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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नश्वर जीवन...नहीं मरूंगी मैं

नहीं मरूंगी मैं  दुनिया है दुनिया में अपनी  आज निशानी छोड़ रही हूँ  झूठ जगत में रिश्ते नाते  मगर निभाए सारे हैं  क्या पाया रिश्ते-नातों में  मत पूछो हम हारे हैं  रिश्तों के पतले धागे मैं  पकड़े हूँ, ना छोड़ रही हूँ  ।।  धरती पर जो  भी आया है एक दिन उसको जाना है,  सत्य जानती हूँ जीवन का छोड़ जगत को जाना है ।  इस नश्वर जीवन का मुख मैं  अमर बेल से जोड़ रही हूँ।।  नहीं मरेगी कभी कविता  जीवन गीत सुनाएगी,  याद रहूँगी किस्सों में  बातें दोहराई जाएंगी । कलम कहेगी किस्से मेरे  इससे रिश्ता जोड़ रही हूँ।।  सुनीता बिश्नोलिया ©®

राजस्थानी भाषा म्हारी 'मायड़ भाषा'

मीठी बोली मारवाड़ी ,सबसे पहले इसी भाषा में बोलना और अपने भावों को व्यक्त करना सीखा। राजस्थान के टीलों, धोरों, हवेलियों, महलों और चौबारों में खनकती, इत्र सी महकती, कानों में मिश्री की सी मिठास घोलती हैं राजस्थानी बोली। कहते हैं हर पाँच कोस में राजस्थानी भाषा का स्वरुप थोड़ा सा बदल जाता है।  हाँ जरूर बदलता है लेकिन इसकी विविधता और परिवर्तनशीलता ही इसकी मुख्य विशेषता है।  इसीलिए तो देश के लगभग पाँच करोङ लोगों द्वारा बोली जाती है राजस्थानी भाषाएं।        राजस्थानी भाषाओं में प्राप्त  प्राचीन साहित्य, लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी लोगों के मन को लुभाते और मनोरंजन तो करते हैं पर इन भाषाओं को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी कारण इन्हें विद्यालयों में पढ़ाया नहीं जाता।     जहाँ पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझते हैं वहीं उनके द्वारा राजस्थानी भाषा को दैनिक रूप से बोलचाल में प्रयोग करना ही बंद कर दिया गया है। जिससे राजस्थानी भाषाओं का विस्तार तो नहीं हुआ वरन ये संकुचित होकर ह्वास  की ओर जरूर अग्रसर हो रही है। 

जेईई मेन और नीट की परीक्षाएं

      एक समय देश में कोरोना का इतना खौफ़ था कि सरकार ने लोगों के घरों से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया था। ट्रेन, बस यहाँ तक कि निजी वाहनों की आवाजाही पर भी रोक थी। सड़क पर बिना कारण घूमने वालों को मारा जाता और बेइज्जत किया जाता था।     लगता था कि सरकार का ये कदम और ये कठोर निर्णय देश हित में है। वास्तव में देश हित में ही तो था ये कदम तभी तो देश में लॉकडाउन लगा और गरीबों की नौकरी गई अन्यथा वो कमा-खा रहे थे। लेकिन फैक्ट्री और और रोजगार के अन्य साधन बंद होने के कारण भूख से मरने से अच्छा पैदल ही घरों की ओर चल पड़े कितने ही मजदूर बेमौत मारे गए। हाय! कोरोना कितने घरों के चिराग बुझ गए सिर्फ तुम्हारे नाम से। गरीब मजदूरों को मरता देखकर भी नियमों में ढिलाई नहीं दी गई ये इस महामारी का भय ही तो था कि देश की कमर टूटती अर्थव्यवस्था को संभालने वाले इन कर्णधारों का जीवन चींटियों की भाँति हो गया और ये उन्हीं चींटियों की भाँति सड़कों पर जहाँ-तहाँ रेंगते दिख रहे थे।  सरकार के प्रयास और जनसाधारण ने इस महामारी के संक्रमण बचने का पूरा प्रयास किया।

गणेश चतुर्थी

एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः । प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥   अर्थात्‌  एक दाँत और सुन्दर मुख वाले, शरणागत एवं भक्तजनों के रक्षक तथा पीड़ा का नाश करनेवाले शुद्धस्वरूप गणपति को बारम्बार नमस्कार है । हर हृदय में बसते हैं और घर-घर पूजे जाते हैं आदिदेव महादेव के पुत्र  गजानन।  नए कार्य का शुभारम्भ हो अथवा धार्मिक उत्सव, विवाहोत्सव हो अथवा अन्य मांगलिक अवसर। कार्य सिद्धि हेतु सर्वप्रथम पूजे जाते हैं एकदंत।  रिद्धि- सिद्धि और समृद्धि के दाता,आपदाओं से रक्षा करने वाले, शुभ-भाग्य प्रदाता, बिना व्यवधान के कार्य संपन्न कर्ता गौरी पुत्र गणेश शुभ के रूप में  हर घर में विराजमान रहते हैं और पूजे जाते हैं। पुराणों के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को विघ्नहर्ता गणेश का जन्म का हुआ।      इसीलिए देश के विभिन्न भागों में गणेश चतुर्थी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन  लोगों के घर गणपति का आगमन होता है। लोकमान्यता के अनुसार गणेश को घर में 10 दिन रखने की परंपरा है।        गणपति को दस दिन घर में रखने की बाध्यता

कोरोना में कुल्फीवाले

कोरोना वायरस ने अच्छी खासी चलती-फिरती दिनचर्या को बिगाड़ दिया और घर बैठने पर मजबूर लोगों को जीने के नए तरीके सिखा दिए। सुबह जल्दी उठकर फटाफट घर के काम निपटाकर जल्दबाज़ी में घर से निकल जाने वाली महिलाओं को भी उठने में आलस आने लगा। मेरी भी स्कूल बंद है और स्कूल का काम घर से ही कर रही हूँ इसलिए ड्रॉइंग रूम में ही अपना स्कूल लगाकर बैठी रहती हूँ ताकि घर के किसी सदस्य को को मेरे कारण दिक्कत ना आए। और मैं अपना काम करती रहूँ। ड्रॉइंग रूम की खिड़की घर की मुख्य बालकनी में खुलती हैं इसलिए मैं सारा दिन वहाँ पर बैठी बालकनी में पक्षियों की आवाजाही को देखते हुए उनके मधुर स्वर को सुनकर आनन्दित होती रहती हूँ। पक्षियों का कर्णप्रिय स्वर और बालकनी में लगे पौधों के इतने हरे-भरे होने का अहसास  शायद पहली बार हुआ।मनी प्लांट का इतनी तेजी से बढ़ना और इस मौसम में गेंदे पर इतने सारे फ़ूलों का खिलना छँटाई के अभाव में बड़े हुए बोनसाई के पौधों के नीचे कबूतर के बच्चों को बड़े होते देखना कोरोना के बुरे काल का सुखद अनुभव है।       बालकनी में पक्षियों का कलरव बढ़ते देख लिखना पढ़ना भूलकर उन्हें देखकर बचपन के दिनों को

बरसात

बूँदें........ बरसात  बहकी-बहकी हवा जब मचलने लगी बूंदें छम-छम, छमा-छम गिरने लगी फूल-पत्ते भी करने लगे मस्तियां  तन को बारिश की बूंदे भिगोने लगी ।। तन को गीला किया मन भिगो कर गई,  भावना सूखे तन में ये फिर भर गई,  एक  डाली तरसती थी पत्तों को जो,  सूखी डाली में कलियां खिलने लगी  बूंदें छम-छम, छमा-छम गिरने लगी तन को बारिश की बूंदे भिगोने लगी।।  नाचने लग गया ये मयूर बन के मन   सौंप बैठी मैंं मेघों को तन और मन   चूड़ियाँ जल का करने लगीआचमन  खनखन-खननन खन थिरकने लगी  बूंदें छम-छम, छमा-छम गिरने लगी तन को बारिश की बूंदे भिगोने लगी।। सुनीता बिश्नोलिया © ®

मुश्किल दौर

मुश्किल दौर  मुश्किल घड़ी दौर मुश्किल बड़ा है  मगर मुश्किलों से निकलना पड़ेगा ।              भंवर में फँसी नाव को भी तो पहले               बुद्धि के बल पर तुम्हीं ने निकाला।              आशा का दीपक मन में जलाकर               सागर में नैया को तुम्हीं ने संभाला।               काल की तरहा उठती लहरों में डटकर               पार मुश्किल ये सागर करना पड़ेगा।।  सृष्टि की रचना से अब तक धरा पर  विपदा के सागर कितने ही आए।  विपदा के आगे मगर ना कभी भी  कदम उठ गए जो पिछले हटाए।  खड़े हो गए काल के जाके सम्मुख  हमें काल से फिर, टकराना होगा।।              सदा मुश्किलों पर विजय होती आई              जय आगे भी होगी होती रहेगी।              जगमग जले जोत एेसी बिखेरो              जोत तूफान में भी जलती रहे एेसी              आशा की बाती बुद्धि का दीपक              सागर के उर पर जलाना पड़ेगा।।  सुनीता बिश्नोलिया  जयपुर 

74वें स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  74 वां  स्वाधीनता दिवस  पायल की खनक, धानी चूनर की धनक, नृत्य की थाप , उत्साह में उठते जवानों के कदम,आकाश में विचरते वायुयान, लालकिले से लहराता तिरंगा, अविरल बहती निर्मल गंगा, ,नाचता, मोर, जन-मन का शोर और हरित वसुधा पर.... लोकतंत्र की गूंज। कितना सौंदर्य बिखरा है देश में, दिन-दिन विकास के नए सोपान चढ़ता हमारा प्यारा भारत। बहुसंस्कृतियों के संगम से सजा कितना खूबसूरत है स्वाधीन भारत। गर्व के अहसास का बहुत खास दिन पंद्रह अगस्त। लेकिन विविध थातियें  वाले देश को ये खूबसूरत अहसास करवाने, देश को आततायियों से मुक्त करवाने हेतु, लौहश्रृंखला से बंधी भारतमाता आज़ाद करवाने के लिए और ये दिन विशेष पाने के लिए वीरों ने हँसते-हँसते स्वाधीनता आंदोलन-होम में अपने प्राणों की आहुति दी । उन्हीं के त्याग और बलिदान स्वरुप प्राप्त की आज़ादी 15 अगस्त 1947 को और आज हम मना रहे हैं 74 वां  स्वाधीनता दिवस। आकाश में लहराते तिरंगे को देखकर हृदय में हर्ष की लहरें हिलोरें ले रहीं हैं... जयहिंद, जय भारत।  तिरंगा  देश का गर्व हिन्द की पहचान अहं ति