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कहानी संग्रह - जोग लिखी

कुछ टिप्पणियां जो लिखने हेतु प्रोत्साहित करती हैं। बहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी 💐🌼💐🌼 जब आपकी पुस्तक प्रकाशित होकर आई थी तभी मैंने इसे आर्डर कर दिया था ,और पढ़ भी ली थी लेकिन सामान की धरा-उठाई में ये कहीं गुम हो गई थी ।आज फिर से थोड़ी फुर्सत के पल ढूंढे और उनमें कुछ किताबें खोजते हुए "जोग लिखी" भी मिल गयी।          आपकी इस कृति में आपने जितनी सुंदर कहानियों का स्तबक बनाया है वो आपके लेखन की परिपक्वता को दर्शाता है।मुझे व्यक्तिगत रूप से वह लेखन अधिक रुचता है जो शब्दों से नहीं , सहजता से गूंथा जाता है और आपके लेखन की यही सबसे बड़ी ख़ूबी है। "इत्ती सी हँसी इत्ती सी खुशी" से आरम्भ करते हुए आपने सारे भावों से भावविभोर कर दिया । आपके लेखन में जो आंचलिकता का पुट दिखाई देता है वो सच में चार चाँद लगाता है। आपने सही कहा गन्ने का रस ही पैरता रहा आपके भीतर तभी तो इतनी मिठास पकी है जो हम पाठकों को भी मिट्ठा कर देती है। आपको इतनी सुंदर कृति के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ💐💐 Sunita Bishnolia जी।आपकी अगली पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी।🙏

सतरंगी आखर - काव्य संग्रह

Seema Rathore  - सीमा राठौड़ - "सतरंगी आखर" राजस्थानी कविता संग्रह 💐💐🌹🌹 हनुमान जयंती के दिन सखी सीमा राठौड़ 'शैलजा'  राजस्थानी काव्य संग्रह 'सतरंगी आखर' के लोकार्पण में जाने का अवसर मिला।सुरेश कुमार जी द्वारा डिजाइन की गई यह पुस्तक सुंदर चित्रांकन के साथ साहित्य का सुंदर संगम है।    कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री नारायण सिंघ राठौड़  पीथळ, राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृतिअकादेमी बीकानेर, अध्यक्ष श्री भवानी सिंघ राठौड़ 'भावुक ' संस्थापक और संपादक ,नुंवो राजस्थान, श्री प्रदीप सिंघ  राजावत, सखी कामना राजावत एवं कर्नल(मानद) पार्वती जांगिड़ सुथार थी। सखी मीनाक्षी पारीक  एवं  सखी मान कंवर एवं मैंने भी अपने विचार साझा किए।  कई दिन हुए किताब  पढ़ नहीं पाई लेकिन कल इस किताब को हाथ में लिया तो खुद को पूरी पढ़ने से रोक नहीं पाई क्योंकि संग्रह की पहली ही कविता कहती हैं -  कविता एक भूख है  ज्यूं चाय री तलब मनड़ै  री कसक  काळजै री टसक भावां री पोटळी अर झूठी प्रीत  टूक-टूक काळजो ऊंडी पीड़...   कवयित्री मायड़ भाषा राजस्थानी की

साहित्य समर्था अलंकरण सम्मान - 2023

साहित्य समर्था त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका द्वारा आयोजित अखिल भारतीय डॉ. कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता में  प्रथम, विशिष्ट, द्वितीय, तृतीय कहानी के 6 पुरस्कार, 43 श्रेष्ठ कहानियाँ और 7 स्तरीय कहानियों सहित कुल 56 चयनित कहानीकारों का अलंकरण सम्मान 16 अप्रेल,प्रात: 10 बजे से होटल रेडिएन्ट स्टार जयपुर में आयोजित किया गया।  इस वर्ष मेरी कहानी  #कर्तव्यों_की_चूनर'  श्रेष्ठ कहानी  के रूप में पुरस्कृत हुई।  कलम-काग़ज थमा कर वो,बोली शब्दों से खेलो तुम तुम्हारी छोड़कर ऊंगली, शब्द भागें रोकना तुम चलाना सारथी बनकर, गढ़ना सांचे में शब्दों को खोलना गांठ होल से,इनसे फिर जीत जाना तुम।।' लिखने के लिए सदैव प्रेरित करती हैं Neelima Tikku दी। इन्हीं की प्रेरणा से  मेरी पहली कहानी #चीकू_का_बीज  को  "अखिल भारतीय डॉ कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' में श्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार मिला  थाऔर कहानी लेखन के लिए प्रेरणा भी।      कार्यक्रम में 'स्पंदन महिला साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्थान' जयपुर एवं' साहित्य समर्था त्रैमासिक सा

विश्व_जल_दिवस #worldwaterday2023

विश्व_जल_दिवस #worldwaterday2023  उनका दुःख पहचानिए,तरस रहे इक बूंद। जल को सब रखिये बचा,रहें न आँखें मूंद।। मुक्तक सुनीता बिश्नोलिया Photo #Dainik Bhaskar

महिला दिवस

जल्दी उठकर  वही दौड़-भाग वही रोज का राग।  वही बेलन  वही चिमटा रोज ही की तरह  कितनी जल्दी  आज भी  ये दिन सिमटा।  घर में वही चिकचिक ऑफिस में घड़ी की  टिकटिक।  चेहरे पर   बहुत ताजगी छाई थी  देखकर आईना  खूब हँसी आई थी।  अलसुबह   फूल गई  मैं गुब्बारे सी  निकलने लगे थे पंख  शुभकामनाओं  और बधाइयों के ढेर को देखकर।  मगर...!  शाम  होते-होते फुस्स हो गया गुब्बारा  जिसे जतन से  फुला रहे थे लोग।  पर..! अब भी मुस्कुराहट  खेल रही है मेरे चेहरे पर  हमेशा की तरह  राग जीवन का  गुनगुना रही हूँ  हमेशा की तरह  जानती हूँ  उड़ने के लिए पंख नहीं  मेरा हौंसला ही काफी है।  बीता तो एक दिन है   तीन सौ चौसठ दिन तो अभी बाकी है। सुनीता बिश्नोलिया

होली के बहाने

होली ओ रे! यशोदा के लाल        तूने रंग दीन्हें गाल नन्द बाबा के गोपाल        काहे हुआ तू वाचाल। नटखट ओ मुरारी         सखियन देंगी गारी तूने फिर बनवारी        काहे मारी पिचकारी। तू क्यों होली के बहाने        मोहे आया है सताने काहे छेड़े ओ दीवाने        हट! मारूँगी मैं ताने। सुन मुरली की धुन       मेरा नाचे तन मन मत छेड़ कोई राग        मत सुलगा रे आग ओ रे ओ रे बनवारी तेरी       मति गई मारी तूने छेड़ी काहे तान         गया काहे ना तू मान। ओ रे श्याम सलोने,       ना कर छूने के बहाने,         तूने डाला रंग लाल फेंका प्रेम वाला जाल।        फँस गई मैं मुरारी मोहे आवे आवे लाज भारी   छोड़... बांके बिहारी  तू जीता  ले मैं हारी।।       होली है सुनीता बिश्नोलिया

ये उन दिनों की बात है

होली के आस-पास के दिन ही हुआ करते थे जब हम..पढ़ाई का थोड़ा सा.. हाँ थोड़ा सा लोड लिया करते थे। इससे पहले तो स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अगुवाई में जो रहा करते थे।  दोहा, कविता, गीत - संगीत, लेखन आदि के साथ ही भाषण और वाद-विवाद में आगे रहना पसंद था।अमर चित्रकथा और चाचा चौधरी के साथ ही घर पर अनेक साहित्यक पत्रिकाएं आती रहती थी सभी भाई बहन बारी-बारी  से उन्हें पढ़ते थे।   दिल्ली से छपने वाली मासिक पत्रिका #विचार_मंच और साप्ताहिक पत्रिका राष्ट्रदूत की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी। काटो तो खून नहीं काॅलम में बहुत से किस्से भेजे और बहुत से छपे भी।'सरिता' पत्रिका के माध्यम से अनेक स्थानों बारे में जानकारी हासिल करके उन स्थानों को देखने के लिए लालायित हो उठती थी। परीक्षा के दिनों में ये किताबें पढ़ने को नहीं मिलती मगर अखबार यानी #राजस्थान_पत्रिका पढ़ना हमारे दैनिक कार्यों में से एक था। अखबार आते ही पन्नों में बंट जाया करता और हम सभी  नीम के पेड़ के नीचे बालू मिट्टी में आस-पास बैठकर अखबार पढ़ते। अखबार पढ़े बिना हमारी सुबह सुबह ही नहीं होती।