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कला रत्न भवन में साहित्य समारोह

       अजमेर के 'कला रत्न भवन में' साहित्य रत्नों के समागम की साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त कर ह्रदय प्रफुल्लित हो उठा।डॉक्टर अखिलेश पालरिया जी की साहित्यिक अभिरुचियों, विनम्रता, सरलता एवं आतिथ्य के बारे में सिर्फ सुना था किंतु इस कार्यक्रम में पहली बार मिलना हुआ। पहली बार में ही आदरणीय अखिलेश जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व ने मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी।      कला रत्न भवन के प्रांगण में 'पुस्तक विमोचन' एवं सम्मान समारोह के इस कार्यक्रम में देश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों को सुनना एव बड़ी उपलब्धि रही।  डाॅ. आशा शर्मा के संचालन में डॉ. अखिलेश पालरिया द्वारा लिखित मेरी समीक्षा माला' एवं ' मेरे सपनों का भारत',  गोविन्द सिंह चौहान जी की' गिरते-सँभलते जज्बात' अनूप कटारिया. जी की यादों की धानी चूनर   डाॅ. अनिता श्रीवास्तव व स्वप्ना शर्मा द्वारा लिखित 'अनकही' पुस्तकों का विमोचन हुआ।    कार्यक्रम में उपस्थित विजेताओं एवं वरिष्ठ साहित्यकारों (श्रीमती आशा शर्मा 'अंशु', को उ

अपने मन का रावण मारो

अपने मन का रावण मारो मन में पलती ईर्ष्या और  क्रोध,लोभ मत द्वेष से हारो राम मिलेंगे अंतर में  अपने मन का रावण मारो। ये जीवन है छोटा सा  पर इच्छाएं बहुत बड़ी इच्छाओं को पूरा करने  प्रज्ञा आपस में खूब लड़ी। देव और दानव मन रहते  शाश्वत सत्य को स्वीकारो।  देव जगे दानव सो जाए  परहित कर्म महान करो अहम घटे सीखें के संयम  अपने मन का रावण मारो।।  लीलटांस - दशहरे के दिन लीलटांस यानी नीलकंठ को देखना शुभ माना जाता है व्यभिचारी मन काबू कर तू  काम वासना की लहरें ऐसे मन में तुम्हीं बताओ  राम भला क्यों कर ठहरें। घट में राम मिलेंगे तुमको  मलिन ह्रदय को स्वच्छ करो  तज दो पलते दुर्विकार  अपने मन का रावण मारो।।  सुनीता बिश्नोलिया 

वीना चौहान - साहित्य को समर्पित 💐💐जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂

जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂 कहती हैं सूरज की किरणें                     कर खुद पर विश्वास।          हारेगा सौ बार मनुज,                  मत छोड़ जीत की आस।।     "मंजिलें नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं,     अरे सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं।"        जी हाँ बिल्कुल ये सही कहा है किसी ने        क्योंकि कार्य करने की ललक और हिम्मत भी व्यक्ति जुटा लेता है पर उद्देश्य स्पष्ट ना होने के कारण व्यक्ति असफल भी हो सकता है। किंतु कार्य अगर लोक कल्याण का हो और इसी जन कल्याण को करने की तीव्र उत्कंठा आपके जीवन का उद्देश्य और महिला लेखिकाओं को लेखन के अवसर प्रदान कर उन्हें मंज़िल की ओर अग्रसर करना आपका लक्ष्य बन जाए तो वास्तव में आप एक सच्चे साहित्यकार हैं। वर्तिका वर्तिका राजस्थान लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं नारी कभी ना हारी संस्था की संस्थापिका आदरणीय वीना चौहान दी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी आप 'नारी कभी ना हारी' के माध्यम से महिलाओं को एक मंच पर लाने

सुप्रभात

सुप्रभात रंग मंच दुनिया सकल,अभिनय करना काम। ईश्वर नाच नचा रहा, बैठा डोरी थाम।।      सुनीता बिश्नोलिया 

सुप्रभात

सुप्रभात🙏🙏💐💐 पिताजी कहते थे अच्छी और बुरी परिस्थियाँ     तो संगिनी होंगी तुम्हारी     इसलिए हर परिस्थिति में मुस्कुराना।      क्योंकि साथियों के साथ मार्ग में हँसकर ना       चलो तो राह मुश्किल होती है     इसीलिए विकट परिस्थियों में भी           मुस्कुराती हूँ     विश्वास का दीप  जलाकर      अंधेरों को ठेंगा दिखाती हूँ।       सुनीता बिश्नोलिया 

अटल बिहारी वाजपेयी

अटल  बिहारी वाजपेयी  नमन  अटल .. # अटल उदात्त शांत सागर सा वो     भावो की भरी गागर सा वो। मुग्ध हुआ था विश्व पटल        जब बोल उठा था वीर  अटल । पर्वत सा साहस ऊँचा था           सागर से गहराई ज्यादा। हिंदी के मीठे स्वर फूटे          थे  वीर  अटल  ने दिल लुटे अटल  स्वप्न नयनों में लेके,मधुर कविता गाता देश-प्रेम का जज्बा दिल में,मुख उसका बतलाता । निडर ऐसा लापरवाह ,अंजाम से ना घबराता पथ के पत्थर को मार के ठोकर,आगे वो बढ़ जाता । निज भाषा के शब्दों को , विश्व मंच पे था बिखराया विश्व-पटल पर खड़ा  अटल  वो,मेघ के सम था गरजा । पोकरण या कारगिल हो ,शक्ति सिंह सी दिखलाता। दुश्मन को  लाचार बनाकर,नाकों चने चने चबवाता। राजनीति का चतुर खिलाडी,शब्दों के तीर सुनहले, खुद उलझन में फंसता पर,परहित हर द्वार थे खोले। कथनी करनी एक सामान, आँखों में बस हिंदुस्तान, अटल  वचन वाला वो सिपाही, अटल  बिहारी है महान। अटल -फैसला, अटल -ह्रदय से, लेना तब मज़बूरी थी, गद्दारों को सबक सिखाने , की पूरी तैयारी थी। तैयार खड़े थे सीमा पर,तोपों की गर्जन थी भारी थी, सबक सिखाया दुश्मन को,पाक को दी सीख करारी थी। #स

धरती धोरां री

धरती धोरां री      हर वर्ष  'शिक्षक दिवस' से पूर्व शैक्षणिक भ्रमण हेतु छात्रों को ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन हेतु जाया करते हैं पिछले दो सालों से कहीं जाना नहीं हो रहा। इसीलिए भ्रमण की यादें. जब निकल पड़ा था हमारा कारवां कुछ नए अनुभव समेटने । उद्देश्य छात्रों को गाँवों से जोड़ने,प्रकृति के अंचल में समाप्त होते रेतीले धोरों में खुले आसमान के नीचे स्वच्छंद इस पेड़ से उड़ते पक्षियों को निहारने की सुखानुभूति प्रदान करना।     #कुछ छात्रों का रेतीले टीलों पर दौड़कर चढ़ जाना कुछ का धीरे -धीरे लक्ष्य प्राप्त करना और कुछ का मार्ग में ही पस्त हो जाना। आस-पास में बकरी और गायों को चराने वाले बच्चों,महिलाओं को बिना किसी परेशानी के पहाड़ी की चोटी पर चढ़ता देखकर पहाड़ तो नहीं पर पुनः रेत के टीलों पर चढ़ने का प्रयास कर सफलता प्राप्त करने की खुशी से झूमते बच्चों को देखकर प्रसन्नता का अनुभव तो हुआ किन्तु उनकी..हमारी जीवन शैली पर प्रश्न चिन्ह लगता दिखाई दिया     #कुछ दृश्य मन को आनन्दित करनेवाले थे तो कुछ दृश्यों ने मन में आक्रोश भर दिया। मेरा मानना है अगर हम गाँवों को कुछ अच्छा नहीं

फिर आएगा वसंत - कहानी

‘‘ फिर आएगा वसंत ’’      चम्पा चमेली, गेंदा, गुलाब..... ना जाने कितनी तरह के पौधे लगे हैं, इस बगीचे मेंं।     हर क्यारी फूलों से गुलजार है हर डाली पर फूल खिले हैं । इठलाते गुलाब और शान दिखाते गेंदे को छोड़कर बगीचे में जिधर भी नज़र घुमाकर देखें तो लगता है हम स्वर्ग में ही आ गए हैं।इतनी सुन्दर क्यारियां,पौधों की इतनी सुन्दर कटिंग, कहीं झांकते नव-पल्लव तो कहीं कलियाँ और फूल।       हँसती हुई कलियों और फूलों के बीच चंदा की पायल सी खनकती हँसी और साथ ओहो..कहते हुए चंदा के पिताजी की बहुत ही  शांत हँसी ने वातावरण में मनुष्य की उपस्थिति का अहसास करवाया है।  भाई के किए का मजाक बनाते हुए बाबा की लाडली चंदा बाबा को एक गुलदस्ता दिखाकर कहती हैं - ‘‘बाबा देखों ना मन्नू ने क्या किया है। (हँसते हुए) गुलाब में गेंदेओर गेंदे में गुलाब के फूलों को मिलाकर रख दिया। पागल कहीं का। ऐसे भी भला कोई गुलदस्ता बनता है।      लाडली चंदा बिटिया की बात पर हँसते हुए झाबर बोला- ‘‘कहाँ खोये रहते हैं ये माँ-बेटे चल अब कोई बात नहीं, आज ही किया है ना  तो तू इसे सही कर दे।’’     ‘‘हाँ बाबा, अभी लगा देती हूँ। आप उस

खुलकर कुछ बातें हों जाएँ- कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव

कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव की बेहतरीन कविताएँ  खुलकर कुछ बातें हो जाएं दिल करता है कभी-कभी बंद पड़े हैं जो बरसों से भीतर तन्हा घुटे -घुटे से  उलझे किस्सों को सुलझाएं दिल करता है कभी-कभी छतरी ताने छत के ऊपर सन्नाटे में धूप खड़ी है कुछ पल उसके साथ बिताएं दिल करता है कभी-कभी चखकर मीठी यादों को खोल दें सांकल अपनेपन की खिलकर महकें मुस्काएं दिल करता है कभी-कभी प्रज्ञा जिंदगी की किताब में खुशी, ख्वाब, ख्याल,ख्वाहिशें लिखा तो बहुत कुछ था पर छपते-छपते  कुछ यूं छप गया दुख, दर्द, दहशत, दवाब कहीं-कहीं छपा था आशा, विश्वास, त्याग, तपस्या जैसी बातें मजबूरी की पुनरावृत्ति प्यार का पूर्ण विराम जीवन के रिक्त स्थान में मौत जो मरती नही रूठ जाती है जिंदगियों से प्रज्ञा श्रीवास्तव

दोहे - वसंत

दोहे - वसंत  क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी माँ वसुधा  मुस्का रही, देखे रंग हजार।  ऋतु वसंती आ गई, लेकर संग बाहर।1।  सौरभ से महके धरा,सुमन खिले हैं अंक। मात धरा की नजर में, सम हैं राजा रंक।2। चूनर ओढ़े प्रीत की वसुधा रही लजाय।  देख वसंती साजना,रोम-रोम खिल जाए।3।   झांझर पैरों में पहन, उड़ा रही है धूल।  मन ही मन मुस्का रही,बनी कली से फूल।4।  खग भी कलरव कर रहे, बैठ विटप की डाल। वन-उपवन फुल्लित हुए, पुष्प सजे तरु भाल।5।  मंद - पवन यों चल रही, ज्यों सरगम के साज़।  करते स्वागत सुमन हैं, आओ जी ऋतुराज।6। भूली धरती दर्द को, पूरी होती आस।  खुशियों वाले रंग ले,आया है मधुमास।7।  सुनीता बिश्नोलिया जयपुर