माँ की अधूरी इच्छा माँ पेटी खोलकर दिखाओ ना माँ क्या है इसमें कितनी बार कहती थी मैं माँ पेटी खोलती भी थी पर.. पेटी में बिछा लाल कपड़ा कभी नहीं हटाती हमारे सामने बहुत उत्सुकता थी, लाल कपड़े के रहस्य को जानने की। माँ कहती बहुत क़ीमती समान है तुम्हारे काम का नहीं मेरे बाद तुम्हीं को मिलेगी मेरी पेटी की चाबी। और एक दिन पेटी की चाबी रखकर माँ विलीन हो गई उस अनंत में जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता। संभालाई गई हमें पेटी की चाबी कांपते हाथों से खोली थी पेटी और पाकर वो अनमोल खज़ाना बहुत लड़े, बहुत रोए थे हम अपना-अपना हक जताते हुए हमारे छोटे-छोटे कपड़े, हल्दी से मांडे हुए पोतड़े और... और एक अँग्रेजी-हिंदी सीखने की छोटी सी किताब.... माँ हमें पढ़ाने के कितने जतन करती थीं। सुबह जल्दी जगाना और ना पढ़ने पर डांटते हुए पढ़ाई का महत्त्व बताना ओह! माँ हम पढ़ते रहे... और पढ़ने की आपकी इस इच्छा को समझ भी ना सके माँ आपके चेहरे पर भी हँसी का लाल कपड़ा बिछा था इसलिए आपके मन की पेटी सामने होते हुए
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia