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होली के बहाने

होली ओ रे! यशोदा के लाल        तूने रंग दीन्हें गाल नन्द बाबा के गोपाल        काहे हुआ तू वाचाल। नटखट ओ मुरारी         सखियन देंगी गारी तूने फिर बनवारी        काहे मारी पिचकारी। तू क्यों होली के बहाने        मोहे आया है सताने काहे छेड़े ओ दीवाने        हट! मारूँगी मैं ताने। सुन मुरली की धुन       मेरा नाचे तन मन मत छेड़ कोई राग        मत सुलगा रे आग ओ रे ओ रे बनवारी तेरी       मति गई मारी तूने छेड़ी काहे तान         गया काहे ना तू मान। ओ रे श्याम सलोने,       ना कर छूने के बहाने,         तूने डाला रंग लाल फेंका प्रेम वाला जाल।        फँस गई मैं मुरारी मोहे आवे आवे लाज भारी   छोड़... बांके बिहारी  तू जीता  ले मैं हारी।।       होली है सुनीता बिश्नोलिया

ये उन दिनों की बात है

होली के आस-पास के दिन ही हुआ करते थे जब हम..पढ़ाई का थोड़ा सा.. हाँ थोड़ा सा लोड लिया करते थे। इससे पहले तो स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अगुवाई में जो रहा करते थे।  दोहा, कविता, गीत - संगीत, लेखन आदि के साथ ही भाषण और वाद-विवाद में आगे रहना पसंद था।अमर चित्रकथा और चाचा चौधरी के साथ ही घर पर अनेक साहित्यक पत्रिकाएं आती रहती थी सभी भाई बहन बारी-बारी  से उन्हें पढ़ते थे।   दिल्ली से छपने वाली मासिक पत्रिका #विचार_मंच और साप्ताहिक पत्रिका राष्ट्रदूत की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी। काटो तो खून नहीं काॅलम में बहुत से किस्से भेजे और बहुत से छपे भी।'सरिता' पत्रिका के माध्यम से अनेक स्थानों बारे में जानकारी हासिल करके उन स्थानों को देखने के लिए लालायित हो उठती थी। परीक्षा के दिनों में ये किताबें पढ़ने को नहीं मिलती मगर अखबार यानी #राजस्थान_पत्रिका पढ़ना हमारे दैनिक कार्यों में से एक था। अखबार आते ही पन्नों में बंट जाया करता और हम सभी  नीम के पेड़ के नीचे बालू मिट्टी में आस-पास बैठकर अखबार पढ़ते। अखबार पढ़े बिना हमारी सुबह सुबह ही नहीं होती।    

#महाशिवरात्रि_की_हार्दिक_शुभकामनाएं

#शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं  शिव को ढूंढो अंतर में साक्षी स्वयं शिव है प्रलय का,वो ही प्रलय में रखवाला। चंद्र-गंगे शीश पर हाथों में डमरू, सर्प माला तन पे सोहे बाघ अंबर,कैलाश रहता शिव हमारा।  रखना मन में ऐसे शिव को, खुद मन तेरा होगा शिवाला।  सुनीता बिश्नोलिया 

शिव को ढूंढो अंतर में

शिव को ढूंढो अंतर में       अपने मन को मान शिवाला  शिव को ढूंढो अंतर में।   नहीं भटकना होगा तुमको   इस सृष्टि के सागर में।  मत बढने दो जिज्ञासाएं  मधुर मिलन होगा कैसे   मन से लो तुम नाम मिलेंगे  भावनाओं के शिव प्यासे।। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं     ना सोने के महलों में शिव    ना झूठे आडंबर में   अपने मन को मान शिवाला  शिव को ढूंढो अंतर में।  कण-कण में हैं भोले शिव   हर दीन पे दृष्टि रखते हैं   डमक-डमक डमरू के स्वर में   हर आखर शिव रहते हैं।     मस्त-मलंग शिव संन्यासी   शिवा के हैं मन-मंदर में   संयम शील आचरण हो   मत ढूंढो गहन समंदर में   ना सोने के महलों में शिव    ना झूठे आडंबर में   अपने मन को मान शिवाला  शिव को ढूंढो अंतर में।।    सुनीता बिश्नोलिया ये भी पढ़ें

वक्त एक दिन बदलता है

 सदा ना एक सा होता वक़्त हर दम बदलता है,  सफ़ल होता वही एक दिन जो ठोकर खा संभलता है   नहीं हो हाथ में कुछ भी कोसना मत तू किस्मत को  होती खुशियाँ बिछी आगे एक दिन वक्त आता है।।  दोहा सुनीता बिश्नोलिया

सीख

#Betu  वर्तिका अँधेरे घने होंगे राहों में तेरी,        जोत बनकर के जलना ही तो जिंदगी है, गिर गया जो कभी पाने मंज़िल को प्यारे              गिरके फिर से संभलना ही तो जिंदगी है,  पा खुशियों के मेले, मीतों  के रेले,                  भूल खुद को ना जाना आँखों के तारे,  याद रखना उन्हें जिनका न कोई सहारा,              सहारा दूजों का बनना ही तो जिंदगी है। सुनीता बिश्नोलिया 

दोहा - झूठ

वर्तिका   पन्नाधाय प्रेम नदी और स्त्री सीख झूठा अंजन डाल कर ,मत कर आँखें बंद। सत्य साथ देगा सदा,झूठ रहे दिन चंद।। वर्तिका सुनीता बिश्नोलिया