अपने मन का रावण मारो मन में पलती ईर्ष्या और क्रोध,लोभ मत द्वेष से हारो राम मिलेंगे अंतर में अपने मन का रावण मारो। ये जीवन है छोटा सा पर इच्छाएं बहुत बड़ी इच्छाओं को पूरा करने प्रज्ञा आपस में खूब लड़ी। देव और दानव मन रहते शाश्वत सत्य को स्वीकारो। देव जगे दानव सो जाए परहित कर्म महान करो अहम घटे सीखें के संयम अपने मन का रावण मारो।। लीलटांस - दशहरे के दिन लीलटांस यानी नीलकंठ को देखना शुभ माना जाता है व्यभिचारी मन काबू कर तू काम वासना की लहरें ऐसे मन में तुम्हीं बताओ राम भला क्यों कर ठहरें। घट में राम मिलेंगे तुमको मलिन ह्रदय को स्वच्छ करो तज दो पलते दुर्विकार अपने मन का रावण मारो।। सुनीता बिश्नोलिया
लहर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia