नहीं मरूंगी मैं दुनिया है दुनिया में अपनी आज निशानी छोड़ रही हूँ झूठ जगत में रिश्ते नाते मगर निभाए सारे हैं क्या पाया रिश्ते-नातों में मत पूछो हम हारे हैं रिश्तों के पतले धागे मैं पकड़े हूँ, ना छोड़ रही हूँ ।। धरती पर जो भी आया है एक दिन उसको जाना है, सत्य जानती हूँ जीवन का छोड़ जगत को जाना है । इस नश्वर जीवन का मुख मैं अमर बेल से जोड़ रही हूँ।। नहीं मरेगी कभी कविता जीवन गीत सुनाएगी, याद रहूँगी किस्सों में बातें दोहराई जाएंगी । कलम कहेगी किस्से मेरे इससे रिश्ता जोड़ रही हूँ।। सुनीता बिश्नोलिया ©®
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia