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#Corona कोरोनाकाल में हिम्मत प्रदान करती कविता - #हरिवंशरायबच्चन

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! वह उठी आंधी कि नभ में छा गया सहसा अंधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भांति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आ‌ई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! चित्र आभार वह चले झोंके कि कांपे भीम कायावान भूधर, जड़ समेत उखड़-पुखड़कर गिर पड़े, टूटे विटप वर, हाय, तिनकों से विनिर्मित घोंसलो पर क्या न बीती, डगमगा‌ए जबकि कंकड़, ईंट, पत्थर के महल-घर; बोल आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था, जो गगन पर चढ़ उठाता गर्व से निज तान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती, घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती; एक चिड़िया चोंच में तिनका लि‌ए जो जा रही है, वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती! नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! स