होली के आस-पास के दिन ही हुआ करते थे जब हम..पढ़ाई का थोड़ा सा.. हाँ थोड़ा सा लोड लिया करते थे। इससे पहले तो स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अगुवाई में जो रहा करते थे। दोहा, कविता, गीत - संगीत, लेखन आदि के साथ ही भाषण और वाद-विवाद में आगे रहना पसंद था।अमर चित्रकथा और चाचा चौधरी के साथ ही घर पर अनेक साहित्यक पत्रिकाएं आती रहती थी सभी भाई बहन बारी-बारी से उन्हें पढ़ते थे। दिल्ली से छपने वाली मासिक पत्रिका #विचार_मंच और साप्ताहिक पत्रिका राष्ट्रदूत की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी। काटो तो खून नहीं काॅलम में बहुत से किस्से भेजे और बहुत से छपे भी।'सरिता' पत्रिका के माध्यम से अनेक स्थानों बारे में जानकारी हासिल करके उन स्थानों को देखने के लिए लालायित हो उठती थी। परीक्षा के दिनों में ये किताबें पढ़ने को नहीं मिलती मगर अखबार यानी #राजस्थान_पत्रिका पढ़ना हमारे दैनिक कार्यों में से एक था। अखबार आते ही पन्नों में बंट जाया करता और हम सभी नीम के पेड़ के नीचे बालू मिट्टी में आस-पास बैठकर अखबार पढ़ते। अखबार पढ़े बिना हमारी सुबह सुबह ही नहीं होती।
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia