - नागार्जुन

  यह दंतुरित मुस्कान-नागार्जुन    तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान मृतक में भी डाल देगी जान धूली-धूसर तुम्हारे ये गात छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात परस पाकर तुम्हारी ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल? तुम मुझे पाए नहीं पहचान? देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो? आँख लूँ मैं फेर? क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार? यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होगी आज मैं न सकता देख मैं न पाता जान तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान धन्य तुम, माँ भी तुम्‍हारी धन्य! चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य! इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तम्हारा संपर्क उँगलियाँ माँ की कराती रही मधुपर्क देखते तुम इधर कनखी मार और होतीं जब कि आँखे चार तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान लगती बड़ी ही छविमान! यह दंतुरित मुस्कान-नागार्जुन            जनकवि नागार्जुन द्वारा लिखित इस       कविता में छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान देखकर कवि के मन में जो भाव उमङते है,उन्हीं भावों को कवि ने इस कविता में अनेक बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया है।    कवि का मानना है कि छोटे बच्च

वीना चौहान - साहित्य को समर्पित 💐💐जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂

जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂 कहती हैं सूरज की किरणें                     कर खुद पर विश्वास।          हारेगा सौ बार मनुज,                  मत छोड़ जीत की आस।।     "मंजिलें नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं,     अरे सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं।"        जी हाँ बिल्कुल ये सही कहा है किसी ने        क्योंकि कार्य करने की ललक और हिम्मत भी व्यक्ति जुटा लेता है पर उद्देश्य स्पष्ट ना होने के कारण व्यक्ति असफल भी हो सकता है। किंतु कार्य अगर लोक कल्याण का हो और इसी जन कल्याण को करने की तीव्र उत्कंठा आपके जीवन का उद्देश्य और महिला लेखिकाओं को लेखन के अवसर प्रदान कर उन्हें मंज़िल की ओर अग्रसर करना आपका लक्ष्य बन जाए तो वास्तव में आप एक सच्चे साहित्यकार हैं। वर्तिका वर्तिका राजस्थान लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं नारी कभी ना हारी संस्था की संस्थापिका आदरणीय वीना चौहान दी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी आप 'नारी कभी ना हारी' के माध्यम से महिलाओं को एक मंच पर लाने