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गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा         तम खेनें संसार का, देकर सच्चा ज्ञान।         'सुनीति' करे गुरु वंदना, गुरु हरिये अज्ञान।। कभी 'विश्वगुरु' के सिंहासन पर आसीत हमारा प्यारा भारत देश। विभन्न संस्कृतियों की संगम स्थली,सांस्कृतिक वैभिन्य होते हुए भी एकता के सूत्र में बंधा है । वर्तिका  यद्यपि भारत तथा इसकी संस्कृति महान है किन्तु कई बार ऐसा लगता है जैसे आज भारत में लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति लगाव या मोह कम हो रहा है और विदेशी संस्कृति का वर्चस्व बढ़ा है। मेरा मानना है कि हम भारतीयों के सरल स्वभाव एवं सभी देशों की संस्कृतियों को मान एवं सम्मान देने के कारण भी लोग ऐसा कह रहे हैं और सम्मान की कला सीखी हमने संस्कारों से ये संस्कार हमने सीखे माता-पिता एवं गुरुजनों से।  प्रेम गुरु ही ऐसा व्यक्ति है जो छात्र के जीवन का सर्वांगीण विकास करने के साथ ही अज्ञान रूपी अंधकार में भटक रहे शिष्यों को सही एवं सरल मार्ग दिखाता है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरु के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण का पर्व सच्चे ह्रदय से गुरु का सम्मान एवं प

बरसो बादल

अरे बादल जरा घेरो,      मेघ- मन आसमां को तुम             कि ऎसे जोर से बरसों,                    धरा को दो नया जीवन।  काया जल रही है तुम,         शीतल बूंदे बरसाओ,             है प्यासी ये धरा बादल,                प्रेम जल शब्द छलकाओ।  कवि गाओ राग ऐसा,      जागे सोते हुए सारे,            तेरे शब्दों की शीतलता,                 ह्रदय में ऐसे बस जाए।  मन के घन गरज कर तुम,        विषमता जग की सम कर दो,                मुक्त कर दो रूढ़ियों से,                     सुमन- सौरभ बिखरा दो  पिघल जाएँ हृदय पत्थर,          गीत गाओ अति मधुरिम,                  भरम की गाँठ सब खोलो,                        मिटाओ भेद सारे तुम।  जमे शैवाल बह जाएँ,         बहो बन तेज धारा तुम                 बाँध शब्दों के ना टूटे,                        मीठी सी बहे सरगम।। सुनीता बिश्नोलिया