#क्यों लड़ती- झगड़ती हैं लड़कियाँ ? ... #क्या सरस्वती सी लुप्त हो रहीं लड़कियाँ ? #क्या संस्कारी नहीं नहीं हैं लड़कियाँ? #प्रगतिशील विचारों की धनी हक़ के लिए लड़ती - झगड़ती लडकियाँ.... प्रश्नों के उत्तर पाते हैं सीता के रूप में उठ - उठ सीता अब युद्ध तो कर #कविता लोग कहते हैं संस्कार नहीं हैं ल़डकियों में बहुत बोलती हैं, लड़ती-झगड़ती लड़कियाँ । पुरुषों के सामने चीखती -चिल्लाती बेशर्म लड़कियाँ । पढ़-लिखकर तोड़ रहीं हैं मर्यादाएँ । बराबरी करना चाहती हैं पुरुषों की नौकरी के नाम पर, देर से आती हैं घर। नहीं निकालती घूंघट आजकल की बहुएँ । नहीं करती लिहाज सास -ससुर का बात करती हैं अपने हक, अपने अधिकारों की। संस्कार का पाठ पढ़ाने वाले देखो ताक पर नहीं रखी संस्कारों की गाँठ किसी लड़की ने । ना भूली हैं संस्कार, ना ही मर्यादाएँ तोड़ रहीं हैं हाँ जान लिया अपने अधिकार और कर्त्तव्यों के बारे में अच्छी तरह इसीलिए उतारकर सड़ी -गली परंपराओं का टोकरा सर से आ गईं हैं सड़कों पर बुलंद कर रहीं हैं आवाज़ गली-मोहल्लों, ग
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia