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माटी री सोरम

माटी री सोरम   लिखूं कविता म्हारै गांव री  मुखड़े पै मुस्कान रवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली  बातां ऊँची हेल्यां री बै  साथी संग सहेलियाँ री वै  गिणिया करती बैठी तारा भोली बातां पहल्यां री बै गळी-कूंचळ्यां री बातां नै लिखतां आँख्यां खूब बवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।    गुड्डी-गुड्डा ताळ-तळाई ईसर-गोरां खूब जिमाई खेल-खिलौणा बाळ पणै रा   किस्सा है ये अपणैपण रा  रेतीला धोरां री बातां  हाल तकै तो और हुवैली   माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।  तीज-तिवारां ब्याव-सगाई बन्ना-बन्नी म्है बी गाई घूघरिया घमकाया करती म्हारै गाँव  री बूढी ताई भूल्या-बिसर्या गीतां री हिवड़ै सूं रस धार बवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।।  जिण टीबां पै लोट्या करता इण आँख्यां सूं देख्या मरता देख सिमटता गाँव-गळ्यां नै झर-झर-झर-झर आँसू  झरता नई मंजिलां रै सामी पण बूढी हेल्यां खड़ी रैवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।।

सांस्कृतिक – झरोखा बाबा रामदेवजी

बाबा रामदेव जयंती पर आदरणीय डॉ आईदानसिंह भाटी द्वारा दी गई बहुत ही सुंदर और विस्तृत जानकारी  सांस्कृतिक – झरोखा                  बाबा रामदेवजी   बाबा रामदेवजी का अवतरण विक्रम स. 1409 में हुआ | चैत्र सुदी पञ्चमी सोमवार को इनका जन्म हुआ था, किन्तु लोक मानस में भाद्रपद सुदी दि्वतीया ‘बाबा री बीज’ के नाम से ख्यात है|  बाबा रामदेवजी मध्यकाल की अराजकता में मानवीय मूल्यों के लिए संघर्ष करने वाले अद्भुत करुणा पुरुष हैं| उनके पूर्वजों का दिल्ली पर शासन था | तंवर अनंगपाल दिल्ली के अंतिम तंवर (तंवर, तुंवर अथवा तोमर एक ही शब्द के विभिन्न रूप हैं) सम्राट थे | वे दिल्ली छोड़कर ‘नराणा’ गाँव में आकर रहने लगे जो वर्तमान समय में जयपुर जिले में स्थित है | इसी के आसपास का क्षेत्र आजकल ‘तंवरावटी’ कहलाता है | दिल्ली के शासक निरंतर तंवरों पर हमले करते रहते थे, क्योंकि वे जानते थे कि दिल्ली के असली हकदार तंवर हैं| इसलिए तंवर रणसी अथवा रिणसी के पुत्र अजैसी  (अजमाल) को वंश बचाने की समझदारी के तहत मारवाड़ की तरफ भेज दिया | वे वर्तमान बाड़मेर जिले की शिव तहसील के ‘उँडू – काशमीर’ गाँव के पश्चि

सत्ता की गलियाँ

सत्ता के रंग सत्ता की गलियों में मैंने          अजब तमाशा देखा है। साधू के चोले को पहने          धूर्त बगुला देखा है। इनकी बातें ये ही जाने            बिन पेंदे के लोटे हैं मासूमों पर जाल फेंकते            खुद आसामी मोटे हैं। वोटों की खातिर इन सबको             रंग बदलते देखा है। साधू के चोले को पहने          धूर्त बगुला देखा है। करें चाशनी से भी मीठी           बातों के ये जादूगर कहा आज का कल भूलें         रहना थोडा सब बचकर।  वादों के जालों में जन को           इन्हें फँसाते देखा है। साधू के चोले को पहने            धूर्त बगुला देखा है। बरसात अच्छी है खेल-खेलते ऐसा ये तो        लोगों को बहकाते हैं। छत भी नहीं नसीब ये उनको        महलों के स्वप्न दिखाते हैं। जिनको रोटी की ठोर नहीं       संग उनके खाते देखा है। साधू के चोले को पहने              धूर्त बगुला देखा है। #सुनीता बिश्नोलिया©

कहानी - अच्छी है बरसात

       बरसात अच्छी है       टिन की टूटी छत से आती टप-टप की आवाज़ के साथ बिस्तर के पास टपकते पानी के छींटों से बचने के लिए बार-बार बिस्तर से उठने के कारण सात साल के राधे की नींद पूरी तरह से उड़ गई। हालांकि घर में ज्यादा सामान नहीं है फिर भी माँ और बाबा भीगने से बचाने के लिए घर का सामान इधर से उधर कर रहे हैं।       इतनी रात को माँ-बाबा को काम में लगा देखकर राधे झुंझलाकर बैठते हुए बोला-"बाबा! बहुत बुरी है बरसात..!हमारा पूरा घर पानी से भर देती है और आपको सोने भी नहीं देती। "        बेटे की बात सुनकर राधे के हरिया ने हँसते हुए कहा-"बेटा ऎसा क्या है हमारे घर में जो खराब हो जाएगा.!बिना पानी जीवन कहाँ। अच्छा है जो समय से बरसात हो गई।"    हरिया की हाँ में हाँ मिलाते हुए पत्नी शारदा ने भी हँसते हुए बेटे के सिर पर हाथ फेरकर कहा-"बहुत इंतजार के बाद होती है ये बरसात.! इसके आने से ही ये धरती हँसती है और धरती के हँसने से हम सब हँसते हैं।अगर  बारिश नहीं होगी तो धरती सूख जाएगी...!"   माँ और पिताजी की गोल-गोल बातें राधे को समझ नहीं आई। वो अपने छोटे से घर के एक

कृष्ण जन्म - जन्माष्टमी

कृष्ण जन्म उल्लास में,डूबा गोकुल ग्राम। आँसू बहते आँख से,माता के अविराम।। कृष्ण कान्हा झूले पालने, माँ मन में हर्षाय, नजर न मोहन को लगे,कजरा मात लगाय।। देख शरारत कान्ह की,मात-पिता मुसकाय। नन्द-यशोदा की ख़ुशी,नयनों में दिख जाय।। तुतली बोली कृष्ण की,माँ को रही रिझाय। उमड़ रहा उल्लास जो,आँचल नहीं समाय।। मोहन माखन-मोद में,भर लीन्हों मुख माय। मात यशोदा जो कहे,कान्हा मुख न दिखाय।। कान्हा ने उल्लास में,सखियन चीर छुपाय । सखियाँ रूठी कृष्ण से,नटखट वो मुसकाय।। कृष्ण सामने जान के,सखियाँ ख़ुशी मनाय। सुन मुरली घनश्याम की, सुध-बुध भूली जांय।। कान्हा लेकर साथ में,ग्वाल-बाल की फ़ौज। मन में भर उल्लास वो,करते कानन मौज।। सुनीता बिश्नोलिया

कृष्ण

कृष्ण- मुक्तक हृदय में बस गया तेरा रूप जग से निराला था  तेरे खातिर मेरे कान्हा पिया विष का पियाला था  बस इक तेरा भरोसा था लड़ गई मैं ज़माने से  संभालो आज भी मुझको सदा जैसे संभाला था।।  कृष्ण 2 मेरे कृष्णा मनोहर सुन तेरी ये बाँसुरी बैरन  इसकी धुन सुन मोहना मैं भूल जाती कहाँ साजन उलाहने देती ननदी है बावरी कौन है आई मन से आराधना बचा रखना मेरा दामन।। संस्कार सुनीता बिश्नोलिया  जयपुर