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बुआ कहती थी - 3. मेरे ताऊजी - बाबा की स्मृति को नमन

बुआ कहती थी - 3 बुआ की यादों के गुलदस्ते से एक और फूल......       हमारे बड़े पापा यानि बाबा की पुण्य तिथि पर सादर नमन 🙏🙏 यह भी पढ़ें  बुआ कहती थी - 1 बुआ कहती थी - 2     मैं, मेरी छोटी बहन अमृता और हमारी बुआ एक ही कमरे में सोते थे। सोने से पहले नियम से बुआ हमें किस्से-कहानियाँ सुनाया करती। हालांकि इसके लिए हमें बहुत पापड़ बेलने पड़ते। बुआ जैसे ही कमरे में सोने आतीं हम अपनी किताबें एक कोने में रख देते और कहानी सुनाने के लिए बुआ के पीछे पड़ जाते। बुआ का पहला जवाब यही होता - 'छोरियो पढाई कर ल्यो, क्यूं ई कोनी मेल्यो कहाणी-किस्सां मै म्हानै देख पढ़ी-लिखी होती तो... . ।' कहते-कहते उनके चेहरे पर दुख की रेखाएँ साफ झलकने लगती थीं। उन्हें खुद के स्कूल ना जा पाने का बहुत दुख होता था । वो बताया करती थीं कि छोटे - भाई बहनों की जिम्मेदारी और....... खैर बुआ की पढ़ाई की नहीं वरन आज बात करते हैं ताऊजी की।ताऊजी के  बचपन के किस्सों की पोटली भी बुआ हमारे समाने खोलती तो पोटली से बिखरते कपड़ों की भाँति एक-एक किस्से भी बिखरने लगते और बुआ धीरे-धीरे हर किस्से की तह खोलने लगती ।  बुआ के किस्सों में ख

अब ये देश हुआ बेगाना 

बुआ कहती थी कि भारत-पाक विभाजन के समय पाक से बहुत से लोग सीकर आए, सरकार द्वारा शेखपुरा मोहल्ले में उनके रहने लिए अस्थाई में व्यवस्था की गई। कुछ समय बाद उन्हें स्थायी रूप से वहीं बसा दिया गया। उन्हीं के बीच में है हमारा घर। इसीलिए विभाजन का जो चित्र बुआ हमारे समक्ष प्रस्तुत करती थी उसे सुनकर हमारी आँखों के समक्ष भी भगदड़, डर और भूख का दृश्य उपस्थित हो जाता था और अपने पति को खोकर तीन बेटों के साथ पाकिस्तान से आई अम्माजी और पड़ौस में रहने वाले अन्य सिंधी और पंजाबी परिवारों के मुखियाओं की आँखों से विभाजन के दर्द को छलकते तो मैं भी देख चुकी हूँ। खैर ये सब बातें फिर कभी..      आज जब पूरा विश्व #कोरोना महामारी से जूझ रहा है भारी संख्या में शहरों से गांवों की ओर तो पलायन करते लोगों को देख कर मुझे बुआ के द्वारा बताई बातें याद आ रही हैं लेकिन दूसरे ही पल शहरों से गांवों की ओर पलायन करते लोगों को देखकर आँखें छलक उठती है और सोचती हूँ आज दिखाई देने वाला दृश्य उस दृश्य की अपेक्षा अधिक भयावह और शर्म से नजरें झुकाने पर मजबूर करने वाला है।क्योंकि उस समय जान बचाने के लिए विभाजन और साम्प्रदा

#कोरोना #

दूर मेरे आँचल से दोनों,  मेरे बच्चे रहते हैं सब ठीक है माँ चिंता न करो  एेसा मुझसे कहते हैं।  नौकरी के सिलसिले में बच्चे कहाँ माता-पिता के पास रहते हैं। दोनों बच्चे जयपुर से बाहर मुझसे दूर रहते हैं।      पर माँ तो माँ होती है चाहे वो माँ कोई भी हो.. मेरे हृदय में भी ममता हिलोरें मारती हैं। बच्चों को देखने के लिए आँखें तरसती हैं।रोज ही तो बात होती है।भला हो टेक्नॉलॉजी का जिसके द्वारा बच्चों को देख भी लेती हूँ।       वैश्विक संकट #कोरोना के कारण घर से दूर बच्चों की चिंता होती है। बेटी तो अपने घर में है इसलिए ज्यादा चिंता नहीं पर बेटा कम्पनी के काम से एक महीने से नोएडा के एक होटल में है। 22 मार्च को आने वाला था पर कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण होटल से नहीं निकल पाया । कम्पनी ने होटल में रहने की अवधि बढ़ा दी और बिना किसी चिंता के वहीं से काम करने को कह दिया। उसके साथ उसी की कंपनी के पाँच दोस्त और हैं जो विभिन्न प्रांतों से हैं सारे वहीं से काम कर रहे हैं। बेटा कहता है ममा हम सब अपने-अपने कमरों में बैठे काम करते हैं और कोई दिक्कत नहीं बस खाने की थोड़ी समस्या आ रही है होटल में

सुगना

#बेटी की मौत के दूसरे दिन माँ को खिलौने बेचने आना पड़ा  ''माँ चिंता मत करो, शीतला माता सब ठीक करेंगी बाबा जल्दी ही ठीक हो जाएँगे। मैं भी तो खिलौने बेचने चलूँगी।हम दोनों मिलकर ये सारे खिलौने बेच देंगे। माँ फिर छोटी को रोज दूध मिलेगा मैं इसमें से एक खिलौना भी बचाकर कर दूँगी उसे और वो स्कूल भी जाएगी। माँ बोलो ना कब चलेंगे हम मेले में...... । नटखट भालू, डांसिंग डॉल नाचता मोर.... ले लो...बीस-बीस रुपये में सारे खिलौने... ले लो ना दीदी।अंकल एक खिलौना तो ले लो मेरे बाबा की दवाई लानी है। माँ देखो मैंने भी सो रुपये के खिलौने बेच दिए आज तो दो सौ रुपये कमा लिए हैं। बाबा की दवाई, छोटी का दूध और आज का खाना सब मिल जाएगा ना.....अब मैं थोड़ी देर उस झूले पर झूल लूँ। सरकारी झूला है माँ पैसे नहीं लगेंगे...।"   'नहीं.. नहीं.. तुम्हें कुछ नहीं हो सकता पिंकी मेरा तो तुम्हीं एक सहारा हो उठो!' लाड़ली पिंकी की मीठी यादों से जागकर सुगना चिल्ला उठी।  'अरे! अभी-अभी तो ये खिलौने बेच रही थी,अचानक क्या हुआ इस खिलौने वाली को।'भीड़ में से एक आवाज़ आई।    'बिचारी बदनसीब औरत है,कल इस झूले