कृष्ण- मुक्तक हृदय में बस गया तेरा रूप जग से निराला था तेरे खातिर मेरे कान्हा पिया विष का पियाला था बस इक तेरा भरोसा था लड़ गई मैं ज़माने से संभालो आज भी मुझको सदा जैसे संभाला था।। कृष्ण 2 मेरे कृष्णा मनोहर सुन तेरी ये बाँसुरी बैरन इसकी धुन सुन मोहना मैं भूल जाती कहाँ साजन उलाहने देती ननदी है बावरी कौन है आई मन से आराधना बचा रखना मेरा दामन।। संस्कार सुनीता बिश्नोलिया जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia