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सभ्य और संस्कृत

अनसुलझा रहस्य और भी  #संस्कृत कौन है? हम...?? जो अच्छे और साफ सुथरे घरों में रहते हैं, रोज नहाकर अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छा खाते भी तो हैं। टेलीविजन पर ख़बरें देखते हैं अच्छा # साहित्य पढ़ते हैं। हाँ हमीं तो हैं संस्कृत हर सांस्कृतिक मर्यादा का पालन करते हुए धूमधाम से व्रत-त्योहार मनाते हैं। याकि... सभ्य हैं वो जिन्हें सभ्य और संस्कृत होना ही नहीं आया.. क्योंकि घरों में नहीं... फुटपाथ पर रहते हैं, नंगे पाँव मिलों चलकर सरकारों की अव्यवस्था को ठेंगा दिखाते हैं।  कई-कई दिन नहाते नहीं वो और धोकर पहनने के लिए दूसरे कपड़े नहीं जिनके पास लड़कियों और महिलाओं के मैले कपडों पर लगे होते हैं दाग मासिक धर्म के। सच वो सभ्य हो ही नहीं सकते जो गर्भवती स्त्री को बिठा लेते हैं साईकिल पर और गोद में रख देते हैं पूरी गृहस्थी, बिना खाए-पिए और बिना ट्रेनिंग घायल पिता को साईकिल पर बिठा कर लाई लड़की कैसे संस्कृत हो सकती है लॉकडाउन के बीच नियमों को तोड़कर राज्य की सीमा जो लांघ गई।  और वो जो मरने-मारने पर उतर जाते हैं एक रोटी के लिए..